चमन के फूल भी तुझको गुलाब कहते हैं,

हम ही नहीं, तुझे हर कोई लाजवाब कहते हैं।

ये दो पंक्तियाँ हम अक्सर ही अपनी प्यारी कानू के लिये गुनगुनाते रहतें हैं। सर्दी बढ़ गई है, इसलिये अब हम अपने बच्चों सहित प्यारी कानू को लेकर छत्त पर ही धूप में बैठे रहते हैं.. ठंड के मारे हमारे अन्दर जाने का मन ही न करता है। इन दिनों हमारी छत्त पर बहुत रौनक मेला लगा रहता है। अब बच्चों के इम्तेहान नज़दीक हैं, तो वो तो अपनी पढ़ाई-लिखाई में लगे रहते हैं.. हम हरी-भरी भाजी तरकारियों को साफ़ करने और छीलने में व्यस्त रहते हैं। हम सब के बीच मीठी-मीठी धूप में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हमारी प्यारी कानू निभाती है.. पूरी छत्त पर सारे दिन धूप-छाया में उछल-कूद करती रहती है, और हमारा मन लगाती रहती है। इन दिनों तो गुलाब के फूलों का सीजन है.. हमें भी गुलाब के फूलों से क़ानू की तरह ही बेहद लगाव और प्यार है। अपने गुलाब के फूलों का शौक पूरा करने के लिये ही हमनें अपनी छत्त पर लगभग कोई तेरह रंग के सुन्दर गुलाब के फूल लगा रखे हैं.. भोपाल की काली मिट्टी में गुलाब होता भी बहुत अच्छा है। गुलाबों, बच्चों और हमारी गुलाब के फूल से भी सुन्दर और प्यारी कानू की इन दिनों हमारी छत्त पर रौनक छाई रहती है। अब अगर कोई हमसे ये पूछे कि हमारा सबसे पसंदीदा गुलाब कौन सा है.. तो भई! हो न हो हम तो अपनी प्यारी कानू का ही नाम लेंगें। हमारी क़ानू तो गुलाबों में गुलाब है.. सबसे सुन्दर लाल गुलाब कानू!

अब हुआ यूँ कि बच्चे तो अपनी पढ़ाई-लिखाई में वयस्त थे.. और हमारी कानू-मानू अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाते हुए और अपनी प्यारी सी छोटी सी पिंक कलर की जीभ साइड में लटकाकर हमारे साथ खेलने में लगी हुई थी। आज तो क़ानू रानी का हमारे ही साथ खेलने का मन हो रहा था.. सो! हम भी क़ानू संग बच्चा बन खेल में लग गए थे। कानू के साथ जब भी हम खेल में लग जाते हैं.. तो सच! पूरी दुनिया भुलाकर केवल कानू में ही हमारा मन लीन हो जाता है, अब करें भी क्या! आख़िर हमारी क़ानू सबसे प्यारी और लाखों में एक जो है।  

अब जहाँ पर हम छत्त पर बैठे हुए थे.. बस! वहीँ पर पास में ही एक गुलाबी रंग का बटन रोज़ का गमला रखा हुआ था। अब क्योंकि गुलाबों का सीज़न है, तो पूरा का पूरा गमला पिंक कलर के सुन्दर बटन रोज़ से भरा हुआ था.. अब कानू तो हमारी कुर्सी और गमले के साथ चिपक कर शैतानी कर ही रही थी.. तो हुआ यूँ कि, कानू-मानू की फ्लॉवर जैसी पूँछ से टकराकर एक छोटा सा बटन रोज़ टूटकर नीचे ज़मीन पर गिर गया.. हमनें वो कानू की तरह खूबसूरत फूल उठाया और अपनी गुड़िया कानू के गले में बंधे हुए काले पट्टे में फँसा कर लगा दिया था.. अहा! गुलाबी रंग का गुलाब कानू के गोरे और स्टफ टॉय जैसे गले में ऊपर की तरफ लगते ही मानो के उस गुलाब की क़ीमत ही बढ़ गई थी.. और क़ानू की खूबसूरती में तो चार-चाँद लगने ही थे। बस! तो हमनें छोटे- छोटे और दो-चार बटन रोज़ पौधे पर से तोड़े और क़ानू के गले में बँधे हुए पट्टे के छेदों में फँसा कर लगा डाले थे। कानू को भी यह अहसास हो गया था, कि माँ ने हमारे गले में कुछ लगा दिया है.. और अब क़ानू और भी स्वीट लग रही है। कानू ने हमारी ऊपर उछल-उछल कर खुशी में ज़ोर-ज़ोर से भौंकना और खेलना शुरू कर दिया था.. अब बच्चे भी वहीं पढ़ रहे थे, तो हमनें नन्ही कानू को बहुत चुप कराने की कोशिश करी और नज़दीक जाकर क़ानू के पेपर-कटिंग जैसे सुन्दर कानों में धीरे से कहा भी था,” चुप हो जाओ! काना! नहीं तो भइया-दीदी आपकी पिटाई कर देंगें”।

पर क़ानू तो हमारे साथ खेलने के मूड में पूरे जोश में भौंके ही चली जा रही थी.. अपना मुहँ बन्द करने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब बच्चों को कानू पर भयंकर गुस्सा आ गया था.. और आना भी था.. इम्तेहान सिर पर हैं, और क़ानू भोंक-भोंक कर डिस्टर्ब ही करे जा रही थी। अब सर्दी में सभी का धूप में बैठकर ही सारे काम में मन लगता है। बस! तो भई! बच्चों का ग़ुस्सा काबू न हुआ और क़ानू और हम पर बच्चे बरस पड़े थे,” क्या! यार! मम्मी! चुप कराओ अपने कुत्ते को भोंक-भोंकी कर दिमाग़ ख़राब कर दिया है, हमें पढ़ने ही नहीं दे रही है”।

“ कुत्ता! किसको कहा! अब तो बिल्कुल भी चुप न करायेंगे, पहले हमारी क़ानू से बात करने की तमीज़ सीखो!”।

हमनें भी बच्चों से चिल्लाकर कहा था.. अब कानू बेशक कुत्ता ही सही.. पर जब कोई क़ानू को कुत्ता कहकर संबोधित करता है.. तो सच! कहें बाकी नहीं रहती है, हमारे अन्दर।

हमें अपने बच्चों से भी कहीं ज़्यादा प्यारी है.. हमारी सबसे प्यारी और न्यारी कानू।

“ अगर ये आपकी कानू कुत्ता नहीं है, तो इससे कहो.. अपना नाम लिखकर दिखाए.. कानू। अगर इसने अपना नाम कानू लिख दिया तो हम इसे फ़िर कभी कुत्ता नहीं बोलेंगे.. पक्का प्रॉमिस!”। बच्चों ने हमारी कानू की मज़ाक बनाते हुए हमसे कहा था।

“ फ़िर करना कानू! कानू!”। बच्चों ने हमें कानू पर ताना कसते हुए कहा था।

अब तो हम भी पूरे जोश में आ गए थे, और यह चैलेंज हमनें भी स्वीकार कर लिया था.. अब हमसे सिर्फ़ अपनी कानू की ही बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं होती। इस बात पर हमनें अपनी स्टफ टॉय जैसी प्यारी कानू को गोद में बिठाया था.. और बच्चों को आर्डर देते हुए कहा था,” ज़रा एक रफ़ कॉपी और पेंसिल हमें भी दे दो.. देखो! आज हम कैसे अपनी क़ानू को पढ़ाते हैं, देख लेना हमारी इंटेलीजेंट कानू सबके मुहँ बन्द कर देगी”।

“ लो! ये पेंसिल और कॉपी! अब प्लीज! भगवान के लिये चुप-चाप पढ़ाना अपनी कानू को.. हमें डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए”। बच्चों ने हमें कॉपी और पेंसिल पकड़ाते हुए कहा था।

और हम कॉपी पेंसिल हाथ में लिये और छोटा वाला टेबल अपनी तरफ़ सरका.. कानू को अपनी गोद में दबोच कर पढ़ाने को पूरी तरह से तैयार हो गए थे। अब क्योंकि प्यारी सी कानू गुड़िया बनी हमारी गोद में बैठी थी.. तो पहले तो हमनें अपनी कानू के मज़े लिये.. और पढ़ाने से पहले कानू के मीठे वाले मुलायम से गाल पर एक मीठी सी पप्पी दी थी.. कानू को भी हमारा गाल पर यूँ पप्पी देना बहुत पसन्द आता है। अपनी माँ की गोद में प्यार करवाते हुए कानू भी अब जो माँ कहेंगीं वो करने के पूरे मूड में आ गई थी।

हमनें कानू के आगे वाले हाथ में जबरदस्ती पेंसिल पकड़ाने की कोशिश की थी.. पर है, तो क़ानू कुत्ता ही, कैसे पकड़ती पेंसिल! बजाय पेंसिल पकड़ने के क़ानू ने पेंसिल को मुहँ में लेकर उसे काटना और खेलना शुरू कर दिया था। हमनें भी क़ानू की इस हरकत पर धीरे से क़ानू के गाल पर हल्का सा थप्पड़ लगाते हुए कहा था, “ हाँ! हो आप पागल! हो!”।

अब मुहँ से पेंसिल निकालते हुए.. हमनें फ़िर अपनी कोशिश जारी रखी थी.. कि ज़्यादा नहीं तो कम से कम आज हम अपनी क़ानू को “क” तो लिखना सीखा ही देंगें।  अब उस पेंसिल कॉपी, क़ानू और हम पर तो बन आई थी। कानू के साथ पेंसिल और कानू को जबरदस्ती अपनी गोद में दबाए हम “क” बनवाने पर उतारू थे.. कानू को भी हमारा यह कॉपी, पेंसिल और “क” लिखवाने वाला गेम मन भा गया था। कानू मन ही मन सोच भी रही थी,” आज ये माँ! कौन सा नया और मज़ेदार गेम ढूँढकर लाईं हैं.. हमारे लिये। वाकई में बहुत मज़ा आ रहा है, माँ! के साथ इस गेम को खेलने में”।

अब हम तो एकदम सीरियस थे,कि हो न हो आज तो कानू “क” लिखकर ही रहेगी। इसी जिद्दोजहत में अचानक ही पेंसिल घूमी थी.. और क़ानू से “क” बन चुका था। हमनें जैसे ही “क” बना देखा था.. हमनें खुशी से बच्चों को नज़दीक बुला कर कहा था,” देखो! लिख दिया न कानू ने “क” अब देखना कल कानू तुम लोगों को अपना पूरा नाम ही लिख कर दिखा देगी”।

बच्चे वो टेढ़ा-मेढ़ा “क” देखकर मुस्कुराए बगैर न रह पाए थे, और हमसे बोल ही बैठे थे,” मम्मी! आप भी!”।

“ अब बोलो! बुलाओगे हमारी कानू को कुत्ता!”। हमनें बच्चों से अपनी प्यारी सी कानू पर गर्व करते हुए कहा था।

“ अरे! बाबा नहीं! बस! आपकी कानू तो वाकई में सबसे न्यारी और इंटेलीजेंट है। नहीं बुलाएंगे अब कभी हम कानू को कुत्ता!”। बच्चों ने हमें कानू को कुत्ता कहने के लिये माफ़ी माँगते हुए कहा था.. और वैसे भी क़ानू लिखने-पढ़ने वाला चैलेंज जीत ही गई थी।

क से कानू, क से कबूतर और अ से अनार, अ से अनाज कानू को पढ़ाते हुए एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे, अपनी गुलाब जैसी सुन्दर कानू के साथ।

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