रमेश ने अपनी पैसों की ज़रूरत को पूरा करने के लिये.. दहेज में दी हुई, मुकेशजी की गाड़ी का सौदा कर दिया था.. गाड़ी बेचने से रमेश के पास अच्छे-ख़ासे पैसे आ गए थे। सीधी भोली सुनीता एक बार फ़िर से बेवकूफ़ बन गई थी। गाड़ी बेचने के लिये.. रमेश ने सुनीता से ही गाड़ी के कागज़ों पर दस्तख़त करवाए थे.. गाड़ी खरीदने वाले घर में ही खड़े थे.. सुनीता ने रमेश को गाड़ी के कागज़ों पर फटाक से दस्तखत कर दे दिये थे.. रमेश बाबू ने गाड़ी के ग्रहाकों से पैसे-धेले लेकर फटाक से अपनी जेब में रख लिये थे.. अब रमेश का फॉर्मूला तो पुराना था ही.. राम-राम जपना पराया माल अपना। जेब एक बार फ़िर भर जाने के कारण रमेश के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी थी।
सुनीता ने एक बार फ़िर से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी.. जब गाड़ी सुनीता के नाम पिता का ब्याह में दिया हुआ, तोहफ़ा था.. तो गाड़ी का सौदा होते ही पैसे अपनी जेब में क्यों नहीं डाले थे। फ़िर से एक बार रमेश को उड़ाने-खाने के लिये और लड़की पालने के लिये क्यों दे दिये थे.. मजबूत बन कर अपना पैसा अपने पास ही रखना चाहये था। पर सुनीता ने ऐसा कुछ भी नहीं किया था.. एक बार फ़िर सुनीता को डर ने ही क़ाबू कर लिया था.. डर के आगे एक बार दोबारा झुक गई थी.. सुनीता! और रमेश को एकबार फिर से मनमानी करने का मौका मिल गया था। रमेश की करनी में सुनीता भी बराबर की हिस्सेदार थी। आख़िर क्यों डर रही थी.. सुनीता! एक डर इंसान को कहाँ से कहाँ पहुँचा कर रख देता है.. पूरी तरह से बरबाद कर डालता है.. डर।
सुनीता को डर के दायरे ने पूरी तरह से घेर लिया था.. सोचने समझने की शक्ति पूरी तरह से ख़त्म हो गई थी.. सुनीता की.. कहीं और ध्यान लगाने की बजाय सुनीता के दिमाग़ में केवल “ वो लडक़ी “ ही घूमती रहती थी।
सुनीता का डर सही साबित होता जा रहा था.. और अब रमेश का रात को भी घर आना बन्द हो गया था।
“ जिसने गड्डी पंक्चर की है! वही देगा पैसे!”।
वैसे गाड़ियों का ही सिलसिला रामलालजी के परिवार में ख़त्म नहीं होकर दे रहा था। देखा! आ गया न पैसा बीच में। गाड़ी किसने पंक्चर की.. क्यों की.. और इस बात का कितना बड़ा हर्जाना भरना पड़ा.. जानने के लिये.. पढ़ते रहिये खानदान।