आज हमें अपने घर से निकले हुए दस दिन तो हो ही गए हैं। लेकिन हमारा कोई भी दिन ऐसा नहीं निकला जब हमें तुम्हारी याद न आई हो। अब आना-जाना भी ज़रूरी हो जाता है.. बिना आए-जाए और बिना रिश्ते निभाए जीवन तो है.. नहीं। हमारा मन तो होता है.. कि हम जहाँ भी जाएं तुम भी हमारे संग ही चलो.. क्योंकि अब तुम भी तो हमारे प्यारे रिश्तों में ही आती हो। बस! हम मन ही मन एक ही बात सोचते रहते हैं,” काश! तुम्हें ईश्वर ने कुत्ता न बनाकर और किसी रूप में हमारे साथ जोड़ा होता”।

अब प्यारी कानू को कुत्ता बोलना हमें बिल्कुल भी न भाता है, पर करें क्या! संस्कार ही ऊपर वाले ने हमारे कानू संग जोड़ दिये हैं।

कानू हमें रिश्तेदारी में बैठकर तुम्हारी बहुत याद आती है.. अक्सर ही हम यहाँ अपनों से बातचीत करते-करते तुम्हारी याद में खो जाते हैं, और हमारा मन उड़ान भरकर तुम्हारे नज़दीक पहुँच जाता है.. मन की उड़ान भरते हुए ही हम तुमसे दूर बैठकर भी तुम्हारे कोमल और प्यारे से स्पर्श का अहसास करते हैं। सच! कानू! तुम्हारे बारे में सोचकर हम चिंतित हो जाते हैं. कि हमारी प्यारी और गुड़िया जैसी कानू ने कुछ खाया भी है! कि नहीं।

हमें अच्छी तरह से पता है.. कि तुम्हारी सुन्दर आँखे हमारा इंतेज़ार कर रही होंगी.. और तुम भी कहती होगी,” कब आओगी माँ!”।

“ देखो! काना तुम खाना-वाना खा लेना.. हम जल्दी ही अपनी प्यारी कानू के पास लौट आएंगें.. और एक बार फ़िर हम सब मिलकर चल पड़ेंगे प्यारी और सबसे न्यारी कानू के संग”।

अगर आप भी हमारी तरह ही हमारी प्यारी कानू को याद करते हैं.. तो फ़िर हमेशा जुड़े रहिये कानू के प्यारे किस्सों के साथ.. और भेजते रहिये कानू को अपना प्यार।

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