रमेश को O.T में शिफट कर दिया गया था। सुनीता घर से किसी के आने के इंतेज़ार में वहीं O.T के बाहर बैठी थी। रमेश का अंदर पैर का आपरेशन शुरू हो गया था.. तभी थोड़ी देर में दर्शनाजी और विनीत वहाँ पहुँच जाते हैं। विनीत जो भी सामान डॉक्टर मंगवाते हैं.. लाकर दे देता है। दर्शनाजी भी बढ़िया टिप-टॉप होकर बेटे का हाल-चाल पता करने आ जातीं हैं। आपरेशन में काफ़ी समय लग जाता है.. पर ठीक- ठाक हो जाता है। माँ के चेहरे पर बेटे के दर्द का दुख न होकर एक हिस्सेदार के ढीले होने की ख़ुशी झलक रही थी।

रमेश को O.T से I.C.U में शिफट कर दिया गया था। उसी पैर में जिस पैर का पहले भी एक्सीडेंट हो चुका था.. डॉक्टरों ने इन्फेक्शन को रिमूव करने के लिये कट्स लगा दिये थे। रमेश को हैवी एंटीबायोटिक दिये जाने लगे थे.. जिससे इन्फेक्शन रिमूव हो सके। अस्पताल में रेगुलर ड्रेसिंग की जाती थी.. उन कट्स की.. ड्रेसिंग करते वक्त रमेश बुरी तरह से दर्द में चिल्ला उठता था।

“ मैं अपने ख़ातिर नो स्टार के जूते लाया हूँ!”।

विनीत और दर्शनाजी अस्पताल में बेहद खुश नज़र आते थे..  विनीत ने भी ख़ुश होकर अपनी माँ को बताया था, कि वो अपने लिये नए जूते खरीद कर लाया है। अस्पताल में मां-बेटों का चेहरा देखकर ऐसा लगता था.. मानो बेटे को तकलीफ़ न होकर कोई खुशखबरी आने वाली हो। सुनीता विनीत और दर्शनाजी की खुशी को महसूस भी कर रही थी, और देख भी रही थी। पर अफ़सोस तो इसी बात का था..  जो सुनीता देख रही थी.. और महसूस करती थी, वो रमेश को बता नहीं सकती थी.. क्योंकि दर्शनाजी ने तीर बिल्कुल निशाने पर साध रखा था। इस वक्त रमेश के दिमाग़ में रंजना के अलावा कुछ और घूम ही नहीं रहा था.. केवल रंजना और संपत्ति।

खैर! रमेश का आपरेशन तो हो ही चुका था, और दवाईयाँ चल रही थीं.. हर रोज़ की दर्दनाक ड्रेसिंग को झेल रहा था, रमेश। डॉक्टरों ने लगभग एक महीने की अस्पताल की अवधि बताई थी। सुनीता और विनीत के रोज़ के अस्पताल के चक्कर लग रहे थे। दर्शनाजी तो बाल-वाल रंगकर अस्पताल में बेटे को मिलने कम और एक फैक्ट्री की मालकिन बन अपने-आप को ज़्यादा दिखाने जातीं थीं।

रमेश का आपरेशन सही-सलामत हो चुका था, और अब रमेश I.C.U से अपने वार्ड में आ गया था। सारी भाग-दौड़ और सारे औपचारिक काम ख़त्म हो चुके थे.. अब जब रमेश ख़तरे से बाहर आ चुका था, तो रंजना को अस्पताल याद आया था। और वैसे भी सुनीता ने कह भी दिया था,” अरे! क्या बात है! आपकी वो रंजना तो आई ही नहीं देखने.. आपको!”।

यही बात रमेश ने रंजना को फ़ोन पर बता दी थी, फ़िर क्या था.. अपने-आप को संस्कारी और अच्छा दिखाने तो आना ही था.. रंजना को अस्पताल में।

“ तन्ने नमस्ते करे थी.. वा! और तन्ने नमस्ते कोनी लिये!”।

लो! जी! रमेश और रंजना का अस्पताल में भी नाटक शुरू हो गया था.. क्या अस्पताल का स्टाफ रंजना को देखकर कुछ भाँप जाएगा.. अस्पताल में रंजना और रमेश के नाटकों का सिलसिला जानने के लिये.. पढ़िये.. खानदान 86।

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