आज न छोड़ेंगे

बस हमजोली

खेलेंगे हम होली

चाहे भीगे कानू की चुनरिया

चाहे भीगे रे कानू

खेलेंगे हम होली

होली है!
“ बिना नाश्ता खाये होली खेलने नहीं जाना! आज हमनें सबके लिये गर्म-गर्म पकौड़े बनाए हैं!”।

“ अरे! वाह! फ़िर तो आज कानू के भी मज़े आ गए, कानू भी हमारे संग पकौड़े का नाश्ता खाएगी”।

“ हाँ! कानू के भी बाउल में डाल देना!”।

“ अरे! अरे! यह कहाँ जा रहे हो! गुब्बारों की बाल्टी लिये!’।

“ माँ हम नीचे सड़क पर जा रहे हैं.. वहीँ सभी बच्चे जमा हैं.. हम होली खेलकर आ जाएँगे!”।

“ कानू! कानू! रुको!!”

और कानू न रुकी थी.. बच्चों के पीछे ही बिना चैन और पट्टे के भाग गई थी। हमनें भी तुरन्त ही सारा काम रोका था.. और कानू के पीछे चैन और पट्टा लेकर भाग लिये थे। कहीं किसी को काट-वाट लेती, तो मन जाता होली का त्यौहार!

नीचे जाकर हमनें देखा, कि कानू बच्चों संग मस्त हो गई थी.. अपने आगे वाले पैर रंगों की बाल्टी में डालकर कानू ने अपने पैर रंग- बिरंगे कर लिये थे। बच्चे तो रंगों, गुब्बारों और पानी में खेल ही रहे थे.. हमारे ऊपर भी रंग और पानी डाल रंग- बिरंगा कर दिया था। कानू भी पूरी तरह से रंग-बिरंगी और गीली हो चुकी थी। अब तो बस! कानू की पिंक कलर की जीभ ही साइड में लटकी हुई दिख रही थी.. हम कानू को अपने संग ऊपर ले आए थे.. नाज़ुक शरीर होने के कारण कानू के बीमार होने का ख़तरा था। कानू को निहला-धुलाकर हमनें सूखने के लिये छत्त पर ही बाँध दिया था। आज होली के दिन हमारे मौहल्ले में भी होली की काफ़ी रौनक रही.. होली मिलन समारोह हुआ.. और सबनें खुशी से आपस में गले मिलकर त्यौहार मनाया।

हर साल की तरह इस बार भी हमारी कानू संग होली यादगार मनी..  कानू और हमारे पूरे परिवार की ओर से आप सभी को होली के त्यौहार की शुभकामनाएं!!

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