सुनीता पुलिस स्टेशन में पुलिस डिपार्टमेंट के लोगों के साथ अपना केस डिसकस करने में लगी हुई थी.. प्रहलाद भी अपनी माँ के साथ आना चाहता था.. पर सुनीता ने बेटे को थाने लाना अपने साथ ठीक न समझा था। वैसे हमारे समाज में महिलाओं का पुलिस स्टेशन में यूँ बैठना अच्छा नहीं समझा जाता है.. पर मजबूर और दिमाग़ से परेशान थी.. सुनीता। कोई भी उसको ससुराल में न ही समझाने वाला था.. और न ही सही सपोर्ट ही मिल रही थी.. अब जो सही लगा वक्त के हिसाब से कर ही डाला था.. बेचारी ने।

“ पुलिस वालों और सुनीता के बीच सवाल जवाब शुरू हो गए थे। सुनीता की आँख देखते ही पुलिस वालों ने कहा था..

“ उसी की हरकत होगी!”।

“ हाँ!”

“ कहाँ है! आपका हसबैंड इस वक्त!”।

“ अपनी गर्ल फ्रेंड के साथ!”।

“ हा! हा! हा! मैडम रखैल होगी! उसकी.. ये पैसे वालों के यहाँ आम चोंचले हैं। आता होगा रोज़ मस्ती मार कर!”।

“ हाँ! फ़िर आकर बदतमीज़ी से बात करता है.. और दिमाग़ ख़राब करता है.. वो अलग। मेरे बच्चे भी अब डिस्टर्ब होने लगे हैं”।

“ आप अपनी कंप्लेंट को राइटिंग में लिखिए.. और हमें अपने हसबैंड का फ़ोन नम्बर दीजिये। आपके हस्बैंड और उसकी वो गर्ल फ़्रेंड जो आप कह रहीं हैं.. दोनों को एकसाथ ही देख लेंगें!”।

उनमें से एक पुलिस वाला थोड़ा सा ज़्यादा ग़ुस्से वाला और सब में से थोड़ा सा तेज़ मिज़ाज़ का था। उसने सुनीता को  देखते हुए कहा था..

“ फेंक के मारूँगा!.. साले की गर्ल फ़्रेंड को और उसको एक-तरफ़! आने दो साले को! ऐसी आँख फोडूंगा.. आँखों से देखना भूल जाएगा!’।

सुनीता ने अपनी कंप्लेंट राइटिंग में लिख दी थी। यानी अपनी F.I.R कर दी थी। उसके बाद..

“ मैडम और कोई बात!”।

“ हाँ! माँ भी शामिल है!”।

“ सास आपकी!”।

“ हाँ!”

“ बुलवा लें क्या! बुढ़िया को भी!”।

“ आयेंगी नहीं! बहुत ड्रामेबाज हैं!”।

“ आप मत चिन्ता करिए.. यहाँ तो अच्छे-अच्छे ड्रामे भूल जाते हैं!”।

“ है! कोई फ़ोन नम्बर उस बुढ़िया का! अगर है.. तो दीजिये.. अभी टाइट करते हैं.. उसको भी!”।

“ नहीं मेरे पास उनका कोई भी फ़ोन नम्बर नहीं है.. हस्बैंड के पास ही मिल पायेगा आप लोगों को!”।

“ चलो! ठीक है!.. मिला नम्बर”।

रमेश के पास पुलिस का फ़ोन पहुँच जाता है। रमेश की थाने में फ़ोन पर बातचीत कुछ इस तरह से होती है..

पहले बहुत देर तक घन्टी जाती रहती है.. पर रमेश फ़ोन नहीं उठाता।

“ फ़ोन नहीं उठा रहा!”।

“ दोबारा से ट्राय कर! नहीं तो उठा लाएँगे साले को! नोटंकी पेल रहा है! साला!”।

अबकी बार नम्बर लगने पर रमेश फ़ोन उठा लेता है..

“Hello!”

“ हाँ! Hello! आपके ख़िलाफ़ कंप्लेंट दर्ज करवाई है.. रमेश नगर थाने आ जाइये!.. मैडम बैठीं हैं!”।

पुलिस की आवाज़ सुनकर रमेश की आवाज़ फ़ोन पर थोड़ा कांप उठती है..और रमेश पुलिस स्टेशन न आने का बहाना करता है। लेकिन पुलिस डिपार्टमेंट तो अपने नाम होता ही है..

“ फ़ौरन आजा! नहीं तो जहाँ है.. वहीँ से उठा लाएँगे!”।

सुनीता वहीं बैठी सारा वार्तालाप सुन रही थी।

थोड़ी देर बाद रमेश पुलिस स्टेशन पहुँच जाता है। और पुलिस वालों के सामने बैठकर सच में काँपने लगता है।

“ मुझे यहाँ से कैसे भी करके निकाल!”।

रमेश ने अपने सामने बैठी सुनीता से कहा था..” नहीं तो मैं अपने गले में कुछ भी घोंप डालूँगा!!”।

अरे! अरे! रमेश बाबू आप तो डर गए.. अपने घर में तो आप शेर बनते हैं.. आप की आवाज़ की बुलंदी को क्या हुआ.. निकल ही नहीं रही.. गले से!! एक आधा थप्पड़ आप भी तो खा-कर देखिये.. और वो भी अपनी आँख पर.. तभी पता चलेगा.. थप्पड़ का दर्द कितना मीठा होता है।

“ अब आप बीच में बिल्कुल मत आना!”।

अब क्या होगा रमेश का! पुलिस वाले तो आदमी की खाल ही खींच लेते हैं। पुलिस स्टेशन पर रमेश के साथ कैसा सलूक किया गया..  रमेश की क्या हालात हुई.. मिली किये की सज़ा.. अगर आप भी रमेश की करनी के फल के बारे में जानने के इक्छुक हैं.. तो पढ़ते रहिये खानदान।

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