“ ऐसी ही सफ़ारी हम रमेश को भी दिलवा देंगें”।

दर्शनाजी ने सुनीता से कहा था। हालाँकि सुनीता को विनीत की नई सफ़ारी से कोई भी लेना-देना नहीं था.. लेकिन दर्शनाजी अपने परिवार के नाटकों के हिसाब से ही दिमाग़ लगाए जा रहीं थीं। गाड़ी कंपनी के नाम थी.. इसलिये रमेश को बहला दिया गया था.. इसमें तेरा भी हिस्सा है। बाकी तो विनीत और विनीत का परिवार ही उस गाड़ी को इस्तेमाल करते थे।

देखा जाए तो दर्शनाजी और रामलालजी दोनों का ही दिमाग़ तेज़ी से काम करता था.. बड़े बेटे के आगे.. सही दस-लाख की गाड़ी का टुकड़ा डाला था.. ताकि वो आगे मुहँ न खोल सके। इसको कहते हैं.. पंछी के पंखों को बाँधकर उड़ान भरने से रोकना। अपने दोनों बेटों को अपने हिसाब से दाना डालते हुए.. रामलाल विला नाम के पिंजरे में बढ़िया कैद कर रखा था। प्रॉपर्टी नाम का दाना दोनों में से किसी भी कबूतर को उड़ान नहीं भरने दे रहा था। और न ही अपने मालिक दर्शनाजी के ख़ौफ़ से रामलाल विला में ही अपने हिसाब की ज़िंदगी जी पा रहे थे। ऐसा क्या पैसा हो गया.. जहाँ साँस लेना भी मर्ज़ी का न हो।

गाड़ियों का तो नाटक ही बना डाला था.. इस घर में.. वही कहीं कोई उड़ान न भर ले. तो पहले ही पैसे को ब्लॉक कर डालो.. फ़िर देखते हैं.. कोई कैसे क्या करता है।

गड्डी! गड्डी! गड्डी.. बस! गड्डी का तो जैसे गाना ही हो गया था। आगे भविष्य पूरा दाव पर लगा रखा था.. इस परिवार ने।

रमेश सिर पर गाड़ी का जुनून लिये एक बार फ़िर दर्शनाजी की पुश्तेनी ज़मीन बेचने हरियाणे निकल गया था। हरयाणे में पता नहीं किस की सफ़ारी रमेश के हाथ लगी थी.. भगवान जाने.. कौन लोग थे, वो यह कोई नहीं जानता था। बस! इतना ज़रूर पता था.. कि जिनकी सफ़ारी गाड़ी थी.. वे किसी तरह से दर्शनाजी के परिवार को जानते थे

“ मेरी दीदी बताओ थी.. रमेश सुपारी गड्डी ले रया है”।

दर्शनाजी ने अपनी बहन के बारे में बताते हुए कहा था.. कि उनके पास उनकी बहन का फ़ोन आया था.. रमेश ने सफ़ारी गाड़ी ख़रीदी है। सुनीता को सासू- माँ की बात सुनते ही शक हो गया था। सुनीता ने मन ही मन सोचा था,” अब ये कौन सा उल्टा काम कर डाला.. रमेश ने। आजतक और अभी तक तो कोई भी अक्ल का काम किया नहीं है।

“ अरे! साढ़े-तीन लाख की पड गई.. अपने को सफ़ारी!.. घर में किसी से मत कहना.. अच्छा है!. खूब जलेंगे!.. मज़ा आएगा!.. अरे! असल में तेरह लाख की है!”।

रमेश ने सुनीता से फ़ोन पर कहा था।

रमेश की बात सुनकर सुनीता थोड़ी हैरान थी.. और रमेश का यह फ़ालतू सफ़ारी गाड़ी खरीदना सुनीता को बिल्कुल भी पसन्द नहीं आया था। यह फ़ालतू के शौक और दिखावे.. पर सुनीता बेचारी करती भी क्या.. रमेश कमाल का किरदार जो मिला था.. बेचारी को।

“ मुबारक हो!.. रमेश ने नई सफ़ारी ख़रीद ली!”।

“ धन्यवाद!.. पिताजी!”।

रमेश ने गाड़ी खरीदने की ख़बर दिल्ली पहुँचा दी थी। मुकेशजी ने सुनीता को नई गाड़ी आने के लिये मुबारक बाद भी दी थी।

दाल में कुछ काला ज़रूर था.. जो अभी सुनीता को समझ नहीं आ रहा था। बच्चे नई गाड़ी आने की ख़ुशी में नाच रहे थे।

“ इस गाड़ी को थोड़े दिन रखकर निकाल देना”।

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