सुबह आराम से आठ बजे दोबारा चाय पीकर सो जाना.. दोपहर को फैक्ट्री के लिये तैयार होकर मातारानी के साथ मिलकर सारे घर की चुगली करना और सबको बेहिसाब गालियाँ देकर काम पर जाना रमेश का रोज़ का रूटीन बन गया था। रमेश की माँ अपने फ़ायदे के लिये रमेश का बुरी तरह से फ़ायदा उठाये चल रही थी। दर्शनाजी का सीधा निशाना इस वक्त रामलालजी ही थे। रामलालजी के बीमार रहने का फ़ायदा लगभग घर का हर सदस्य उठा रहा था। विनीत और दर्शनाजी लीडिंग रोल में थे। दर्शनाजी का इरादा सीधा-सीधा फैक्ट्री की मालकिन बनने का था.. इरादा तो विनीत भी अपनी माँ को लात मारकर यही रखता था। रमेश को यही ख़बर नहीं थी.. कि उसके घर में कौन सा मोहरा कौन सी चाल पर है। रमेश अपनी माँ पर पूरा विश्वास करते हुए.. माँ के ही दिखाये हुए रास्ते पर अग्रसर हो रहा था। हालाँकि सुनीता ने कई बार रमेश को बताया भी था,” अम्माजी सारे उल्टे काम करवा कर आख़िर में आपको धोखा दे देंगीं”।

“ वो मेरी माँ है!.. मुझे धोखा देगी ना.. देने दो!”।

रमेश ने सुनीता की बात का जवाब दिया था।

रमेश का दिमाग़ दिन पर दिन बुरी तरह से ख़राब करने मे लगी हुई थी.. दर्शनादेवी। यहाँ तक कि अब तो रामलालजी को भी बहुत ज़लील करवाया करती थी.. रमेश की ज़बान से.. और जब अति हो जाया करती थी, नाटक की.. तो तुरन्त ही डॉयलोग बदली कर शुरू हो जाया करती थी,” तू मेरे लिये ना बोले!!.. ना बोल्या कर!!”।

कमाल की शातिर दिमाग़ और खतरनाक औरत थी.. चेहरे को देखकर इसके बारे में अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता था। बदतमीज़ी और बदसलूकी में अव्वल रहा करती थी। वैसे देखा जाए.. तो इस अनपढ़ औरत की पॉवर की दाद देनी पड़ेगी.. कमाल की महिला निकली.. छोटी अँगुली पर सारे घर को नाच नचा रखा था।

रामलालजी रमेश के उनके लिये बोले हुए.. अपशब्दों से परेशान हो जाया करते थे..  और कभी-कभी बेचारे रोने भी लगते थे। एक बार ज़्यादा परेशान होते हुए.. रामलालजी ने सुनीता से कहा था..

“ रमेश से बोलो हमें उल्टा-सीधा ना बोले.. नहीं तो हम कुछ भी कर बैठेंगे!”।

“ ठीक है!.. पिताजी!. मैं उन्हें समझाकर कह दूँगी”। सुनीता ने रामलालजी को आश्वासन दिलाते हुए कहा था।

“ मैं तुम्हारी कही हुई बात का कैसे विश्वास कर सकता हूँ.. अगर रमेश ने तुम्हारी बात नहीं मानी.. तो न तो मैं तुम्हें घर से बाहर निकाल सकता हूँ.. न ही तुम्हारा और कुछ हो सकता है”। रामलालजी ने रमेश के लिये सुनीता के जवाब पर कहा था।

रामलालजी जब माँ-बेटों का पैसों के लिये सीमा पार कर नाटक हो जाता था.. तो अपनी मदद के लिये विनीत को बुला लिया करते थे। विनीत भी कम न पड़ता था.. बाप का सगा बन पीठ पीछे कोई और ही साज़िश करे बैठा था। लेकिन विनीत के हाव-भाव से कौन सा खेल, खेल रहा है.. पता नहीं लगाया जा सकता था। रमा और विनीत एकदम पक्की गोटी थे.. रामलाल विला में चल रहे खेल के।

एक दिन तो रामलालजी और रमेश में अति हो गई थी..  दर्शनाजी ने रमेश को इतना उकसा दिया था.. कि रामलालजी के पास अपनी मदद के लिये पुलिस स्टेशन जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। रामलालजी गाड़ी उठाकर तेज़ी से पास वाले थाने पहुँचे थे। बच्चों ने अपने दादू को जाते हुए.  और वापिस आते हुए देख लिया था।

“ दादू पुलिस ले आए!”।

बच्चों ने घर में ऊँची आवाज़ में शोर मचा दिया था।

वाकई रामलालजी इतने दुखी हो गये थे.. कि पुलिस लेकर आ गए थे। घर में पुलिस आई है.. यह ख़बर सुनकर विनीत भी दौड़ा चला आया था.. घर में रमेश के ख़िलाफ़ अच्छी-खासी महफ़िल जमी हुई थी। रमेश के अच्छे-ख़ासे चर्चे पुलिस वालों से किये जा रहे थे। विनीत और रामलालजी तो बिना ही साँस लिये बोले जा रहे थे। वैसे पुलिस के सिपाही भी घरेलू मामले के खूब मज़े ले रहे थे। जानते थे.. कुछ होना-जाना तो है.. नहीं, चलो! मज़े ही ले लेते हैं।  

खैर! पुलिस वाले बातचीत कर और रमेश को समझा कर निकल गए थे। रमेश और माताजी पर किसी पुलिस वाले का कोई डर नहीं था। दोनों बात को भूलकर वैसे के वैसे ही हो गये थे।

“ पापा नई सफ़ारी ला रहे है” ।

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