घर मे वही माहौल था.. आधे दिन सास की चिक-चिक, सुनीता का दिमाग़ इसी तैयारी में लगा रहता था.. नीचे जाकर कौन सी बात का क्या जवाब देना है। बच्चों में शाम हो जाया करती थी.. शाम होते ही रमेश के माँ की सीख के हिसाब से नाटक शुरू हो जाया करते थे,” रमेश आज या फ़िर उस बिल्ली ने देख कर हँसी.. या उससे बात करे है!”।
दर्शनाजी का तो रोज़ का जैसे धंधा ही बन गया था… रमा और सुनीता की छोटी से छोटी चुगली रमेश को करना और घर में ज़बरदस्त हंगामा करवाना। रमेश अपनी माँ की नौकरी करने में इतना वयस्त हो गया था.. कि अपने आप और अपनी माँ के अलावा उसे कोई नज़र ही नहीं आता था। घर में हर वक्त एक अजीब तनाव से घिरी रहती थी.. सुनीता। पता नहीं क्यों उस तनाव के बीच उस अजनीबी शख्स की एक झलक सुनीता की आँखों के आगे घूम जाया करती थी। तुरन्त ही उस झलक से सुनीता अपना ध्यान हटा लिया करती थी।
हर रोज़ वह शख्स सुनीता को प्रहलाद के रस्ते में ज़रूर दिखाई देने लगा था। न चाहते हुए भी आते-जाते सुनीता की नज़रें अब उसे ढूँढने लगीं थीं। सुनीता के मन ने बहुत समझाया.. कि अपना रास्ता बदल लो!.. पर पता नहीं क्यों सुनीता के क़दम उस अजनबी शख्स के रास्ते से नहीं हटे। टाइम के इधर-उधर होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ा था.. वह अजनीबी शख्स सुनीता के सुबह स्टॉप पर जाने का इंतज़ार करने लगा था.. और उसके दफ़्तर से लौटने का लंच टाइम भी प्रहलाद की छुट्टी वाला ही था। सुनीता का दिमाग़ तो रमेश में ही होता था.. पर दिल उस अजनीबी शख्स में जा अटका था।
बच्चे छोटे थे.. इसलिये सुनीता भी छुट्टी वाले दिन मॉर्निंग वॉक पर जाने लगी थी.. और यह बात अजनीबी शख्स ने नोट कर ली थी.. वह सुनीता से छुट्टी वाले दिन भी मॉर्निंग वॉक पर मिलने लगा था। सुनीता से मिलने का कोई भी मौका शख्स ने नहीं छोड़ा था। रमेश तो सुनीता के साथ कभी होता ही नहीं था.. प्रहलाद के बस स्टॉप पर भी बहुतों ने सुनीता से सवाल किया था,” आँधी हो, बारिश हो.. आप ही दिखतीं हैं.. इसके पिता को तो कभी नहीं देखा!”।
सुनीता के पास चुप रहने के अलावा इस सवाल का कोई भी जवाब नहीं था।
फ़िर एक दिन…
“ गुड़ मॉर्निंग!. मैं वरुण!.. और आप!”।
सुनीता को मॉर्निंग वॉक पर उस अजनीबी शख्स ने आख़िरकर रोक कर पूछ ही लिया था।
“ सुनीता!”।
सुनीता ने वरुण के प्रश्न का उत्तर दे दिया था। वरुण और सुनीता में आपस मे थोड़ी सी बातचीत मॉर्निंग वॉक पर हो गई थी। वरुण ने सुनीता को अपने बारे में बताया था.. कि वो भी शादी-शुदा है.. सरकारी डिपार्टमेंट में इंजीनियर है।
सुनीता और वरुण की बातचीत मॉर्निंग वॉक पर दोस्ती में बदल गई थी। पर सुनीता ने वरुण को रमेश के बारे में कुछ भी न बताया था। वरुण एक अच्छा संस्कारी इंसान था.. तमीज़ और तहज़ीब में बिल्कुल भी मार नहीं खाता था। न चाहते हुए भी सुनीता ने रमेश को वरुण के साथ आँकना शुरू कर दिया था। पर वरुण उन लोगों में से नही था.. वरुण ने सुनीता से जान-पहचान और दोस्ती का कोई भी फ़ायदा नहीं उठाया था।
पर फ़िर भी सुनीता के मन ने एक बार सुनीता से चुपके से कह ही डाला था,” काश!.. मेरा हमसफ़र वरुण जैसा ही होता!”।
जो सुनीता मन में सोच रही थी.. वो उसनें बातों-बातों में वरुण से कह डाला था..
“ अगर हम आज से दस साल पहले मिले होते तो!”।
सुनीता ने वॉक करते-करते वरुण से सवाल किया था।
“ तो!” वरुण ने कहा था।
“ हो सकता है!.. कि हम जीवन साथी होते!”। सुनीता ने वरुण से कहा था।
“ गुड़!.. I like it.. पर ऐसा नहीं होता!.. आपको जो अभी जीवन साथी मिला है.. इस जन्म में वही आपका हमसफर होता.. फ़िर चाहे वो आपको कभी-भी मिलता!”।
वरुण ने सुनीता को बात स्पष्ट करते हुए कहा था।
अच्छा समझदार इंसान था.. वरुण.. और सुनीता के कुछ भी बोलने से पहले ही उसे समझ जाया करता था।
“ सुनीता!.. कभी अपने हस्बैंड से भी मिलवाओ!.. ले आओ!.. उन्हें भी कभी वॉक पर.. देखें तो सही.. कौन है.. वो खुशनसीब!”।
वरुण ने रमेश से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की थी। सुनीता ने वरुण के आगे रमेश की तारीफों के बड़े-बड़े पुल बाँध रखे थे.. वरुण के आगे सुनीता ने रमेश को बहुत बड़ा फैक्ट्री वाला करके बता रखा था। पर अब सुनीता सोच में पड़ गई थी,” अगर रमेश को वरुण ने देख लिया.. तो सारा इम्प्रैशन ख़राब हो जाएगा.. वरुण तो रमेश के बात करने के सलीके से ही समझ जाएँगे.. नहीं!.. नहीं उन्हें वॉक करना पसंद ही नहीं है!”।
सुनीता ने रमेश को लेकर बहाना बना दिया था। सुनीता और वरुण अक्सर मॉर्निंग वॉक पर मिलने लगे थे.. और सुनीता को अपना यह अनजाना दोस्त वरुण भी दुनिया से अलग अच्छा लगने लगा था।सुनीता का केंद्रबिंदु अब वरुण की कही हुई बातें और उसके दो बच्चे हो गये थे.. रमेश का बोलना सुनीता के ऊपर होकर जाने लगा था।
वरुण सुनीता के लिये एक काल्पनिक दोस्त की तरह से हो गया था.. जिसके साथ अपनी कल्पना कर सुनीता मन ही मन अब खुश रहने लगी थी। पर हकीकत में पटरी पर दो बच्चों को लिये अब भी सुनीता रमेश के संग ही चल रही थी.. मन की उड़ान केवल खुश करने का सहारा थी.. पर हकीकत तो रमेश ही था।
“ मने कोनी बेरा हरियाणे में कौन से!”।