बार-बार कुछ पलों के लिये नीला होना भरत का.. केवल सुनीता ने ही देखा था। इसके बावजूद भरत का पेट भी फूल रहा था। सुनीता के कमरे में लगातार अस्पताल की नर्स राउंड लगाया करती तो थीं.. पर उनको भरत को लेकर यह बात किसी ने भी न बताई थी। बच्चे का पेट भी फुला हुआ था। दोनों बच्चों में भी बहुत अन्तर लग रहा था.. नेहा एकदम साधारण बच्ची लगती थी, लेकिन भरत में कोई परेशानी नज़र आया करती थी.. जो अभी डॉक्टर को न बताई गई थी। खैर! डॉक्टर साहिबा और पूरे अस्पताल के स्टाफ़ को मिठाई देकर अब मुकेशजी सुनीता और दोनों बच्चों को डिस्चार्ज करवा कर घर ले आये थे। घर आने के बाद भी भरत के हालात में कोई सुधार न था.. उधर नेहा को भी थोड़ा सा पीलिया हो गया था। जुड़वाँ बच्चों की ख़ुशख़बरी सुन इंदौर से विनीत और रमेश भी आ रहे थे। भरत की हालत दिन रोज़ खराब होती जा रही थी। भरत को मुकेशजी और सुनीलजी ने चाइल्ड स्पेशलिस्ट को दिखाने का निर्णय लिया था। भरत की हालात ठीक न थी.. उधर विनीत और रमेश भी आ रहे थे.. बच्चे की हालत देखते हुए विनीत और रमेश को केवल मुकेशजी ही स्टेशन लेने गये थे.. अनु और सुनीलजी भरत को लेकर चाइल्ड स्पेशलिस्ट के पास निकल लिये थे।” He is a going soul.. बचा सकते हो तो बचा लो!”।

यह शब्द डॉक्टर के थे.. जो डॉक्टर साहब ने भरत के चेकउप के बाद सुनीलजी से कहे थे। सुनीलजी और अनु बहुत ही मुश्किल से भरत को मुहँ में फूंक मारते हुए उसे घर तक लाए थे। मुकेशजी भी रमेश को लेकर अब स्टेशन से घर आ गए थे.. विनीत संग न आए थे.. “ एक गुड्डा और एक गुड़िया की ख़बर सुन कर विनीत को कुछ अजीब सा महसूस हुआ था.. रमेश और मुकेशजी के सामने विनितजी ने बनावटी खुशी तो ज़ाहिर कर दी थी.. पर मन की बात तो चेहरे पर आ ही जाती है.. और समझदार लोग समझ भी जाया करते हैं.. बेशक कोई बोले कुछ नहीं। विनितजी स्टेशन से ही अपने निजी काम से निकल गए थे,” मैं बाद में मिलने आऊँगा.. बाबूजी!”। विनितजी ने कहा था।

रमेश और मुकेशजी के घर पहुँचने से पहले ही भरत मामा-मामी संग घर में दाख़िल हो चुका था…मुकेशजी ने घर आते ही भरत के बारे में सुनील से पूरी जानकारी ले ली थी.. और रमेश भी अपने तीनों बच्चों से मिल लिये थे। रमेश को भी भरत के बारे में पूरी जानकारी दे दी गई थी.. लेकिन रमेश ने पिता का कम रिश्तेदार का रोल करते हुए.. सारी ज़िम्मेदारी मुकेशजी के कन्धों पर ही डाल दी थी। बाप का फ़र्ज़ तो अब करना बनता था.. बातें तो बड़ी-बड़ी किया करता था.. रमेश!.. अब तो अपना ही बेटा इतना बीमार था.. फ़िर ख़ुद दौड़-भाग करने की बजाय.. नाना-मामा को क्यों दौड़ाया। खैर! हिसाब से ज़्यादा शरीफ़ लोगों का दुनिया फ़ायदा उठाती आई है.. यहाँ भी कुछ ऐसा ही था।

रमेश बच्चों से मिल और भरत की बीमारी के बारे में जानकर भी हरियाणे निकल गए थे.. भरत को मुकेशजी ने शिशुओं की नर्सरी में भर्ती करवा दिया था.. लगातार एक हफ़्ते तक मुकेशजी और परिवार भरत से मिलने जाते रहे.. भरत को काँच के अन्दर रखा हुआ था.. मासूम बालक की हालात में कोई भी सुधार नज़र नहीं आ रहा था.. यह सूचना अब इंदौर भी पहुँच गई थी.. की भरत को शिशु नर्सरी में रखा गया है। रामलालजी ने तुरन्त यह बात सुनकर विनीत जिस पंडित के पास जाया करता था.. उससे सलाह करी.. पंडित ने एक भभूति रामलालजी को देते हुए कहा था,” इस भभूति को शिशु के माथे पर लगा देना.. बच्चा सारे कष्टों से मुक्त सही-सलामत घर आ जायेगा।

इसी बीच एक दिन रात को विनितजी का मुकेशजी के घर आना हुआ था,” बाबूजी में भरत को देखने आया हूँ”। विनीत ने मुकेशजी को उनकी बिल्डिंग के नीचे बुलाकर कहा था।

“ रात के ग्यारह बज रहें हैं.. इस वक्त आपको कौन सी नर्सरी खुली मिलेगी.. आज रात आप हमारे साथ यहीँ रुक जाओ!.. कल सवेरे आपको भरत से मिलवा देंगें”। मुकेशजी ने विनीत से कहा था।

विनीत ने अपने-आप को व्यस्त दर्शाते हुए. .. और बात को टालमटोल करते हुए.. वहाँ से निकल गया था। विनीत का यूँ भरत से मिले बग़ैर जाना.. रमेश और विनीत के रिश्तों की सच्चाई बयां कर रहा था.. और दूसरी तरफ़ विनीत की रमेश के दो बेटों के बाप बनने पर जलन।

भरत के हालात में चाइल्ड नर्सरी में होने के बावजूद भी कोई भी सुधार दिखाई नहीं दे रहा था.. इसलिये मुकेशजी ने भरत को वहाँ से निकाल घर लाने का फैसला ले लिया था। रामलालजी ने भी पंडितजी की भेजी हुई भभूति रमेश के पास इंदौर से पहुँचा दी थी.. जो वो लेकर सीधे हरियाणे से दिल्ली पहुँच गए थे। और मुकेशजी के हाथ में भभूति का लिफाफा देते हुए कहा था,” पिताजी! भरत को अस्पताल से निकालते वक्त उसके माथे पर लगा दीजिएगा.. भरत सलामत हो जाएगा”।

मुकेशजी ने रमेश के हाथ से भभूति का लिफाफा ले.. भरत को माथे पर भभूति लगाकर बच्चों की नर्सरी से घर ले आये थे। भरत को सबनें देखा था.. मासूम बच्चे की हालत में रत्ती भर सुधार न था.. वैसा का वैसा ही वापिस आ गया था। भरत का पेट बहुत फुला हुआ था.. और शरीर का रंग भी नीला सा ही था। रमेश भरत के अस्पताल से आने के बाद यहाँ अपनी ससुराल सुनीता और बच्चों के पास ही रुक गया था। अपने तीनों बच्चों के संग सुनीता और रमेश आज एकसाथ थे.. प्रहलाद ने अपने बहन-भाई को बिस्तर पर बैठ प्यार भरी नज़र फेंक कर देखा था।

“ अरे! सारे शरीर पर चीटियाँ!”।

अगले दिन जब सुनीता उठी.. तो भरत का शरीर देखकर हैरान परेशान रह गई थी..  बच्चे के शरीर को पूरा चींटियों ने खाया हुआ था.. लाल रंग की चीटियाँ उसके शरीर पर थीं.. भरत का पेट भी बहुत फुला हुआ था.. दोपहर का समय था..भरत सुनीता की गोद में था.. और केवल एक ही बूंद माँ का दूध भरत के पेट में गया था.. दूसरी दूध की बूंद बच्चे के मुहँ से बाहर निकल गई थी..  सुनीता, रमेश और अनिताजी पास के अस्पताल में भरत को लेकर भागे थे। “ बच्चे को अन्दर ले जाकर oxygen लगाओ!”।

डॉक्टरों ने भरत को देखकर कहा था।

“ हे! देवी माँ!.. भरत की रक्षा करो!.. उसे बचा लो!”।

अनिताजी बाहर बैठी …दोनों हाथ जोड़ नाती की सलामती के लिये प्रार्थना कर रहीं थीं।

कुछ पलों पश्चात ही….

“ iam sorry!.. बच्चा नहीं रहा!”।

डॉक्टर ने बाहर आकर बताया था।

और रमेश और सुनीता फूट-फूट कर रो पड़े थे। भरत को घर लाया गया था। जिस दिन भरत ने अपने प्राण त्यागे.. वो निर्जला एकादशी का दिन था.. इस दिन मुक्ति पाने के लिये तो बड़े-बड़े सन्त महात्मा भी तप करते हैं।

भरत कोई योगी महात्मा और एक पवित्र आत्मा थी.. जो बचा-कुचा संसार और रिश्तों का हिसाब-किताब पूरा कर निर्जल एकादशी वाले दिन परमात्मा में हमेशा के लिए लीन हो गई थी। मुकेशजी का सारा परिवार शोक में डूब गया था।

भरत को क्या हुआ और क्या नहीं.. क्या बीमारी हो गई थी.. नन्हें से शिशु को!.. इस बात का पता ही नहीं चल पाया.. होनी बलवान थी.. विधि का विधान अटल था!!

“ Bye!.. Dilip kumar!”

क्या! इतने बड़े.. सुपरस्टार.. और लेजेंड.. दिलीप साहब आएँ हैं।

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading