समय के चलते मुकेशजी के यहाँ नई खुशखबरी ने जन्म लिया था। अभिमन्यू और संस्कृति तो पहले से ही थे.. सुनीलजी को वक्त ने एक और सुपुत्र.. सिद्धांत के जन्म से सम्मनित किया था। अब सुनीलजी तीन बच्चों के पिता थे। इसी दौरान विनितजी का भी किसी काम से दिल्ली जाना हुआ था.. जाना तो मायके सुनीता को था, पर विनितजी का पहले दिल्ली आना हो गया था.. इसलिये सुनीता का कार्यक्रम उनके इंदौर पहुँचने के बाद ही बना था। विनितजी सिद्धांत के जन्म पर दिल्ली में ही थे.. अनिताजी और मुकेशजी के अस्पताल में अनु के साथ होने पर भी उनकी ख़ातिरदारी में कोई भी कमी नहीं रखी गई थी। विनितजी इस दौरान एक रात दिल्ली में ही रुके थे। रात उन्होंने सुनीता के छोटे भाई बबलू के कमरे में बिताई थी। बबलू का कहना था,” विनीत भाईसाहब न तो ख़ुद ही रात भर सोए और न ही मुझे ही सोने दिया.. सारी रात इन्होंने अपने घर की चुगली करने में ही बीता दी थी। भाईसाहब कह रहे थे.. कि मेरे लड़का नहीं है.. इसलिये घर में मुझे और रमा पर ताने कसे जाते हैं। अरे! मुझे क्या लेना-देना, कि विनीत भाईसाहब के साथ घर में क्या तमाशा हो रहा है..अपनी प्रॉबलम्स बता-बता कर रात भर में उन्होंने मेरा भेजा ही फ्राई कर डाला था”।

खैर! सही कह रहा था.. बबलू! विनीत की भी अपने घर की चुगली बाहर वालों से करने की बहुत ही बुरी आदत थी। अब घर में तो कुछ करते बनता नहीं था.. तो चलो! बाहर वालों की जान ही खा डालते हैं। खैर! अभी विनीत वापिस इंदौर पहुँचा ही नहीं था.. कि सुनीता अपने माँ-बापू के पास प्रहलाद को लेकर इंदौर आ गई थी। और प्रहलाद अपने ताऊ से अपनी नानी घर पर मिला था। अब विनीत ने अपने हिसाब से ही नानी के घर प्रहलाद के लाड़-प्यार पर ध्यान देते हुए, इंदौर में चुगली करी थी.. “ प्रहलाद को तो उनके घर में कोई पूछ ही नहीं रहा था.. वहाँ तो बस! सुनीलजी के बच्चों की ही पूछ थी”। यह बात सुनीता को रमेश ने फ़ोन पर विनीत के इंदौर पहुँचने के बाद ही बता दी थी।

यह तो खैर! कोई बात न थी.. रामलालजी के परिवार की ख़ास आदत थी.. अपनी सहूलियत के हिसाब से इधर की उधर बात करना। सुनीता अब मायके में सिद्धांत के होने की खुशी में भाभी के जापे के लिये रहने आई थी। विनितजी के दिल्ली में होते हुए ही.. बबलू सुनीता को इंदौर से ले आया था। पर अब विनितजी दिल्ली में अपना काम ख़त्म कर इंदौर वापस चले गए थे। अब सुनीता तो अनिताजी के बुलाने पर भाभी के जापे के लिये महीना-डेढ़ के लिये आ गई थी.. उधर मौके का फ़ायदा उठा दर्शनाजी रमेश के दिमाग़ की दही बनाने में लग गईं थीं। अब जब अनिताजी और मुकेशजी जान चुके थे.. कि परिवार तिकड़मों का है..  और बिटिया अपना घर बसाने में बार-बार असमर्थ हो रही है.. तो ना ही बुलाया होता भाभी के जापे पर। पर वही बात आ जाती है.. शरीफ़ लोगों की सोच जहाँ पहुँच नहीं सकती, वहाँ से कुछ लोगों की सोच शुरू होती है।

भतीजे के आने की खुशी में सुनीता का समय बहुत ही अच्छा बीत रहा था.. सुनीता माँ के साथ घर के सारे काम-काज में हाथ बंटवा रही थी। अब भाभी जो न उठ सकती थी.. बिस्तर से। सुनीता को इस बार मायके में रहकर कुछ टेंशन का अहसास हुआ था। सुनीता से रहा न गया और माँ से पूछ बैठी थी,” माँ! पिताजी के चेहरे पर इतनी चिन्ता क्यों है.. क्या बात है!.. पहले उन्हें कभी इतना चिंतित नहीं देखा!”।

हालाँकि अनिताजी अभी सुनीता को कुछ भी बताना न चाह रहीं थीं.. पर बिटिया के बार-बार आग्रह करने पर उन्होंने आख़िर सुनीता को बता ही डाला था,” पिताजी की कंपनी बन्द करने का सरकार ने आर्डर भेज दिया है, हमें अब अपना बिसनेस बन्द करना होगा!”।

“ क्या! क्या कहा आपने..पर क्यों!.. ऐसे आर्डर क्यों आये सरकार की तरफ़ से!.. आख़िर! चली चलाई कंपनी बन्द करनी आसान है, क्या!”। सुनीता ने बिसनेस बंद होने वाली बात सुनकर घबराते हुए माँ से कहा था।

“ अब क्या कर सकते हैं.. सरकार का कहना है.. जिन भी कंपनियों का बिसनेस दो करोड़ से कम है.. उन्हें बन्द करना पड़ेगा!.. अब देखेंगें क्या होता है”। अनिताजी ने सुनीता को समझाते हुए बात बताई थी।

पिता का कारोबार बन्द होने की बात सुनकर सुनीता को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा था.. भई! बिटिया जो थी.. घर की। पर भाग्य के आगे अच्छे-अच्छे झुक जाते हैं.. किसी की नहीं चलती। मुकेशजी इसी समस्या के समाधान की उधेड़-बुन में लगे हुए थे। अभी यह बात घर की घर में ही थी.. किसी बाहर वाले को या रिश्तेदार को इस बात की भनक तक न थी।

अब एक चिन्ता सुनीता के दिमाग़ में मायके की भी घिर गई थी। ऐसा लग रहा था.. मानो पिता के घर का वक्त पलट रहा हो.. सुनीता का अपने परिवार को लेकर यह डर मन के अन्दर ही घर कर गया था। पर शायद इस समस्या का समाधान निकल ही आये.. अभी पूरे परिवार को ईश्वर पर भरोसा था।

एक दिन मायके में सुनीता ने सपना देखा.. सपने में एक ही बेल पर अंगूर और लौकी देख डाले थे.. अपना यह सपना सुनीता ने किसी को भी नहीं बताया था.. केवल अपने ही मन में रखा था। कुछ दिन बाद सुनीता को कुछ शारीरिक अहसास हुआ था.. और सुनीता डॉक्टर के पास चेकउप करवाने गई थी.. डॉक्टर के पास जाने के बाद ही सुनीता का एक ही बेल पर लौकी और अंगूर का राज़ सामने आ गया था.. सुनीता अब दूसरी बार जुड़वाँ बच्चों की माँ बनने जा रही थी।

“ तूं देख लिये मैं बतान लाग रया.. इनका बैंड बाजेगा!”।

ये किसका बैंड बजने की बात हो रही थी.. और कौन बजवाने का दावा कर रहा था।

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