मुझे गले से लगा लो

बहुत उदास हूँ, मैं।

आजकल यह पंक्तियाँ हम अपनी प्यारी कानू के लिये ही गुनगुनाते रहते हैं.. जब भी हम अपनी भोली और गुड़िया कानू की तरफ़ देखते हैं.. तो हमें ऐसा लगता है.. मानो हमारी रानी बेटी कानू हमसे यही कह रही हो” माँ! आप मुझे अपने गले से लगा लो!.. आजकल हम बहुत दुखी और उदास रहते हैं।

वाकई! जब भी हम कानू की तरफ़ देखते हैं…कानू हमें बेहद उदास नज़र आती है। न ही पहले की तरह से भोंक-भोंक कर शोर मचाती है.. और न ही खाने-पीने में ही ज़्यादा ध्यान देती है। कानू की उदासी और चुप्पी हमसे देखी न जा रही थी.. सो हमनें बच्चों से पूछ ही डाला था,” बताओ भई! बच्चों आजकल तुम्हारी प्यारी छोटी सी बहन इतनी उदास क्यों दिखती है”।

“ हाँ! माँ! हम भी कई दिनों से यही बात नोट कर रहे हैं.. न ही कानू हमें पढ़ाई में अब पहले की तरह से तंग करती है. और न ही भोंक-भोंकी कर हमारे कान ही खाती है”। बच्चों ने हमसे कहा था।

“ और हमनें भी एक बात नोट की है.. कि कानू अब छत्त पर खेलने के लिये कमरे का दरवाज़ा पीट कर बाहर नहीं आती है। नहीं तो पहले तो हम बोल-बोल कर थक जाया करते थे.. कानू हमारी एक न सुनती थी।” बच्चों को हमनें भी बताया था।

“ माँ! कानू कमरे में ही घूमती रहती है.. और हमनें कानू को एक दो जगह चुप-चाप खड़े देखा है। और हाँ! माँ!.. एक दिन हम जब पानी पीने के लिये उठे थे.. तो हमनें देखा.. कानू-मानू अपने बिस्तर पर से उठकर एक जगह खड़ी थी.. और सोने का नाम ही नहीं ले रही थी। हम तो कानू को वहीँ खड़ा छोड़ हार-थक कर सो गए थे”। बच्चों ने हमें बताया था।

कानू के उदास होने और अपनी गतिविधियाँ यूँ बन्द करने ने हमें बेहद परेशानी में डाल दिया था। अब घर का सबसे छोटा बच्चा बीमार पड़ जाए तो चिन्ता तो होती ही है। खैर! हमारे दिमाग़ में तुरन्त ही डॉक्टर का ख्याल आया था.. हम बच्चों से कहकर कानू को उसी डॉक्टर के पास ले गए थे, जिनसे हम कानू को लेकर आए थे। हम तो हैरान थे.. की क़ानू-मानू गाड़ी में भी एकदम चुप-चाप बैठा था। अब डॉक्टर ने पूरा चेक-उप कर बता दिया था,” ले जाइये आप अपने डॉगी को.. कोई प्रोब्लम नहीं है… एकदम फिट है’।

अब डॉगी बोलते ही हमें बुरा तो फ़िर से लगा ही था.. पर डॉक्टर से बोल तो सकते न थे.. की डॉगी नहीं हमारी कानू है। हम भी क्या करें और किस-किस को बताएँ कि भई! कानू हमारी रानी बिटिया है.. डॉगी नहीं। अब कोई न समझे तो इसमें हम कर ही क्या सकते हैं।

खैर! कानू को लेकर हम अब घर आ गए थे.. और क़ानू फ़िर वही घर आते ही कमरे में घुस गई थी.. और कमरे में एक दो जगह पर ही जाकर खड़ी हो गई थी। कानू के इस रवैये को देखकर घर में सभी हैरान और परेशान थे। अब तो हमारा भी मन बाहर बैठने में न लग रहा था.. बेशक जाड़ा ही क्यों न था..  सर्दी की मीठी धूप के मज़े छोड़ कर हम भी अपनी क़ानू संग अन्दर कमरे में ही बैठने लगे थे।

“अरे! अरे! ये क्या!.. हमारे सरहाने पर यह नन्हा सा चूहा कहाँ से आ गया”।

“ शी-शी-शी कर हमनें चूहे को भगाया था”।

हमारे उस नन्हें चूहे को भगाने से क़ानू एकदम अलर्ट होकर भौंकने लगी थी। पर चूहा बहुत ही छोटा सा था.. एकदम नन्हा सा शिशु पता ही नहीं चला.. कि कमरें में कहाँ जाकर दुबक गया था। अब हमारे दिमाग़ में थोड़ी सी चूहे वाली बात आई थी।

“ अरे! यह क्या! दो छोटे चूहे रखे हुए जूतों के साइड में से निकले थे.. कानू बहुत तेज़ चूहों पर उछली थी.. पर इतने छोटे थे.. की क़ानू के हाथ ही न आ रहे थे”।

अब हमारी समझ में कानू की उदासी का कारण आ गया था.. ये नन्हें जैरी ही प्यारी कानू को उदास किए हुए थे। इन jerrys की वजह से ही हमारी गुड़िया की चेहरे की मुस्कुराहट भी छिन गई थी। हालाँकि हमारी कानू चूहे मारने में एक्सपर्ट है.. कानू ने पहले भी बहुत चूहों का शिकार किया हुआ है.. पर इस बार वाले ये जैरी बहुत ही छोटे बच्चे थे.. हर बार ही कानू को मात देकर निकल जाया करते थे। अब तो कानू हमारी तरफ़ जब भी देखती थी.. तो ऐसा लगता था, मानो हमसे कह रही हो,” माँ! भगाओ न इन नन्हे jerrys को हमारे कमरे से.. हम इन्हें अपने साथ बिल्कुल भी नहीं रखेंगें.. बेशक यह हमें यहाँ रहने का किराया ही क्यों न दे दें”।

बात तो हमारी कानू की सही थी.. हम भी इन jerrys को अपने साथ नहीं रखना चाह रहे थे.. नुकसान की जड़ जो थे। पर हैरानी की बात तो यह थी.. कि हमारी क़ानू रात और दिन ड्यूटी पर रहकर भी इन शैतानों को पकड़ न पा रही थी.. निकलते तो थे.. पर फ़िर न जाने फटाक से कहाँ दुबक जाते थे.. अँगुली बराबर नाप के तो थे ही। jerrys का तमाशा और क़ानू की उदासी घर में किसी से भी देखी न जा रही थी.. और नुकसान होने वाला था.. वो तो अलग से था ही।

“ आईडिया! चूहों वाला ट्रैप या चूहे मारने का स्टिकर लगा कर देखते हैं.. अगर चूहे मारने की गोली रखेंगें, तो हमारी कानू ही खा जाएगी.. तो गोली तो न रखेंगें”। बच्चों के दिमाग़ ने हमें सलाह दी थी।

“ पर ये जैरी महाराज इतने छोटे हैं… कि नहीं फँसेंगे तुम्हारे रखे हुए ट्रैप में.. पर चलो! अब तुम लोग कह ही रहे हो तो करके देखते हैं”। हमनें बच्चों के आईडिया पर कहा था।

और हमनें रोटी के टुकड़े के साथ ही रात को ट्रैप लगा डाला था। कानू तो अपने बिस्तर पर रोज़ की तरह से अलर्ट बैठी ही थी.. ट्रैप का ठक करके गेट बन्द होने की आवाज़ आई थी.. कानू ज़ोर-ज़ोर से भौंकते हुए.. अपने बिस्तर पर से ट्रैप वाली जगह आकर खड़ी हो गई थी। हम लोगों ने फटाक से उठ कर कमरे की लाइट्स ऑन कर देखा तो.. मज़ा ही गया था.. दोनों जुड़वाँ भाई.. यानी के वो दो नन्हें जैरी जो हमारे कमरे में हमारी क़ानू के टेंशन का कारण बने हुए थे.. अब अन्दर ट्रैप में कैद हो गये थे.. और क़ानू ट्रैप के ऊपर खड़े होकर ज़ोर-ज़ोर से भोंक रही थी.. मानो कह रही हो,” भागो! यहाँ से आ जाते हैं.. मुहँ उठाकर दूसरों के घरों में रहने.. कोई और ठिकाना ढूंढो.. किराया भी दोगे तो भी न रहने देंगें हम अपने यहाँ”।

चूहों के पकड़े जाने के बाद कानू की उदासी छू हो गई थी.. और क़ानू की दिन-भर की उछल-कूद और भौंकना फ़िर से शुरू हो गया था। अब तो पड़ोसी भी कह उठे थे,” लगता है.. भाभी आपके ज़िद्दी बिना किराए के किरायेदार घर छोड़ गए..  तभी घर की सबसे छोटी और प्यारी मालकिन कानू खुश है”।

हम भी पड़ोस की बात से पूरी तरह से सहमत थे। यूँहीं कानू के सबसे बड़े दुश्मन jerrys को पकड़ते और अपनी प्यारी सी कानू की खुशियाँ लौटाते एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे.. नन्ही और सबसे प्यारी कानू के साथ।

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