बचपन तुम हो बहुत प्यारे
तुमसे चंदा तारे सारे
सारी गुड़ियों के बाज़ार हमारे
बचपन तुम हो बहुत प्यारे
सब कुछ अपना
कुछ नहीं सपना
तुम्हारी मेरी यह अपनी दुनिया
सबसे प्यारे दोस्त थे मेरे
कहाँ चले गए ,रह गए हम अकेले
आ जाओ फिर से तुम बचपन
जाने न देंगे तुम्हें अब कहीं हम
क्या कहते हो आओगे न
किसी और रूप में आ जाऊँगा
कहता है, हमसे बचपन हरदम
चलो यही सही है, तुमसे बचपन
किसी रूप में मिलेंगे हरदम
पर तुम हो बचपन बहुत प्यारे
दिल के बहुत नज़दीक हमारे।


बचपन दिमाग़ में आते ही बहुत प्यारी सी नन्ही सी छवि दिमाग़ में आ जाती है,बचपन होता ही बहुत प्यारा और मासूम है,चाहे किसी का भी हो,इंसानों का हो या फिर जानवरों का क्यों न हो।बचपन में न कोई चिंता होती है, न फिकर सारी दुनिया अपनी होती है..सब अपने से और अच्छे लगते हैं। क्या होगा, कैसे होगा, क्या हुआ इन सब बातों से परे होता है,बचपन। हमारी तरह ही जानवरों का बचपन भी बहुत प्यारा होता है,नन्हा बालक बेशक किसी भी जानवर का क्यों न हो बहुत प्यारा और मासूम लगता है,जानवरों के नन्हें शिशु भी एकदम ईश्वर का रूप लगते है…वे भी अपनी जाति के दावों से बेख़बर और मस्त होते हैं। खैर!बचपन तो सभी का बिंदास और अनमोल होता है। जब भी हमारे बचपन की छवि एकाएक हमारे मन में आती है,तो चेहरे पर मुस्कुराहट बिखर जाती है,आँखों में एकदम मुस्कुराती हुई चमक आ जाती है। ज्यादातर इंसान केवल अपने ही बचपन से प्रभावित होता है,पर यहाँ जिसके बचपन की छोटी सी  चर्चा आप सभी मित्रों से करूँगी वो मेरी अपनी सुपुत्री का बचपन है।
‌हर माँ को केवल अपने ही बच्चे और उन्हीं का बचपन प्यारा लगता है। यह एक स्वाभाविक बात है,जिसका कोई विशेष तात्पर्य  किसी को नहीं निकालना चाहिए। मेरी सुपुत्री का नाम गार्गी है, बचपन से ही बेहद चंचल स्वभाव की कन्या रही है। बचपन से ही गार्गी को मिट्टी में खेलना और मिट्टी के खिलौने बनाना बहुत पसन्द था। मुझे याद है, मेरी छोटी सी प्यारी सी गुड़िया गार्गी छोटेपन से ही सारा दिन मिट्टी में खेला करती थी,मना करने पर भी नहीं मानती थी। गमलों में से गीली मिट्टी निकालकर छोटे-छोटे गुड्डे गुड़िया बना दिया करती थी, मैं उस की यह कलाकारी देखकर खुश और हैरान दोनों हो जाया करती थी,कि अरे! इतनी छोटी सी बच्ची ने इतने सुन्दर  मिट्टी के गुड्डे गुड़िया कैसे बना लिए हैं। बच्ची के हाथों में जन्म से ही ईश्वर ने हुनर देकर पैदा किया है,ऐसा सोचते हुए मैं थोड़ा सा खुश हो जाया करती थी..माँ जो ठहरी। गार्गी को पेड़ पौधों और जानवरों से बेहद लगाव था। प्रकृति से एक अनोखा प्रेम रखती थी, मेरी सुपुत्री जब वह नन्ही सी बालिका थी। प्रकृति के अलावा मेरी बिटिया रानी को जानवरों से बेहद लगाव था,चाहे वो कोई भी जानवर क्यों न हो ख़ासकर कुत्तों से बहुत प्यार करती थी बचपन में। मैंने अपने घर में कोई भी कुत्ता नहीं पाल रखा था,पर गली  में घूमने वाले कुत्तों यानी देसी कुत्तों से बेहद लगाव था…कुत्ता  कैसा भी हो सुन्दर हो या नहीं हो गार्गी उसे बहुत प्यार करती थी। मैं हमेशा समझाती थी,की इन्फेक्शन हो जाएगा मान जाओ बेटी…पर नही अपने नन्हें-नन्हें हाथों से उन कुत्तों को स्पर्श कर बहुत  अपनापन दिखती थी। हमारे घर के पास सर्दियों में आस पास नालियों में बहुत सारे पप्पी जन्म लेते थे, मेरी नन्ही सी गुड़िया नालियों में अंदर घुसकर छोटे-छोटे पप्पी निकलती थीं ,उन छोटे-छोटे पप्पी को अपने गाल से लगाकर घंटों प्यार किया करती थी। दौड़कर मेरे पास आया करती थी,मासूमियत से मुझसे कहा करती थी,”माँ!नन्हे  तू-तू  हैं नाली के नीचे उनके लिए मुझे रोटी  और थोड़ा दूध दे दो, मैं  उन्हें खिलाकर आ जाऊँगी”। मैं अक्सर उन पप्पी के लिए जिन्हें मेरी  बच्ची  तू-तू कहा करती थी,रोटी और दूध दे दिया करती थी। नन्हे तू-तू कभी हमारे घर की जाली वाली बाउंडरी के बाहर आ  जाया करते थे..तो बिटिया दौड़कर जाकर जाली से मुहँ लगाकर  उन तू-तू को अपने छोटे हाथों से स्पर्श कर अपनी तोतली सी आवाज़ में बात किया करती थी। गार्गी और उसका यह उसके तू-तू के साथ  खेलना हमेशा मेरी यादों की एल्बम में रह गया है।  आज जब बच्चे सयाने हो गए हैं, तो उनकी यह मासूम सी बचपन की यादें मेरा सहारा बन गईं हैं।
‌एक बार का किस्सा मुझे याद आ रहा है, कि मैं गार्गी को दुकानों तक लेकर जा रही थी, अचानक हमें चलते-चलते चूँ-चूँ की आवाज़ सुनाई दी ,हमनें रुककर देखा तो नाली के नीचे बहुत नन्हे पप्पी थे..तीन थे ,तीनों ही बहुत cute थे,गार्गी ने उन्हें बाहर निकाला और उसके सफ़ेद  नन्हें से प्यारे से छोटे-छोटे हाथ हिलाने लगी थी,”क्या कर रही हो, बहुत नाज़ुक है, इसके हाथ टूट जाएँगे”। हमनें कहा था,बिटिया ने मेरी बात पर कहा था”डांस करना सीखा रही हूँ, इसे, देखो कितना प्यारा लग रहा है,आ भी गया है इसे डांस करना”। उनमें से दूसरा पप्पी गोद में लिया और कहने लगी”देखो मोटा बुंडू, सोजा नीनी आ जायेगी”,और उसे अपने कोमल और छोटे हाथों से थपकी देकर सुलाने लगी थी। पन्द्रह बीस मिनट वहीं  पर रुककर पप्पी से खेलने के बाद हम आगे बढ़ गए थे।
‌ऐसा ही एक प्यारा सा किस्सा और है, जो गधे से ताल्लुक रखता है,आप को यकीन नहीं आएगा हमारे घर के पास एक बार एक गधा आकर खड़ा हो गया था,हमनें और बच्चों व सभी घरवालों ने देखा कि गधे के पाँव में बहुत गहरा घाव है, खून निकल रहा था,उस घाव में से। हमने सोचा था, कि गधा यहाँ से हटकर कहीं और चला जायेगा,हमने कोशिश भी की थी कि गधा यहाँ से हटकर कहीं और चला जाये,क्योंकि गधे के खून भरे उस घाव पर माखियाँ भिनभिना रहीं थी…बच्चे छोटे और शरारती तो थे ही इन्फेक्शन का डर लग रहा था हमें। पर गधा अपनी जगह से टस से मस न हुआ। गार्गी को हमनें  समझा दिया था”कि बेटा उस गधे के पास बिल्कुल मत जाना,इन्फेक्शन है, उसको”। अगले दिन हमसे हमारी बिटिया रानी ने  इज़ाज़त ली”मैं खेलने जाऊँ ,थोड़ी सी देर में आ जाऊँगी” रोज़ की तरह से हमने भी कह दिया था”जाओ” कुछ ही देर बाद  हमें ज़ोर-ज़ोर से  बड़े पत्थर की  घिसने की आवाज़ सुनाई पड़ी, और अपनी सासू  माँ को चिल्लाते हुए सुना”अरे!क्या लगा रखा है, ये तमाशा फ़र्श गन्दा कर दिया”। हम तुरन्त कमरे से बाहर निकले निकलकर क्या देखा,गार्गी मैडम  कुछ जंगली पत्ते ज़मीन पर पत्थर से घिस रहीं हैं। हमने ज़ोर से आवाज़ लगाई  और पूछा “अरे!क्या कर रही हो मान जाओ,कपड़े भी गंदे हो रहे  हैं और दादी भी गुस्सा कर रहीं हैं, चलो ऊपर बहुत हो गया खेलना”। हमारे यूँ चिल्लाकर डाँटने से भी कोई फर्क न पड़ा था, गुड़िया रानी को,तुरन्त ही अपनी तोतली और प्यार भरी आवाज़ में  हमें  नन्हा सा हाथ हिलाकर बताया था”कूत नहीं ,हम उस गधे के लिए दवाई बना रहे है”। बहुत समझाया और  डांट भी लगाई पर बिल्कुल न मानी। अब तो मेरी गुड़िया सी बेटी गार्गी का रोज़ का काम हो गया था, हरे-हरे  पत्ते ज़मीन पर घिसती और उनका बकायदा लेप बनाकर अपने  नन्हें हाथों से उसके घाव पर लगाकर आ जाती। यकीन नहीं आया था हमें अजीब सा चमत्कार हो गया था, उन हरे पत्तों के लेप से उस गधे का घाव अब पूरी तरह से ठीक हो गया था, गधा भी कमाल का था कैसे  नन्हें और कोमल  हाथों  से अपना इलाज  खुश  होकर करवा रहा था..इसे प्रेम कह लीजिये या दोस्ती कह लीजिए  या फिर कोई और नाम दे सकते है..मेरे हिसाब से तो गधे को यह नन्ही बच्ची ही डॉक्टर के रुप में पसन्द आयी थी। होगा कोई गधे और गार्गी की दोस्ती का पुराना हिसाब-किताब ,पूरा हुआ और गधा चला गया। मेरी गुड़िया ने उस गधे को बहुत याद किया था हमेशा कहने लगी थी”मैंने गधे को ठीक कर दिया, देखा मेरे पत्तों से ही ठीक होकर चला गया”। इस गधे वाले किस्से को तो गार्गी आज भी बड़े होने पर कई बार  दोहरा देती है।
‌यूँहीं बचपन बीत रहा था और मेरी गुड़िया रानी थोड़ी बड़ी हो गईं थी…माने के स्कूल जाने लायक। हमने पास के लड़कियों के स्कूल में गार्गी का दाखिला  करवा दिया था। स्कूल के पहले दिन में ही बिटिया को छोड़ने गयी थी, सोचती हुई जा रही  थी,कि स्कूल का पहला दिन है, रोयेगी,शोर मचाएगी “अन्दर नहीं जाना “कुछ इस तरह की जिद्द करेगी। स्कूल  पहुँचने पर मैने गार्गी को  उसकी क्लास में ले जाकर छोड़ा ..बैग वगरैह रखा और  वहाँ से वापस हो  गई थी। अभी स्कूल प्रेयर शुरू नहीं हुई थी, इसलिए भी मैं  कुछ देर और गेट के बाहर वेट करने लगी…देखना चाहती थी कहीं रोयेगी तो नहीं, मैंने क्या देखा….एक नन्ही सी चिड़िया अपनी क्लास से बाहर ग्राउंड में आई, जिसके चेहरे पर कोई डर या स्कूल का ख़ौफ़ नाम की चीज़ नहीं थी। उस बच्ची ने कुछ ही मिनटों के अन्दर स्कूल में अपनी ही एक दुनिया  बसा ली थी…मेरी छोटी सी बच्ची अपनी ही दुनिया में मस्त होकर चिड़िया की तरह चहकने और उड़ने लगी थी। चेहरे पर न चिंता थी न फ़िक्र थी, एकदम मस्त मौला और बिंदास लग रही थी। एक सेकंड के लिए भी यह चिन्ता न हुई थी कि माँ कहाँ चली गयी। अपनी नन्ही  सी गार्गी का यह बचपन देखकर मुझे विश्वास हो गया था, कि यह बच्ची जहाँ भी खड़ी हो जाएगी अपनी एक अलग दुनिया अपने आत्मविश्वास के साथ बसा लेगी।
‌आज मेरी बच्ची अपने  बचपन की दहलीज़ को पार कर सयानी हो गयी है। लेकिन आज भी उसके चेहरे पर मुझे वही आत्मविश्वास झलकता है। और में उसे हर वक्त यही आशीर्वाद देती हूँ, की आगे आने वाले जीवन में अपने इस अनोखे अंदाज़ और आत्मविश्वास के साथ अग्रसर हो।
‌”पर मेरी प्यारी नन्ही गार्गी, मेरी  गुड़िया रानी मैं  तुम्हारा प्यारा और  अनमोल बचपन कभी नहीं भूलूँगी। तुम्हारी वो नन्ही शरारतें और तुम्हारे  खट्टे-मीठे से बचपन के वो पल हमेशा रहेंगे मेरे साथ, मेरी यादों  की एल्बम में”।





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