क़िस्सा गर्मियों का है, सभी ठन्डे में अन्दर ही बैठा करते थे …कमरे में। क़ानू भी  गूढ़मूढ़ हो अपने बिस्तर पर A.C की हवा के  मज़े लिया करती थी। एक दिन ऐसे ही दोपहर के वक्त मेरी बिटिया गार्गी को शैतानी सूझी और उसने कैंची लेकर क़ानू रानी की मूँछ ही काट डाली। शाम के टाइम जब हम धूप कम होने पर चाय नाश्ते के लिए उठे और दरवाज़ा खोला… क़ानू को हमने आवाज़ दी थी,” आ ताओ तलो खेलेंगे” इस बात पर न तो क़ानू खड़ी हुई और न ही अपनी पूँछ हिलाकर अपने प्यार का इज़हार किया,हमने सोचा अभी क़ानू का मूड नहीं है,और हम अपना काम करने नीचे चले गए। ऊपर आये तो देखा क़ानू अभी भी वहीं पर बैठी हुई है, एकदम गुमसुम चुप-चाप। हमें भी प्यार आ गया क़ानू पर नज़दीक जा कर देखा.”अरे!क़ानू की मूँछे तो हैं ही नहीं, कहाँ गयीं?हम्म!ज़रूर गार्गी दीदी ने  काटीं है”। हम क़ानू के भोले से मुहँ को अपने पास लाये थे,और कान में धीरे से कहा था,”अभी जाकर ख़बर लेते हैं, दीदी की”। 
क़ानू अपनी मूँछ कटने पर बहुत उदास हो गई थी,सारा दिन अपना गोल मोल रुई जैसा सफ़ेद गोल-मोल सिर ऊपर को करके अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। मनाने पर भी नहीं मानी थी क़ानू। मूँछ कटने पर इतनी उदासी हमने तो पहली बार देखा था… खैर!हाँ!था प्यार क़ानू को अपनी मूँछों से। क़ानू को  आइस क्रीम खाने का बहुत शौक था, बच्चों के साथ सभी तरह की आइस क्रीम के क़ानू बहुत मज़े लिया करती थी,सो हमने क़ानू को मनाने के लिए आइस-क्रीम भी दी,कि क़ानू मूँछों  का  ग़म भूलकर खुश हो जाएगी  और खेलेगी-कूदेगी।
आइस-क्रीम के मज़े भी ले लिए पर उदासी वहीं की वहीं थी।
‌एक दो दिन बीत गए थे, मूँछों वाली बात को लेकर। अचानक एक दिन शाम को चार बजे के करीब क़ानू  तेज़ी से दरवाज़ा पीटते हुए और  भौंकते हुए तेज़ी से बाहर की तरफ़ भागी  और सामने वाली दीवार पर चढ़ गई। उस दीवार पर चढ़ने के बाद क़ानू के केवल नाक और मुड़े हुए कान ही बाहर की तरफ दिखते थे। हमने और क़ानू ने क्या देखा कि हमारे गेट के बाहर एक सजा धजा हाथी खड़ा है, अडोस-पड़ोस के बच्चे और बड़े सभी उस हाथी को देखने के लिए अपने-अपने घरों से बाहर निकल आये है। हम सब भी हाथी को देखने के लिए अपने छत्त की सामने वाली दीवार पर खड़े हो गए थे। एकदम से ही हाथी की वजह से घर के सामने वाली सड़क पर जम कर रौनक हो गई थी। लोगों ने हाथी को घेर लिया था, सच!बताएँ तो ऐसे घूर रहे थे,मानो कभी हाथी ही न देखा हो। महावत हाथी की सवारी करवाने के लिए अपना हिसाब बता रहा था..कितनी दूरी तक का कितना होगा बच्चे और बड़ों से अलग-अलग पैसों की बात कर रहा था। हाथी भी अपनी  गर्दन हिलाकर सभी का स्वागत कर रहा था…मानो मनुष्य जाति से मिलकर हाथी को भी अच्छा लग रहा हो।
‌हमारे बच्चे भी हाथी की सवारी करने की जिद्द करने लग गए थे, सो हम भी अपने बच्चों की सवारी को लेकर महावत के पास हिसाब तय करने नीचे चले गये थे। नीचे जाकर जैसे ही हमने ऊपर की तरफ अपनी गर्दन करके देखा था, तो हमें भी अपनी प्यारी क़ानू के थोड़े-थोड़े पेपर-कटिंग जैसे झुके हुए छोटे-छोटे कान नज़र आ रहे  थे,और गोल सी प्यारी सी गुलाब-जामुन जैसी नाक की हम थोड़ी सी झलक देख पा रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो क़ानू हमसे कह रही हो”मम्मी हमारा भी पता कर लेना हम भी हाथी काका की सवारी करेंगे”। खैर!महावत से अपने बच्चों का हिसाब-किताब तय करके हम ऊपर आ गए थे। बच्चे खुशी से उछल कर हाथी की सवारी करने के लिए तैयार हो गए थे।
क़ानू भी हमारे आगे-पीछे अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिला-हिला कर चक्कर काटने लग गई थी,कभी हमारे दोंनो पैरों के बीच में से निकल जाती तो कभी हमारे ऊपर अपने दोनों हाथ रखकर खड़ी हो रही थी। हमने सोचा था शाम के घूमने का टाइम हो गया है,इसलिए ऐसा कर रही है…हमने क़ानू को तसल्ली देते हुए कहा था”अभी ठहरो थोड़ी देर में चलेंगे”पर क़ानू को चैन नहीं था, फिर वही उछल-कूद शुरू थी। बच्चे हाथी की सवारी करने के लिए नीचे जाने लगे थे, क़ानू ने ज़ोर-ज़ोर से हमारे ऊपर पंजे मारकर और ज़ोर-ज़ोर से भोंक कर हमसे कुछ कहना शुरू कर दिया था। कुछ समझ न पा रहे थे, अचानक बच्चों ने क़ानू को ऐसा करते हुए पीछे मुड़कर देख लिया था..एक मिनट के लिए वापिस बच्चे लोटे और हमसे कहा था”मम्मी कहीं ऐसा तो नहीं कि क़ानू भी हमारे साथ हाथी पर बैठने की जिद्द कर रही हो”। हमने कहा था”ऐसा नहीं होता,इसे क्या पता,यह हाथी पर बैठने की जिद्द नहीं करेगी”। क़ानू शायद हमारी बात समझ रही थी, जो हम बच्चों से कर रहे थे, हाथी वाली बात सुनकर क़ानू बुरी तरह से भोंक-भोंक कर हमें समझा रही थी, कह रही थी,”हाँ! हाँ!हाथी पर ही बैठना है हमें”। क़ानू नन्ही सी गुड़िया को ऐसा करते देखते हुए हमें कुछ समझ में आया था, हमने क़ानू के पट्टे में चैन लगाई थी,और बच्चों के साथ क़ानू को लेकर नीचे उतर गए थे।
हाथी अपनी मस्ती में ज़मीन पर बैठ गया था,बच्चे बहुत खुश हो रहे थे हाथी की सवारी करने के लिए..हम क़ानू को लेकर थोड़ी सी दूरी पर ख़ड़े थे, क़ानू भी बहुत खुश हो रहा थी हाथी काका को देखकर। महावत से तो हमने बात कर ही ली थी, बच्चे हाथी पर सवार हो गए थे,हाथी आगे बढ़ने को ही था कि क़ानू ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लग गयी थी। हमारे दिमाग़ में पता नहीं क्या आया, हम क़ानू की चैन अपने किसी जानकार के हाथ में देकर तुरंत हाथी की तरफ भागे …महावत को रोकते हुए हमने पूछा था”भइया,वो देख रहे हो हमारी क़ानू”उसने क़ानू की तरफ देखते हुए कहा था”हाँ!वो कुत्ता”हमने कहा था,”नहीं-नहीं कुत्ता नहीं” आगे कहा था”भइया “,क़ानू की तरफ़ इशारा करते हुए”इसे भी हम हाथी की सवारी  करना चाहते हैं,डर वाली कोई बात नहीं है, हम साथ-साथ रहेंगे,अगर कुछ डर वाली बात हुई तो हम क़ानू को फटाक से उतरवा लेंगे”। महावत हमारी यह बात सुनकर हैरान हो गया था, और क़ानू को सवारी कराने के लिए बिल्कुल नहीं मान रहा था, खैर!परमात्मा ने हमारी और क़ानू की मदद की…बच्चों ने शोर मचाया”अरे!भइया बिठा लो, हम अपने बीच में पकड़कर बिठा लेंगे, जैसे हम स्कूटर पर बैठाकर ले जाते हैं, कुछ भी नहीं बोलती चुप-चाप बैठती है। और वैसे भी हाथी की पीठ पर बन्दर और सब सवारी कर ही लेते है, हाथी थोड़े ही कुछ बोलता है”। हमारे और बच्चों की रिक्वेस्ट करने पर महावत मान गया था,बस!यही बोला था,”चलो बिठा लेते हैं, ज़िम्मेदारी आपकी”। महावत ने हाथी को दोबारा नीचे बैठाया था, हमने क़ानू को गोद में उठाकर हाथी की पूँछ वाली साइड से धीरे से बच्चों के बीच में गले की चैन हटाकर बीच में एडजस्ट कर दिया था। क़ानू बहुत हैप्पी हो रही थी,बच्चों ने हाथी पर बैठकर शोर मचाना शुरू कर दिया था”हाथी!हाथी!”क़ानू भी बहुत खुश थी, जैसे स्कूटर पर  घूमने के लिए होती है। हाथी खड़ा हो गया था…धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ रहा था….क़ानू और बच्चे बहुत खुश हो रहे थे । थोड़ी दूर तक घूमने के बाद हाथी वापिस आ गया था। अरे!हाँ! एक बात तो हम बताना भूल ही गए, जब बच्चे और हाथी चक्कर काटने गए थे, तो हम वहीं गेट पर खड़े हाथी के लौटने का इंतेज़ार कर रहे थे… जैसे ही चक्कर लगाकर हाथी लौटा  और अपनी पीठ पर से सवारियों को उतारने के लिए नीचे झुका हमने झट्ट से अपनी क़ानू को गोद में ले लिया था.. कहीं कुछ कर न दे…आख़िर है तो क़ानू जानवर ही। गोद में आते ही क़ानू ने अपनी प्यारी सी जीभ से हमारे गाल को हल्का सा चाट। था ..मानो कह रही हो,”thank you! मम्मी हाथी काका के साथ घूमने देने के लिए”। बच्चे और क़ानू हाथी पर से उतरकर ऊपर आ गए थे।
बच्चों के साथ बच्चा बनकर हाथी की सवारी करने के बाद क़ानू बहुत खुश थी। क़ानू अपनी मूँछों के कटने का गम भूल गयी थी, और फिर से अपने रोज़ के खेल-कूद में लग गयी थी। क़ानू को फिर से वैसा ही खुश और शैतानी भरा देखकर हमने क़ानू के हाथी काका का शुक्रिया अदा किया था, फिर से  ज़िन्दगी चल पड़ी थी,हमारी और क़ानू की हाथी के साथ।


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