” अरे! यह क्या मंगवा लिया! आपको ठग लिया.. बेकार ही ऑनलाइन मँगवाया.. इससे तो ख़ुद ही जाकर मार्केट से ले आतीं”।
दो footmat की ऑनलाइन शॉपिंग कर डाली थी.. मैंने.. देखने में तो अच्छे दिख रहे थे.. पर घर आने पर देखा, तो कुछ ख़ास नहीं निकले थे। मुझे भी अच्छा नहीं लगा था.. चीज़ भी मंगवाई और वो ठीक भी नहीं निकली।
पैसे भी waste हो ही गए थे।
खैर! Footmat कोई बड़ी चीज़ नहीं थी.. पास में ही बाज़ार से दूसरे आ जाते.. पर पता नहीं क्यों बेवजह ही मेरे दिमाग से यह footmat वाली बात निकल ही नहीं रही थी.. और बैठे-बैठे एक आईडिया याद आया था.. मुझे!
बचपन में क्राफ्ट की क्लास में सीखा था.. बस! वही।
रुका न गया था.. और मैने अपनी झट्ट से तीन पुरानी साड़ियाँ निकाल लीं थीं.. तीनों साडियों में ऊपर की तरफ़ गाँठ लगाकर उनको चोटी के आकार का गूँथ लिया था.. और घर में पड़े गेहूँ के बोरे को अपनी मन पसन्द ओवल शेप का काटकर उसके ऊपर अच्छे से फेविकॉल लगा.. इस साड़ी की चोटी को दबा-दबा कर उसी शेप में चिपका दिया था। शेप कोई भी अपनी पसंद का काटा जा सकता है.. पर मुझे ओवल शेप ही पसंद लगा था.. footmat के लिए।
कुछ घँटों के लिए इस साड़ी वाले footmat को वजन से दबा कर रखा था।
दिखने में बहुत ही सुंदर और बढ़िया ज़्यादा चलने वाला footmat तैयार हो गया था।
मेला होने पर धोकर सुखा दो।
मेहनत और बचपन की शिक्षा रंग लाई.. और दो सुंदर footmat भी तैयार हो गए।
पुरानी साड़ियाँ भी काम आ गईं.. वैसे भी रखीं ही हुईं थीं।
इस footmat वाले हुनर से अब ऑनलाइन शॉपिंग वाली गलती भूल.. मैं तारीफ़ की हकदार बनी थी।