स्कूल से आके

शोर मचाते

थोड़ी देर

नहीं, रुक

पाते

मैगी! मैगी! मैगी..!

भूख लगे.. तो बच्चों को सिर्फ़ मैगी.. ही भाए।

यह विजापन.. हमारे ज़माने से चला आ रहा है.. पर विजापन वाला बच्चा हमनें तो कभी बनकर ही नहीं देखा.. आज सोचते ज़रूर हैं.. काश! स्कूल से आकर कूदकर हमनें भी यह 2 मिनट वाली मैगी खाई होती! भूख से हाल-बेहाल तो हम भी आया करते थे.. स्कूल से।

पर हमारे घर में.. यह मैगी ,कोल्ड्रिंक और अन्य फलाने-ढमके का माहौल था.. ही नहीं!

दूध-घी, फल-फ्रूट और घर में ही पके भोजन का माहौल था.. बनावट में परिवार ने कभी विश्वास नहीं किया था।

हाँ! पर थे, तो हम भी बच्चे! मन तो हमारा भी मैगी और नूडल्स जैसी चीज़ों की तरफ़ भागता ही था..  अब माँ-बापू से डर के मारे कभी बोले नहीं.. वो बात अलग थी।

खैर! ,हुआ यूँ.. कि माँ का अपनी बुआजी से मिलने उनके घर जाना हो गया था.. और लौटते वक्त उन्होंने अपनी लाडली भतीजी को.. आटे से बने हाथ के जवे.. यानी कि vermicilli ढ़ेर सारी बाँध कर दे दीं थीं.. 

” देखो! नानी ने जवे दिए हैं!”।

हमारे यहाँ आटे से बनी हाथ की vermicilli को ही जवे बोला जाता था। अब माँ की बात सुन भी ली थी.. और जवे देख भी लिए थे।

” आज क्या बनाया है.. आपने खाने में!”।

स्कूल से आते ही बस्ता फेंक.. हमनें माँ से पूछा था।

” आज मैंने नई चीज़ बनाकर रखी है.. तुम लोगों के लिये.. नमकीन जवे! खाकर बताओ कैसे बने हैं!”।

” अरे! वाह.. माँ! ये तो एकदम ही नूडल्स और उस tv में सब्ज़ी वाली मैगी से भी अच्छे हैं.. यही बनाया करो.. तुम हमारे लिये.. ख़त्म हो जाएं, तो नानी से और ले आना!।

वाकई! में भई! जवों ने तो कमाल ही कर दिया था.. लिखते-लिखते मुहँ में पानी भर आया है.. घर में जितनी भी सब्जियां थीं.. सारी काटकर, सूखी लाल-मिर्च का और प्याज़ का छोंक लगाकर , हल्की सी लाल मिर्च और नमक डालकर थोड़े से पानी में वो आटे के जवे भून कर जो बनाए थे.. आज की चाऊमीन को मात कर रहे थे।

न उनमें सोया सॉस था, न chiili सॉस था, न ही कोई और चाइनीज टाइप का flavour था.. पर जो भी था.. लाजवाब था।

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