वेज बिरयानी, नॉन वेज बिरायनी veg पुलाव और न जाने कितनी ही varieties आजकल रोज़ ही सुनने में आतीं हैं।

हमारे ज़माने में ये बिरयानी-शिरयानी तो थीं.. पर हमारे लिए तो हर बिरयानी से ऊपर होकर माँ के हाथ का पुलाव ही था।

एलुमिनियम के बड़े भगोने में बना हुआ.  मटर गोभी और गाजर वाले उस पुलाव की बात ही अलग थी.. और हाँ! आलू भी ज़रूर डलते थे।

पिताजी इतने बढ़िया बासमती चावलों का बोरा खरीदा करते थे..

कि पुलाव का रूप लेते ही.. सारा घर महक से गुलज़ार हो जाया करता था।

ऐसी कोई बहुत विशेष कॉम्प्लिकेटेड विधि नहीं हुआ.. करती थी.. मइया के पुलाव बनाने की.. बस! सारी जाड़े की सब्जियां थोड़ी मोटी-मोटी सी काटीं.. मटर के ढेर सारे दाने लिए..

भोगने में थोड़ा अच्छा ठीक-ठाक तेल गर्म कर जीरे का छोंक लगा..  छुन्न की आवाज़ के साथ सारी सब्ज़ियां उसमें छोड़.. मस्त सारे मसाले डाल..उसी वक्त पहले से भिगोए हुए.. चावल डाल.. बस! थोड़ा सा पानी ऊपर रख.. प्लेट से ढक.. मध्यम आँच पर पकने का इंतजार हुआ करता था।

पुलाव के पकने की महक पूरे घर में फैल जाया करती थी..

खुशबू आते ही.. सबसे पहले गरमा-गर्म पुलाव प्लेट में डलवा.. स्वाद लेकर खाने का नंबर मेरा ही हुआ करता था।

सच! माँ के हाथ का वो झटपट पुलाव आज हर तरह की बिरयानी को मात करता है।

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