घर में बहुत दिनों से मलाई इकट्ठी हो गयी है.. सोचा.. चलो! घी बना काम ख़त्म किया जाए।
घी बनाकर बचे हुए.. खोए में आटा मिलाकर गूंदने लगे थे.. कि अचानक से अंगुलियों में आटे की जगह उबले आलुओं का स्पर्श हो आया था.. ऐसा लगा था.. जैसे माँ की छोटी-छोटी सी हथेलियां खोया और आलू मथ रही हों।
और होता भी तो यही था.. घी बनाने के बाद माँ बचे हुए.. खोए में अक्सर उबले आलू व थोड़ा बेसन मिला.. बढ़िया से टेस्टी कोफ़्ते तैयार किया करतीं थीं.. और हमारी नन्ही-नन्ही हथेलियां तरी में कोफ़्ते डलने से पहले ही उन्हें चखने के लिए तैयार हो जाया करतीं थीं।
दो-दो चार-चार तरी में डालने से पहले माँ रख दिया करतीं थीं.. हमारी हथेली पर!
जीवन की ऐसी ही छोटी-छोटी क्रियाओं में यादों के वो क़िस्से और कहानियां छिपी होतीं हैं.. जो न जाने याद आने पर मन की उड़ान को कहाँ से कहाँ ले जाते है I