पीतल की परात में रखे गूँधे हुए आटे की खुशबू सवेरे ही महका गई थी मुझे I सवेरे की ताज़ी ठंडी हवा गाँव के खेत खलियान में ले गयी थी मुझे। न जाने क्यों आज वो गाँव का पहले वाला शुद्ध वातावरण याद आ गया था I मन धुएँ – धूल और शोर से हटकर, नीम के नीचे बनी गाँव की उसी चौपाल में रमा गया था I प्यारे से उन रिश्तों ने फ़िर सवेरे घेर लिया था I मुझे एकबार फ़िर बनावटी दुनिया से दूर कर दिया था I मेरे मन ने आज सवेरे उन्हीं पलों और उन्हीं प्यारे से क्षणों में चलने की गुज़ारिश की थी, पर बहते पानी की तरह वक्त ने आगे का रास्ता दिखा दिया था मुझे।

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