अपना ज़माना बखूबी याद है.. हमें! जब हम धीरे-धीरे बडे होते जा रहे थे.. अब उन दिनों मोबाइल और इंटरनेट का कोई चक्कर तो था, नहीं! बस! अपनी पढ़ाई, और पढ़ाई-लिखाई ख़त्म होने के बाद.. माँ की रसोई में उनके साथ हाथ बटाना होता था.. बड़े होने के साथ-साथ.. पढ़ाई के संग .. हमें खाना बनाने की ट्रेनिंग और अन्य घर के कामों की ट्रेनिंग.. या यूँ कहिए.. एक housewife का हमारा प्रशिक्षण शुरू हो गया था। हालाँकि ज़बरदस्ती वाली कोई बात नहीं थी! हमें भी रसोई के कामों और भोजन की वयवस्था में ख़ास आंनद आता था।

पहले ये सब बातें घरों में नहीं हुआ करतीं थीं.. कि लड़की को कमाऊ बनाओ.. पता नहीं! आगे चलकर कैसा क्या हो!

समाज में महिला यानी के घर की बहुओं का एक ख़ास स्थान हुआ करता था.. सोच कमाऊ वाली नहीं थी।

पर आजकल नारी की परिभाषा में परिवर्तन आ गया है.. आजकल की हमारी बेटियाँ घर के कामों और ख़ासकर परिवार वगैरह की भोजन व्यवस्था में हमारी तरह से दिलचस्पी नहीं लेतीं.. चाहे घर से बाहर कमाने के बारे में सोचें या नहीं! पता नहीं क्यों.. इन सारे कामों को बेटियाँ down standard का नाम देतीं हैं। हाँ! सारा दिन बेशक मोबाइल और सोशल media में बिताएं.. पर घरेलू कामों से ज़रा आँख बचाती ही हैं।

घर के कामकाज और घर में परिवार के सदस्यों के लिये भोजन की वयवस्था करना.. हमारे हिसाब से नारी की पहली शिक्षा होनी चाहिये.. इसको भी शिक्षा का एक अनिवार्य विषय बनाया जाना चाहिये। आजकल माँ की बातें तो हमारी बेटियों को outdated लगतीं हैं.. पर इस विषय को शिक्षा का एक अनिवार्य हिस्सा घोषित कर देना चाहिये…

समाज में नारी और पुरुष बराबरी का स्थान रखते हैं.. पर नारी अपने महिला होने की सही पहचान रखते हुए.. एक माँ और सृष्टि की रचयिता होने के कारण पुरुष से एक क़दम आगे है.. जो हमारी आजकल की कन्याओं को थोड़ा समझने की ज़रूरत है.. कि घरेलू कामकाज उन्हें पिछड़ा हुआ नहीं.. शिक्षा के साथ-साथ सम्पूर्ण बनाता है।

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