बहुत ही सुंदर त्यौहार रूपी व्रत का दिन होता है.. यह करवाचौथ महिलाओं के लिए.. इस दिन हर सुहागन स्त्री अपने पति की दीर्घायु व कुशलता की कामना करते हुए.. यह व्रत पूरे विधि-विधान से रखती है।
करवाचौथ वाले दिन.. चारों तरफ़ बेहद खूबसूरती से तैयार महिलाओं का मेला सा लग जाता है.. पूजा की थालियां लिए.. और सुंदर वस्त्र पहने महिलाएँ बहुत ही खूबसूरत समा बाँध देती हैं।
यह व्रत अब हमारे भी जीवन का हिस्सा बन गया है.. और इस दिन हम भी पतिदेव के लिए व्रत और थोड़ा सा खूबसूरत दिखने की कोशिश कर ही लेते हैं।
पर कुछ भी कहो! मन वो करवाचौथ के दिन कभी नहीं भुला पाता.. जो हमारी माँ पिताजी के लिए.. रखा करतीं थीं! सच! क्या बताएँ.. करवाचौथ वाले दिन हम स्कूल से छुट्टी मार माँ को तैयार देखने के लिए.. घर में ही बैठ जाया करते थे..
बहुत ही सौम्य, सरल और खूबसूरत थीं.. हमारी माँ! करवाचौथ पर स्त्रियाँ सुबह सवेरे सरगी लेतीं हैं.. उसके बाद ही दिनभर का व्रत रखतीं हैं.. पर हमारी मइया तो बिना किसी सरगी के सुबह सवेरे ही तैयार हो जाया करतीं थीं.. केश धो.. सिंदूर लगा सवेरे ही पिताजी की पसंद की सुंदर सी साड़ी पहन शाम की पूजा के इंतज़ार में हमारा भोजन तैयार कर.. बरामदे में बैठ जाया करतीं थीं.. हम भी आती-जाती सजी-धजी पड़ोसिनों का मेला देखने के लिए.. माँ के संग ही बैठा करते थे।
शाम की पूजा का आयोजन अक्सर हमारे ही घर हुआ करता था.. जिसको देखने के लिए.. हमारा संग बैठना तो बनता ही था।
सारी महिलाओं के बीच बैठ.. माँ ही ” सुन री गुड़िया! सुन रे गुड्डे!” वाली कहानी कहा करतीं थीं.. कहानी तो हमें अच्छे से याद नहीं है.. पर वो थाली बाँटते हुए.. विधि-विधान से पूजा और अपनी माँ का वो तेजस्वी चेहरा ख़ूब याद रह गया है।
कितने ही करवाचौथ आए और गए.. पर हमें करवाचौथ पर अपनी माँ जैसी सुंदरता का प्रतीक आज तक कोई और नज़र नहीं आया। आज भी करवाचौथ वाले दिन सबसे सुंदर चेहरा उन्हीं का नज़र आता है।