दस सिर वाला

पुतला देखा!

वाह रे! भइया!.. भइया! भइया!

बड़ी थीं.. मूछें

रोबीली जिसकी

वाह रे! भइया!.. भइया! भइया!

काठी ऊँची

पेट था.. मोटा

उसका भइया

वाह रे! भइया!.. भइया! भइया!

आजू-बाजू बिल्कुल

जैसे उसके

दो-दो पुतले 

और खड़े थे

वाह रे! भइया!.. भइया! भइया!

बोले तीनों भाई हैं

ये तो

मोटे पेट हो रहे 

बमों से देखो!

रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण

थे.. ये तो!

वजयदशमी पर

जलने खड़े थे

वाह रे! भइया!.. भइया! भइया!

अरे! दशहरा मैदान

सजे हैं.. देखो!

तीन-तीन पुतले

खड़े हैं.. देखो!

अच्छाई पर बुराई

की विजय है!

ये तो विजयदशमी

का दिन है

फूटे पटाखे

उड़े. मेघ- कुम्भकर्ण

वाह रे! भइया!.. भइया! भइया!

लगा तीर नाभी

अबकि जो

उड़ गया रावण

ले दसों सिरों को

टूटा घमंड पल

भर में रावण का

हो गया यह

दिन बुराई

पर अच्छाई का!

विजयदशमी के

नाम से जाना

दशहरा कहकर

इसको माना

वाह रे! भईया!.. भइया! भइया।

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