अब गोभी के दो प्रकार होते हैं.. फूल गोभी और अपनी पत्ता गोभी! और दोनों ही गोभी बनती भी ज़ायकेदार हैं! अगर सही ढँग से बनाई जायें तो!
पर मित्रों यहाँ पर गोभी को बनाने की चर्चा नहीं होने वाली है.. यह तो बस! यूँहीं एक ख़याल मन में आया सो हमनें आज लिखने का विषय गोभी ही कर डाला!
अब गोभी के ख्याल के पीछे दअरसल कहानी यह है.. कि हमारा हाल ही किसी मित्र के यहाँ जाना हुआ था! बस! हुआ यूँ कि बातों- बातों में बर्तनों के विषय पर चर्चा शुरू हो गई थी.. किस तरह के बर्तन में भोजन पकाने के लाभ हैं.. वगरैह-वगरैह!
एक मित्र अपनी राय देते हुए.. कहने लगे थे..” अरे! भई! आजकल जो है! Non स्टिक बर्तन मार्किट में बहुत आ रहें हैं.. घर-घर में non स्टिक बर्तनों में ही भोजन पक रहा है.. जो कि हमारी सेहत के लिए ठीक नहीं है! बहुत ही artificial है! भोजन aluminium के बर्तनों में ही पकना चाहिये!
Aluminium का नाम आते ही.. दूसरे मित्रगण से रहा नहीं गया.. और तुरन्त ही अपनी राय दे डाली थी,” नहीं! नहीं! Aluminium धीरे-धीरे हमारे शरीर में मिलता चलता है.. और काफ़ी मात्रा में aluminium हमारे शरीर में घुल जाता है.. जो कि एक तरह से जहर ही हुआ!
बर्तनों पर हो रही ये चर्चा पीतल के बर्तन पर आकर रुक गयी थी.. ” पीतल के बर्तन और कढ़ाई में भोजन बनता भी अच्छा है! साथ ही सेहत को भी कोई नुकसान नहीं होता!”
पीतल के बर्तनों वाली बात पर हम सभी मित्र सहमत हो गए थे।
हम केवल इस बर्तनों वाली चर्चा में श्रोता ही थे.. भाग नहीं ले रहे थे.. पर पीतल की कढ़ाई की बात चलते ही.. हमारा मन माँ की रसोई में जा पहुंचा था.. जहाँ माँ एक ज़माने में पत्ता गोभी की लज़ीज़ सब्ज़ी पीतल की कढ़ाई में सरसों का गर्म तेल डाल छुन्नन की आवाज़ के साथ मज़ेदार तैयार कर दिया करतीं थीं.. पीतल की कढ़ाई की चर्चा ने एकबार फ़िर उस कभी न भूलने वाली पत्ता गोभी का स्वाद ताज़ा कर दिया था।