” मैडम science test copies लेकर आ गई हैं! Test तो अच्छा ही दिया था.. अच्छे नंबर आने चाहिएं!”।

एक ज़माने में जब हम पढ़ा करते थे.. तो हर टेस्ट के बाद कुछ इसी तरह की कहानी हुआ करती थी.. मैडम का क्लास में टेस्ट copies लेकर आना होता था.. और हमारा कॉपियों का बंडल देख.. सोचना हो जाता था।

” रोल नंबर 13.. 25 मार्क्स आएं हैं! तुम्हारे 35 में से! अगली बार मेहनत करना!”।

टीचरजी रॉल नंबर के हिसाब से छात्र और छात्रा का नाम पुकारती चलती थीं.. हमारा रोल नंबर थोड़ा पीछे था.. आने में थोड़ा समय लग जाता था.. पर इंतज़ार की घड़ियाँ ख़त्म हो ही जातीं थीं…

” रॉल no 45..!”

” yes! Mam”

और हम खड़े हो जाया करते थे..

हालाँकि पढ़ाई-लिखाई में अच्छे थे.. और कक्षा में अच्छी खासी पहचान थी.. हमारी! और कक्षा ही क्या.. हमारे गुरु जन भी ख़ुश रहा करते थे.. हमसे!

खैर! रॉल नम्बर पुकारे जाने पर थोड़ा डरते और सहमते हुए.. कॉपी लेने जा खड़े हुए थे..

” Oh! Good! बहुत बढ़िया! Highest मार्क्स हैं.. तुम्हारे! 35 में से 33.. well done!”।

अपनी टीचर के मुहँ से यूँ अपनी तारीफ़ सुन.. और अपने इतने अच्छे अंक देख.. हमारे तो क़दम ही ज़मीन से दो फुट ऊपर हो जाया करते थे.. उन दिनों अच्छे नंबर लाना ही हमारे लिये.. सबसे बड़ी रईसी हुआ करती थी.. इतने अच्छे नंबरों वाली टेस्ट copy बस्ते में रख घर जाते हुए.. अपने आप को किसी रईस से कम नहीं समझते थे.. 

अपने नंबरों का यह अनमोल खज़ाना और अपनी रईसी शाम के वक्त पिताजी के घर आने पर परिवार संग बाँट कर हम और भी रईस हो जाया करते थे।

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