“अरे! यह क्या! सारी टहनियाँ सूख गईं.! गर्मी ज़्यादा है.. कोई बात नहीं पानी देते रहते हैं.. फूट आइयेंगी!”।

अपने गुलाब के पौधों की सूखी हुई.. टहनियाँ देख.. हमनें सोचा था.. पूरे के पूरे पाँच सुन्दर रंगों के गुलाब के गमलों का यही हाल था.. एक भी पत्ती देखने से भी नज़र नहीं आ रही थी। बहुत ही सुंदर और बड़े गुलाब खिला करते थे.. खैर! रोज़ इन गमलों में पानी देते वक्त.. नज़र गाड़ कर ज़रूर देखा करते थे.. शायद कहीं से कोई नई पत्ती फूटती हुई.. नज़र आ जाए।

पर ऐसा हुआ नहीं! अब माली तो हैं.. नहीं हम बस! यूँहीं शौक पाल बैठे थे.. गुलाब लगाने का।

रोज़ पानी देते हुए.. इन सूखे हुए.. गुलाबों में बरसात का इंतेज़ार कर बैठे थे। मन मानने को तैयार ही नहीं हो पा रहा था.. कि अब इनका साथ यहीं तक का था.. इनमें शेष फुटाव नहीं होगा। हाँ! बाकी जो पौधे सूखे थे.. वो तो एक आध बूंद पड़ने पर ही दोबारा से हरे-भरे हो गये थे.. उन्हें देख.. यह ज्ञान ज़रूर हो गया था.. हमें.. कि सूखे हुई हरियाली को दोबारा से अगर हरा-भरा होना होता है.. तो वक्त नहीं लगता।

पर नहीं मन प्रकृति के नियमों से ऊपर हो चला था.. ज़िद्द कर बैठा था,” कुछ भी हो! बरसेगा जब बरस लेगा! हम तो अपने हिसाब से पानी भर-भर कर ही इन गुलाबों में जीवन डाल कर रहेंगें!”।

हुआ यूँ.. कि ऊपर वाले ने हमें देखते हुए.. बादलों को ग्रीन सिग्नल दे दिया.. और लगातार कई दिनों तक जम कर बारिश गिरी.. पर अफ़सोस! हमारे पाँचो गुलाबों में से एक भी दोबारा नहीं फूटा! फूटते भी कैसे..! उनका और हमारा साथ यहीं तक का था.. अब उस बात को लेकर मन में थोड़ी उदासी थी.. कई सालों का उन सुन्दर गुलाबों से लगाव जो था.. ऐसे ही सोचते और अपने पौधों को निहारते .. हमारी नज़र अपने एक देसी गुलाब के गमले पर जा पड़ी थी.. काफ़ी बड़ा पेड़.. हो गया था.. हाँ! तभी अचानक से याद आया था.. देसी गुलाब की कलम बारिश में हो जातीं हैं! झट्ट से पाँच कलम अपने पाँच सूखे हुए गुलाबों की जगह लगा डालीं थीं.. देखते ही देखते इस बारिश के मौसम में सूखे हुए.. गुलाबों की जगह इन सुन्दर देसी गुलाबों ने ले ली थी.. और मन एकबार फ़िर प्रसन्न हो गया था..

बस! ऐसे ही हमारा जीवन भी है.. न कुछ अपना है! न ही कुछ पराया.. आना-जाना और नया-पुराना होता ही रहता है! ऊपर वाला हमसे अगर कुछ लेता है.. तो बदले में कुछ बेहतर और नया हमें देने के लिए.. तैयार भी रखता है।

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