रमेश ने सुनीता को बैग खोलकर चैक करवाने के लिए कहा था.. पर कुछ आनाकानी कर सुनीता अपने ले जाने वाला बैग न खोलते हुए.. नीचे चली गई थी। और फ़िर वही ड्यूटी का नाटक तो था ही..

” अरे! थोड़ा इस बैग की ड्यूटी देना.. इसमें मेरा गोल्ड है.. दिल्ली ले जाना है! यहाँ रह गया तो बिक जाएगा”।

सुनीता नेहा को ड्यूटी पर बिठा कर सीधा नीचे चली गई थी।

सासू माँ और रमा सब कुछ जानते हुए.. तमाशे का रंग लेने के लिए… तैयार खड़ीं थीं। माताजी ने पहले ही रमेश को सुनीता का बैग चैक करने का इशारा कर दिया था। बस! मज़े लेना बाकी था।

” पापा ने सारे कपडे निकाल कर फेंक दिए हैं.. और आपके गोल्ड के बॉक्स निकाल दिए.. जो आपने कपड़ों की पैकिंग में छुपाए थे”।

नेहा ने खाना बनाती हुई.. सुनीता को रसोई में आकर बताया था।

बात सुनते ही… सुनीता के रोंगटे खड़े हो गये थे.. घबराकर बौखलाते हुए.. ऊपर की तरफ़ भागी थी।

” हिम्मत कैसे हुई.. मेरे दहेज की चीज़ छूने की.. कुछ देकर भूले हैं! क्या.. जो बचे हुए.. सामान पर भी नज़र टिकी हुई है.. आधा तो माँ ने बिकवा-बिकवा कर लडक़ी पलवा दी.. बाकी रहे-सहे की तुम मौज मार लेना..!!”।

सुनीता ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाते हुए.. रमेश के सिर पर सवार होकर बोली थी।

” हाँ..!! तेरा सोना..! अब यह यहाँ से कहीं और नहीं जाएगा..!”।

रमेश का बदतमीज़ी भरे अंदाज़ में सुनीता को जवाब था।

” ये तूने ठीक किया.. ये सम्भाल कर रखेगी!”।

किसी भी चाल को न समझते हुए.. सुनीता रानी आँख बंद कर खिलाड़ियों के साथ पहलवानी कर बैठीं थीं.. जबकि इस खेल में हार और जीत की परवाह न करते हुए.. दिमाग़ की ज़रूरत थी।

मुकेशजी की बातों में कहीं गहरी सच्चाई और दूरदर्शिता छिपी थी.. बहुत दूर देखने के बाद और सारी नज़ाकत को समझते हुए.. ही उनके मुहँ से निकला था..

” हार कर जीतने वाले को सिकंदर कहते हैं!”।

नित नए रंग पेश करते हुए.. आपका अपना खानदान।

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading