ये सामान बेचकर बिसनेस का आईडिया रमेश की शादी के बाद ही शुरू हो गया था..

” यो कूलर बेच की न ! दिल्ली गया था!”।

दर्शनाजी ने सुनीता के आगे बताया था.. हालाँकि सीख तो उन्हीं की थी.. पर हिसाब तो शुरू से वही था..  ख़ुद ही कहना कि जा चोरी कर ले! और फ़िर चोर-चोर कहकर पकड़वा भी देना!

सामान उठाकर बेचने और उससे पैसे लाने की शुरुआत माताजी ने ही करवाई थी.. जिसे रमेश ने बिसनेस का नाम आगे चलकर दे दिया था। यह सामान बेचना और उठाना फैक्ट्री के कबाड़े से शुरू हुआ था.. जो सुनीता को कुछ अटपटा लगा था.. अब मायके में भी बिसनेस था.. और बाप-भाई तीनों ऑफिस जाते थे.. वही सब सुनीता ने इंदौर के लिए भी सोचा था.. पर मामला कुछ समझ से बाहर ही निकला था। फिलहाल माँ ने बेच कर खाना-उड़ाना ही रमेश की source ऑफ income बना दिया था। खाने-उड़ाने वाला रमेश था, तो खैर! पहले से ही.. खाते पीते परिवार का माँ का लाड़ला जो था.. अब लाडला भी अलग ही तरह का था.. रमेश! घर में हो रहे लगातार पारिवारिक झगड़ों में एक बात सामने आई थी.. किसी एक सदस्य के मुहँ से निकल गया था,” जब हम छोटे थे.. यो बापू ते पिटा करदी! डंडे ते तौड़ता था.. इसनें!”।

ये शब्द किसी एक सदस्य के दर्शनाजी के लिए थे.. जिसमें स्पष्ट हो रहा था.. कि रामलालजी जवानी के दिनों में जब ये तीन भाई छोटे थे.. अपनी पत्नी पर हाथ उठाया करते थे.. बड़े होने के बाद विनीत ने तो नहीं ! पर रमेश ने अपनी माँ की सिक्योरिटी का ठेका ले लिया था.. पिता को चिल्ला कर बुरी तरह से गन्दी गालियां किसी लालच में दिलवाना माँ का भी बिज़नेस बन गया था।

इसमें देखा जाए तो गलती रामलालजी की ही थी.. अपने कारोबार में उन्होंने दोनों में से किसी भी बेटे को हिस्सेदार बनाया ही नहीं! और न ही अपने फैक्ट्री के हिसाब से पैसे छोड़े हाथ से कभी.. जिसे जो रास्ता मिला.. चल पड़ा था.. पैसे की ज़रूरत ने बल्कि कुछ ज़्यादा ही ज़रूरत ने रमेश को माँ का गुलाम बना दिया..

कैसे गुलाम बन गया.. यह भी एक गहरा राज़ था.. देखते ही देखते रमेश की आदतों और परिवार की इनसिक्योरिटी ने सुनीता के घर में ड्यूटी शब्द को जन्म दे दिया।

हार कर पिता को सारी दास्ताँ सुना डाली थी.. सुनीता ने! बेटी को निराश देखकर माँ बोलीं थीं.. चिंता मत कर.. वक्त तेरा भी आएगा! इस बुढ़िया के चेहरे पर से नकाब ऊपर वाला हटा देगा! ईश्वर का दामन थामे रख!

और पिता ने हमेशा की तरह से हौंसला अफ़ज़ाई करते हुए, कहा था.. परमात्मा के भरोसे वहाँ जाकर बैठ जा! मैदान में डटी रह! बस! मरना मत!असली चोर पकड़ा जाता है.. हार के जीतने वाले को सिकंदर कहते हैं।

एक बार फ़िर सुनीता के कदम इंदौर के रंगमंच की तरफ़ बढ़े थे.. सारे किरदार या यूँ कहिए खिलाड़ी तैयार खड़े थे.. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ फ़िर से पर्दा उठा था.. और अबकि बार इस रंगमंच पर ड्यूटी शब्द का खुलासा होने को था..

खानदान के रंगमंच पर बने रहें कहीं जाएं नहीं।

Discover more from Praneta Publications Pvt. Ltd.

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading