सुनीता की urine infection वाली बात मुकेशजी ने सुन तो ली थी.. पर उन्होंने कहा कुछ भी नहीं था.. हाँ! सुनीता को यह ज़रूर दर्शा दिया था.. कि हो सकता है! अनिताजी को यही बीमारी हो.. जो सुनीता कह रही है।
ऊपर वाले की यही मर्ज़ी थी.. कि सुनीता और अनिताजी बिल्कुल भी न मिलें.. इसलिए हर बार माँ का हालचाल पूछने पर सुनीता का दिमाग़ पूरी तरह से घूम जाया करता था।
अनिताजी किसी कारण से अन्दर से बेटी से ख़ुद भी मुलाकात नही करना चाहतीं थीं.. इसलिए शायद परमात्मा की वाणी के रूप में कोई न कोई सुनीता का दिमाग़ घुमाता ही जा रहा था। खैर! माँ से मिलना तो अभी तय नहीं हुआ था.. पर फोन पर बातचीत लगातार जारी थी..
” माँ की रिपोर्टस दूसरे अस्पताल में गईं हैं! पर आज जब मैं माँ से मिलने गया था.. तो उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था.. कि उन्हें आराम है.. एकदम चैन की नींद सो रहीं थीं!”।
बड़े भाई सुनील की माँ को लेकर रिपोर्ट सुनकर एकबार फ़िर सुनीता को अच्छा लगा था।
” चलो! ख़तरे वाली कोई बात नहीं है! माँ ठीक हो रहीं हैं”।
सुनीता का मन माँ की तबियत को लेकर एकबार फ़िर शांत हो गया था। मुकेशजी से भी सुनीता की बातचीत लगातार बनी हुई थी।
” कल इतवार है! और मैं अस्पताल में ही तेरी माँ के पास ड्यूटी पर रहूँगा! तू मुझसे कल आराम से बात कर लेना!”।
अनिताजी की हालत में सुधार हो रहा था.. या फ़िर बात कुछ और ही थी.. दूर बैठा इंसान सुनीता की तरह बताई हुई बातों से ही अंदाज़ा लगा सकता है! और ईश्वर की मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता.. नहीं तो वीडियो कॉल कर भी माँ को देखा जा सकता था.. अनिताजी का निर्णय लेकर ऊपर वाला एकदम तैयार बैठा था.. जुड़े रहें खानदान के साथ।