अनिताजी के और सुनीता के बीच अब अस्पताल से फोन पर ही वार्तालाप होने लगा था ।

” ले! बेटा! अपनी माँ से बात कर ले! आज तो भाभी का जन्मदिन है.. इसलिए माँ के पास सभी बैठे हैं.. अब तो माँ की हालत में सुधार दिख रहा है.. भाभी ने माँ को जन्मदिन के नाम की खीर भी खिलाई है”।

मुकेशजी ने सुनीता से बातचीत के दौरान कहा था.. और फ़िर मुकेशजी ने सुनीता की बातचीत अनिताजी से भी करवाई थी..

” हाँ! माँ! अब कैसा महसूस कर रही हो! आप..!!”।

” आज तो ठीक लग रहा है.! और सब ठीक है..”।

” हाँ- हाँ सब बढ़िया.!”।

और सुनीता को तसल्ली हो चली थी.. कि माँ की हालत में सुधार हो रहा है।

” तू मुझे शाम को ही फ़ोन कर लिया कर.. बेटा! क्योंकि मैं शाम को ही अस्पताल में तेरी माँ के पास होता हूँ! वही समय मरीजों से मिलने का है!”।

मुकेशजी और सुनीता में बातचीत हुई थी।

पिताजी की बात मान सुनीता ने अगले दिन अस्पताल में माँ से बात करने के लिए नंबर मिलाया था.. पर इस बार की बातचीत अनिताजी से कुछ ठीक न लगी थी.. उनकी आवाज़ सुनीता से बात करते हुए.. बुरी तरह से कांप रही थी.. और वे ठीक प्रकार से बात करने में असमर्थ हो रहीं थीं। काँपती हुई आवाज़ में अनिताजी सुनीता से बोलीं थीं..

” तू अपना और अपने बच्चों का ख्याल रखना.. Bye…….!!”।

बहुत लम्बी और काँपती हुई टाटा बोली थी.. माँ ने सुनीता से.. अपनी माँ के इस तरह से कंपन भरे टाटा से सुनीता एकदम घबरा सी गई थी.. और जैसे ही मुकेशजी ने अपने हाथ में फ़ोन लिया था.. पूछ ही बैठी थी..

आज क्या हुआ.. पिताजी! माँ की हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं लग रही है!’।

और मुकेशजी ने फ़ोन सुनील के हाथ में थमा दिया था..

” माँ की ब्लड प्लेटलेट्स कम हो गईं हैं! अब देखो क्या होता है.. जो आया है! जाएगा भी!”।

भाईसाहब के इस जवाब ने सुनीता को हिला कर रख दिया था.. कहीं दूर किसी मन के एक कोने में सुनीता बात समझ गई थी.. पर मन नहीं माना था।

और फ़िर से अगले दिन माँ के हालचाल पूछने के लिए सुनीता ने फ़ोन कर पिताजी से कहा था.. कुछ सोचकर.. जो किसी से भी कहने की हिम्मत नहीं कर पाई थी.. सुनीता!

” पिताजी मैं माँ से मिलने आ रही हूँ!”।

और पिता का जवाब था..

” अरे! नहीं! नहीं अभी मत आना! मैं बता दूँगा..!!”।

” माँ को वेंटिलेटर पर ले लिया है..!”।

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