Tupperware के बड़े वाले डब्बे में मसाले के पैकेट जचा रही थी.. मैं, कि अचानक से मसाले के पैकेट एडजस्ट करते-करते.. मेरी अंगुलियाँ मेरे स्कूल के बस्ते में, अपनी copies और बुक्स जमाने लगीं थीं..
वाकई! बहुत ही प्यारे से दिन.. और न भूलने वालीं यादें थीं, वो! जब सेशन शुरू होने पर नया बैग मिला करता था.. और पूरे चाव से हम उसमें अपनी किताबें वगरैह जचाया करते थे..
नया बैग मिलने पर, पूरा निरीक्षण-परिक्षण कर लिया करते थे.. कि कहाँ बुक्स रखनी है, कॉपीज कहाँ जमानी हैं और टिफ़िन और पेंसिल बॉक्स कहाँ रखे जाएंगे।
सारा कुछ decide कर.. अपने-आप से एक वादा भी होता था..
” इस साल बैग बिल्कुल भी ख़राब नहीं करना है!”।
नए बैग के संग स्कूल में साल की शुरुआत करना.. एक नई मंज़िल पर चलने के समान हुआ करता था.. अपने नए बैग के साथ क्लास में दाख़िल होते वक्त.. चेहरे की ख़ुशी और कॉन्फिडेंस की तो बात ही निराली हुआ करती थी।
नया बैग, नई किताबें.. और साथ में वो अनमोल खुशियां..
जीवन में यहाँ तक आने की राह में खुशियां तो बहुत बटोरी हैं.. जैसे कि.. परिवार का सुख और साथ में अनेक भौतिक सुख..
पर नए बस्ते और उसमें संभाल कर नई किताबें और कॉपियों को रखना.. उस ख़ज़ाने के समान है.. जो मैने आज तक अपनी यादों में सम्भाला हुआ है।