हर रोज़ की तरह शाम को घर आया फ्रेश होकर खाना खाया। फिर मन में आया कि फ्रिज़ में एक पान का पत्ता पड़ा है उसमें चैरी वगैरह डालकर मीठा पान बनाकर श्रीमती जी को खिला दिया जाये। उठ कर फ्रिज़ से पान की पोटली निकाल कर खोली तो देखा कि पान का पत्ता तो सूखने लगा है। ये क्या कल शाम को ही तो रखा था! इतने दिन इतने सारे पत्ते रखे हुए थे कभी नहीं सूखे लेकिन आखिरी बचा हुआ पत्ता क्यूं सूख गया। मन में कई सारे विचार उमड़ने लगे और आँखों के आगे कई चलचित्र चलने लगे। समझ में आया कि अक्सर रिश्तों की मिठास साथ रहने में है और वे रिश्ते कभी नहीं सूखते लेकिन अपनों से दूरी अकेले इन्सान को अन्दर ही अन्दर खा जाती है और इसी पान के पत्ते की तरह इंसान सूख जाता है।यह वाकया हमें यह सीख देता है कि हम सबको मिलजुलकर रहना चाहिए रिश्तों में समर्पण रहेगा तो रिश्ते हमेशा जिन्दा रहेंगे वर्ना बिना साथी के जब पान का पत्ता सूख सकता है तो हमारी क्या बिसात है। हम तो फिर भी इन्सान है।

डॉ.राधेश्याम लाहोटी +91-9414147238


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