लहजे मे उसके वो लिहाज न था।
बात करने का वो अंदाज न था।
मुद्दत बाद मिले थे हम दोनो
पर ,ये नया एक आगाज न था।
खामोशी ढूंढती रही लफ्जो को
ऐसा तो वो बेआवाज न था।
कहता था वो जानता हू तुझको
मगर ऐसा वो मेरा हमराज न था।
जिंदगी से सुर न निकले कोई
ऐसा तो ये कभी टूटा साज न था।
surinder kaur