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सॉरी बाबू भाग एक सौ इक्कीस

सॉरी बाबू

“बोल! फांसी मिलेगी या उम्र कैद?” नेहा ने अचला से पूछा था। आज फैसले का दिन था। नेहा कोर्ट जाने के लिए तैयार थी।

“उम्र कैद!” अचला ने हंस कर कहा था।

“झूठ!” नेहा कूद कर अलग खड़ी हो गई थी। “तू तो चाहती है कि तेरा सहेला बना रहे! फांसी मिलेगी!” नेहा ने घोषणा की थी। “मुझे तो बाबू से जाकर मिलना है।” नेहा ने बेबाक कहा था। “मेरा यहां क्या धरा है अचला!” दलील थी नेहा की।

कोर्ट जाते जाते नेहा कल्पतरु की ओर जाती दृष्टि को रोक नहीं पाई थी!

“अब आप कौन करिश्मा करेंगे? कानून और करिश्मा का तो बैर है। वहां तो दो और दो चार ही होते हैं – चालीस नहीं!” नेहा मुसकुराई थी। “चलो जान छूटेगी – इस जहन्नुम से!” उसने राहत की सांस ली थी।

कोर्ट रूम लोगों से खचाखच भरा था। लेकिन नेहा का अपना कोई नहीं था। उसे अचानक ही बाबा, पूर्वी और समीर याद हो आए थे। सीमा ने तो शादी के बाद कभी मुड़कर भी नहीं देखा था। और अब फांसी झूलने के बाद तो ..

उस अपार भीड़ में सुधीर था – जो नेहा की ओर हाथ हिला हिला कर कुछ कहना चाहता था। लेकिन पुलिस ने नेहा को जकड़ा हुआ था।

दर्शकों के लिए तो नेहा एक मुजरिम थी जिसने अपने प्रेमी की नृशंस हत्या की थी। समाज के लिए एक कलंक थी – नेहा। उसे कम से कम उम्र कैद तो मिलनी ही थी।

“आप कुछ कहना चाहेंगी, मिस नेहा?” जज साहब ने बड़ी ही शालीनता से नेहा से प्रश्न किया था।

“मैं कुछ कहना चाहूँगा, योर लॉर्डशिप!” शेखर ने सामने आकर जज साहब से आग्रह किया था। “वकालत नामा फाइल पर लगा है योर ऑनर!” शेखर ने सूचना दी थी। “मैं गुजारिश करूंगा कि मेरी बात इन कैमरा सुनी जाए!” शेखर का आग्रह था।

जज साहब ने पब्लिक प्रोसीक्यूटर की ओर देखा था!

“नो ऑब्जैक्शन योर ऑनर!” पब्लिक प्रोसीक्यूटर ने तुरंत मान लिया था।

जमा भीड़ के बीच खलबली मच गई थी। एक कौतूहल था, जिज्ञासा थी और था सस्पेंस जो दर्शकों के दिमाग पर छा गया था। केबिन के अंदर जाते जाते शेखर ने नेहा को देखा था। शेखर से नेहा की आंखें मिली थीं तो उसकी पलकें झुक आई थीं। “नएला कुछ करेगा – देख लेना!” नेहा को अचानक अचला की आवाजें सुनाई दी थीं और .. और वो कल्पतरु ..?

“नेहा ने किसी को नहीं मारा योर ऑनर!” शेखर ने सहज भाव से कहा था।

“फिर मारा किसने वकील साहब?” जज साहब ने भी हंस कर पूछा था।

“ये देखिए – स्लाइड। दूध का दूध और पानी का पानी!” कहते हुए शेखर ने प्रोजैक्टर ऑन कर दिया था।

27 तारीख की शाम को पोपट लाल के बंगले पर हुई पार्टी का दृश्य अचानक ही सामने आ गया था।

विक्रांत श्रेया के साथ बैठा कॉफी पी रहा था। अचानक ही जोहारी उसकी ओर आता दिखा था। उसके पीछे रमेश दत्त भी चला आ रहा था। विक्रांत की निगाह जैसे ही जुहारी और रमेश दत्त पर पड़ी थी उसने कॉफी का मग रख दिया था। और जैसे ही रमेश दत्त निकट आया था, विक्रांत ने उस पर हमला कर दिया था। लेकिन रमेश दत्त की जान बचाने के लिए जुहारी बीच में आ गया था और विक्रांत ने जुहारी को गर्दन से पकड़ लिया था। जुहारी और विक्रांत की खूब जंग हुई थी। जुहारी लड़ाका था लेकिन विक्रांत ने उसे जमीन पर पटक लिया था। अब वह जुहारी की छाती पर सवार था और रमेश दत्त को जंच गया था कि वह जुहारी को मार डालेगा!

तब रमेश दत्त ने गुप्ती निकाली थी। उसने सीधा विक्रांत की गर्दन पर वार किया था। फिर दूसरा वार किया था। विक्रांत एक ओर लुढ़क गया था। वह लाश हो गया था और जुहारी भी लाश की तरह ही पड़ा रहा था।

रमेश दत्त ने गुप्ती पर लगे विक्रांत के खून को माथे लगाया था और प्रत्यक्ष में कहा था – कासिम बेग घाजी! स्लाइड बंद हो गई थी।

“इस घाजी का क्या मतलब हुआ?” जज साहब पूछ बैठे थे।

“इसका अर्थ हुआ जज साहब कि रमेश दत्त ने एक काफिर का कत्ल कर दिया था और अब वह इस्लाम के अनुसार घाजी बन गया था।” शेखर ने विस्तार से समझाया था।

“ओ आई सी!” जज साहब ने भी स्वीकार में सर हिलाया था।

“वेरी स्ट्रेंज!” पब्लिक प्रोसीक्यूटर ने भी अनायास कहा था। “पुलिस ने तो केस ही कुछ और बना डाला है।”

जज साहब भी सकते में आ गए थे। जो फैसला वो सुनाने वाले थे वो तो अब संभव ही न था। नेहा को कातिल मानना तो अब कोसों दूर था। और जो असली कातिल थे वो तो कानून के पर्दे के पीछे जा बैठे थे।

“वकील साहब!” जज साहब कुछ सोच कर बोले थे। “मुझे अब एक बार ये भी समझाइए कि अगर मिस नेहा ने विक्रांत को नहीं मारा था तो फिर कबूल क्यों किया?”

शेखर के चेहरे पर एक छोटी स्मित रेखा उभरी थी और गायब हो गई थी।

“योर ऑनर! रमेश दत्त इज ए हैबिचुअल ऑफैंडर इन केस ऑफ हिन्दू गर्लस!” शेखर बताने लगा था। “आजमगढ़ का आलम अगर आप भी देख लेंगे तो दंग रह जाएंगे!” शेखर ने एक नजर पब्लिक प्रोसीक्यूटर पर भी डाली थी। “मिस नेहा को बहका कर रमेश दत्त आजमगढ़ ले गया था। और अब नेहा को उसके हाव-भाव और हाल हरकतों से समझ आ गया था कि वो उसके जाल में फंस चुकी थी।

अचानक ही रमेश दत्त की तलाश करती बंबई पुलिस आजमगढ़ पहुंच गई। नेहा को उस कैद से आजाद होने का रास्ता मिल गया। रमेश दत्त लखनऊ गया था। नेहा ने पुलिस को कह दिया कि विक्रांत की हत्या उसने की थी। जब पुलिस ने पूछा कि क्यों तब नेहा ने कहा कि उसने शादी करने से मना कर दिया था और उसपर बदचलन होने के आरोप लगाए थे। प्रतिशोध लेने की गरज से उसने विक्रांत को जहर देकर मार डाला!

चूंकि पुलिस को तीस तारीख की घटना को स्थापित करने में नेहा का बयान वरदान लगा था – उन्होंने नेहा को अरेस्ट किया और बंबई ले आए!”

“और तीस तारीख का केस फूलफ्रूफ बना दिया?” जज साहब ने ही कहा था।

“यस योर ऑनर!” शेखर ने स्वीकार में सर हिलाया था।

लेकिन पब्लिक प्रोसीक्यूटर आश्चर्य चकित खड़े रह गए थे!

“एक प्रश्न और भी पूछूंगा वकील साहब!” जज साहब बोले थे। “विक्रांत ने रमेश दत्त पर हमला क्यों किया! जानलेवा हमला?”

“इसलिए योर ऑनर कि विक्रांत के सुनहरे संसार को रमेश दत्त ने ही पलीता दिखाया था।” वकील साहब बता रहे थे। “बॉम्बे मेटरनिटी होम का वो पत्र फेक था!” शेखर ने बताया था। “उन्होंने स्पष्ट कहा है कि उनके यहां ऐसा कोई एबॉरशन हुआ ही नहीं था।”

“तो ..?”

“विक्रांत के दिमाग में जो शक बैठा कि वो पागल सा हो गया। वो .. वो एक सच्चा प्रेमी था। वो प्रेमियों की उस नस्ल का था जज साहब जो एकल प्रेम के पुजारी होते हैं!”

“क्या आज भी ऐसे लोग होते हैं?”

“होते हैं योर ऑनर!” उत्तर पब्लिक प्रोसीक्यूटर ने दिया था। “दुनिया इन्हीं अच्छे सच्चे लोगों के दम पर चलती है।” उनका कहना था।

जैसे ही जज साहब केबिन से बाहर आए थे दर्शकों में हलचल बढ़ गई थी। सांस साधे लोग जज साहब के फरमान को सुनने को आतुर थे।

“हम आपको मिस नेहा बा इज्जत बरी करते हैं।” जज साहब ने फैसला सुना दिया था। “यू आर एक्विटेड!” वो फिर से बोले थे। “और .. और इन शैतानों के खिलाफ तो अब केस चलेगा?” उन्होंने पब्लिक प्रोसीक्यूटर से पूछा था। “गैट दैम हैंग्ड!” जज साहब ने अपनी राय व्यक्त कर दी थी। और वो उठ गए थे।

कोर्ट रूम में उमड़ा उल्लास, सौहार्द और नेहा के प्रति स्नेह संभाले न संभल रहा था। सुधीर बड़ी मुश्किल से नेहा के किनारे आ कर लगा था। उसने उचक कर नेहा के कान के पास पहुंच कर कहा था – काल खंड रिलीज हो गई है। सिनेमा घरों पर विक्रांत भाई जी के पोस्टर लगे हैं और लोग फूल मालाएं चढ़ा रहे हैं।

“हट बे!” पुलिस वाले ने सुधीर को धक्का मार कर अलग हटा दिया था। नेहा का चेहरा फूलों की तरह खिला था और फिर अंजाने ही उसकी आंखें भर आई थीं।

“मैं न कहती थी कि ये नएला कोई गुल खिलाएगा!” अचला प्रसन्न थी और नेहा को बाँहों में भरे थी। “जा – तू तो जा, बहिन!” अचला का कंठ भारी हो आया था।

लेकिन नेहा की दृष्टि बहक रही थी। कहां जाए – उसे कुछ सूझ न रहा था। फिर अचानक उसे डॉ. प्रभा याद हो आई थी। प्रभा से माफी मांगने का भी मन था नेहा का। छोटा सूटकेस हाथ में लटकाए नेहा जेल से बाहर निकली थी। शेखर सामने खड़ा था – एक अनोखे आश्चर्य की तरह!

“अ .. अ ..आप?” तनिक लजाते हुए नेहा ने पूछ ही लिया था।

“हां!” शेखर मुसकुराया था। “मां आई हैं!” उसने सूचना दी थी। “गाड़ी में बैठी हैं, आइए!” कहकर शेखर ने नेहा के हाथ से सूटकेस ले लिया था।

मां .. माधवी कांत ने नेहा को आते देखा था तो कार से बाहर निकल आई थीं।

“आ .. आ जा .. मेरी बेटी!” माधवी कांत कह रही थी। “तेरी घोर तपस्या ने तुझे अमर बना दिया है – नेहा!” वह कह रही थीं।

“मां ..” नेहा रुलाई न रोक पाई थी। “ओह मेरी मां ..” वह बिलख रही थी। “म .. म .. मैं..”

“तू तो निर्दोष है बेटी!” माधवी कांत ने उसे अभय दान दिया था। “चल कर तुम दोनों की शादी करूंगी! अब ना मानूंगी मैं किसी की ..” वो कहती रही थीं।

शेखर और नेहा चुपचाप सुनते रहे थे।

और फिर नेहा ने मोहन सिंह स्टेट में गुलाबों के फूलों से पराग-पुंकेसर चुरा कर ले जाती तितलियों को उड़ते भागते देख लिया था।

मेजर कृपाल वर्मा

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