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सॉरी बाबू भाग एक सौ बीस

सॉरी बाबू

मौलाना अरब अमीरात का डैलीगेशन लेकर दिल्ली पहुँचे थे।

चुनावों के नतीजे आने वाले थे। दिल्ली में एक विशेष प्रकार की गहमागहमी थी। पूरे देश के नेता और कार्यकर्ता दिल्ली में मौजूद थे। जीत हार की अटकलें लगाई जा रही थीं। हर किसी का अलग हिसाब था और अपने अपने आंकड़े थे। लेकिन उम्मीद यही थी कि रूलिंग पार्टी की विजय होना स्वाभाविक था।

कासिम बेग लखनऊ से दौड़ा भागा आया था और मौलाना के डैलीगेशन में शामिल हो गया था। मौलाना कासिम बेग के काम से खुश थे। उन्हें अपनी कामयाबी की उम्मीदें दिखाई दे रही थीं। तुर्की से आए इस डैलीगेशन ने खलीफात के चिर परिचित सपने को अब आ कर साकार होते खुली आंखों देखा था।

राष्ट्रपति भवन में उनका जोरदार स्वागत हुआ था। खासकर राष्ट्रपति के मुस्लिम होने से डैलीगेशन को बेहद प्रसन्नता हुई थी। कासिम बेग को प्रत्यक्ष में दिखाई दे गया था कि उसका भी अगला मुकाम यही था। एक बार लीग का उद्देश्य पूरा होने के बाद तो ..

“दिल्ली दर्शन के बाद तो आत्मा हरी हो गई कासिम!” मौलाना बयान कर रहे थे। “लगता है कि यहां से न तो मुगल गए हैं न अफगान!” उन्होंने प्रसन्न होते हुए कहा था। “हमारा इतिहास तो आज भी यहां जीवंत हुआ खड़ा है।” उन्होंने अन्य डैलीगेशन के मैम्बरों को चकित दृष्टि से देखा था। “जिधर जाओ – उधर ही एक दरगाह पाओ! जिधर देखो उधर ही एक मस्जिद दिख जाएगी! और .. और सारे शहर में दरवाजों से लेकर सड़कों तक हमारा नाम दर्ज है। हाहाहा!” वह खूब हंसे थे। “भाई कासिम ..”

“अभी आप ने एक और बात नोट नहीं की!” कासिम बेग बीच में बोल पड़ा था। “हुजूर जो मुख्य मुद्दा है वो तो आप भूल ही रहे हैं!” तनिक हंसा था कासिम बेग। “मैं तो फिल्म मेकर हूँ न!” उसने अपनी तारीफ की थी। “मुझे तो एक साथ सब कुछ दिखाई दे जाता है। मैं जब अपने लेंस से देखता हूँ तो ..” रुका था कासिम बेग।

“बताओ, भाई!” डैलीगेशन के एक मेम्बर ने जिज्ञासा जाहिर की थी।

“आप अभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी जाएंगे तब आप समझ पाएंगे कि हमारे पुरखे कितने दूरदर्शी थे। देवबंद देखेंगे तो मानेंगे हिन्दुस्तान ही है जो इस्लाम की हिफाजत करता है। और .. और अभी आप ने जे एन यू नहीं देखा .. उस्मानिया और जामिया के दर्शन नहीं किए! और .. और अभी तो आपने ..”

डैलीगेशन के सारे मेम्बर उल्लास और उत्साह से उछलने लगे थे।

“अब तो बस अल्लाह की नजर चाहिए और ..” कासिम बेग ने रुक कर पूरे डैलीगेशन को देखा था। “और आप बुजुर्गों का आशीर्वाद ..”

“इसकी फिकर मत करो कासिम!” मौलाना ही बोले थे। “मैंने जो जो वायदे किए थे – सब पूरे किए हैं।” उनका ऐलान था। “और आगे भी जो तुम मांगोगे – मिलेगा!”

“मौका अब नहीं गंवाना चाहिए हमें!” डैलीगेशन के एक अन्य सज्जन बोले थे। “मौका बेहद मुफीद है!” उनका बयान था। “मैं तो इन हिन्दुओं को दाद देता हूँ कि इन्होंने हमारे हर हस्ताक्षर को महफूज रक्खा है!” वह खुलकर हंसे थे। “किसी भी मोन्यूमेंट की एक ईंट तक नहीं टूटी है! सब की सरकार हिफाजत करती है। लोग चर्चा करते हैं और सैलानियों के लिए खुली छूट है वो चाहे सो पढ़ें, समझें और लिखें! आज भी अरबी और फारसी की लिखावटें ज्यों की त्यों साबुत हैं! और मुसलमानों के साथ हिन्दू कोई भेद भाव नहीं रखते!” वो तनिक रुके थे। “मैंने तो कभी सुना था कि मुसलमानों के साथ हिन्दुस्तान में जुल्म होते हैं! लेकिन मैं तो हैरान हूँ कि ..”

एक चुप्पी छा गई थी।

“हुजूर! अगर कोई इस्लाम देश होता तो अभी तक तो ..” एक दूसरे मेंबर बोले थे।

“दूर क्यों पाकिस्तान में ही देख लो!” दूसरे मेम्बर बताने लगे थे। “मैं तो गया था। मैंने देखा था कि वहां हिन्दुओं को ..”

“इस्लाम को कबूलने में या कि हमारा शासन होने पर बहुत सारे हिन्दू खुश होंगे!” कासिम बेग बताने लगा था। “ये जो धर्म निरपेक्ष का मुद्दा खड़ा किया है इसने खूब काम दिया है। हिन्दू मुस्लिम भाई भाई का मंत्र भी खूब सफल हुआ है। हम हिन्दुओं को भाई मानें या न मानें पर ये हमें मानते हैं! हाहाहा! भोले लोग हैं।” कासिम बेग खूब हंसा था।

डैलीगेशन के सभी मेंबर बेहद प्रसन्न थे।

“चाहें तो हैदराबाद का प्रोग्राम भी बना लें?” कासिम बेग की सलाह थी। “बंबई जाना तो अभी ठीक नहीं है।” उसने बताया था। “कुछ यूपी के भइयों ने और बिहार के बबुआ ने बंबई का माहौल बिगाड़ दिया है।” उसने संकेत दिए थे।

“कहते हैं – ये लोग खतरनाक जर्मस जैसे होते हैं?” एक मेंबर पूछ बैठे थे।

“अब तो हमने भी खुल कर कह दिया है महामहिम – ये देश किसी के बाप का थोड़े ही है। हमारा यही वतन है। हमारा भी हिस्सा कित्ता तो बनता है।” कासिम बेग ने सफाई देते हुए कहा था। “इन जर्मस की भाषा भी हम समझने लगे हैं!” कासिम ने शेखी बघारी थी।

“लेकिन हम तो इन्हें आज तक नहीं समझ पाए बरखुदार!” महामहिम ने तनिक हंस कर कहा था। “मैं ऑरिएंटल स्टडीज का स्टूडेंट हूँ। मैंने हिन्दुइज्म पर रिसर्च की है और मैंने पाया है कि मुगलों, अफगानों, पठानों और अंग्रेजों के सतत प्रयत्नों और पनिशमेंट्स के बावजूद भी सनातन आज भी जिंदा है। इनके वेद पुराण, गीता और अन्य अनेक ग्रंथ आज भी ..” उन्होंने सभी डेलीगेट्स को देखा था। “जबकि अन्य विश्व के धर्म आज अपनी शिनाख्त खोते जा रहे हैं ..”

“हमारा तो हमेशा से नारा रहा है – लड़ लड़ के लिया पाकिस्तान – हंस के लेंगे हिन्दुस्तान!” कासिम बेग ने हाथ उठा कर ऐलान जैसा किया था। “इस बार हम आपको हरगिज भी निराश नहीं करेंगे!”

खूब तालियां बजी थीं। एक विजय घोष जैसा हुआ था। डैलीगेशन के सभी लोग बेहद प्रसन्न थे।

दिल्ली हवाई अड्डे पर डैलीगेशन को सी ऑफ करता कासिम बेग और उसके सहयोगी उल्लास से भरे थे। गजब की गहमा-गहमी थी। एक बार फिर से खलीफात का झंडा लाल किले पर फहरता दिखाई दिया था।

हाथ आई दिल्ली की सल्तनत में अनायास ही कासिम बेग घाजी को नेहा याद हो आई थी। नेहा कहां थी? शहंशाह कासिम बेग घाजी की परम प्रिया नेहा थी कहां?

“आजमगढ़ चलो!” कासिम बेग ने अपने ड्राइवर को सीधा आदेश दिया था।

नेहा से बतियाता, हंसता, शर्माता और चुहल करता कासिम बेग अपने सुखी संसार में खुला विचर रहा था।

“अब तुम दिल्ली की मलिका-ए-आलिया बनोगी नेहा!” कासिम बेग बता रहा था। “हमारा एक छत्र राज होगा हिन्दुस्तान पर! अब हमारी सल्तनत कायम होगी! हमारी औलादें ..”

“मुझे कहां दफनाओगे कासिम?” नेहा ने अटपटा प्रश्न पूछा था। “मैं .. मैं तो मर गई!” वह बता रही थी। “तुमने .. जो ..”

“मैंने मना कब किया था ..?” रुआंसा हो आया था कासिम। “तुम्हीं ने तो .. उस छोकरे के साथ नेह जोड़ लिया था? उसे तो मरना ही था। लेकिन .. तुम ..?”

न जाने कैसे नेहा कासिम बेग की आंखों के सामने से नदारद हो गई थी।

कासिम बेग को होश लौटा था। कार तेजी से आजमगढ़ की ओर दौड़ रही थी। पूरी जमीन और आसमान भाग रहा था। कासिम बेग को खुशी हो रही थी कि वो बहुत शीघ्र ही नेहा से मिलने वाला था और उसे खुशखबरी देने वाला था कि हिन्दुस्तान अब उनका होगा .. और ..

कार रुकी थी। कासिम बेग ने बाहर आकर बंगले को देखा था। सब सूना सूना पड़ा था!

कासिम बेग ने आस पास को टटोला था तो पाया था कि आम के पेड़ के तने के साथ कमर टिकाए कमली बैठी थी।

“कमली!” जोरों से आवाज दी थी कासिम बेग ने। “कहां हैं बेगम साहिबा?” उसने गड़बड़ाते हुए पूछा था।

“पुलिस ले गई!” कमली ने लड़खड़ाती जबान में कहा था। “बंबई से पुलिस आई थी सो ले गई!”

“क्यों ..? कैसे ..?” कासिम बेग पूछने लगा था।

“हुजूर नवाब साहब – बेगम साहिबा ने जुर्म कबूल किया था।” मुसाफिर चला आया था और बताने लगा था।

“कैसा जुर्म?”

“उन्होंने कहा था कि विक्रांत बाबू को जहर देकर उन्होंने मारा था। लिख कर बयान दिए थे और मैंने और अब्दुल ने दस्तखत किए थे।” मुसाफिर कांपते कांपते बता रहा था।

कासिम बेग आपा भूल गया था। इतना क्रोध चढ़ा था कि उसका हाथ भीतर छुपी गुप्ती पर जा टिका था। उसने सामने खड़े मुसाफिर का गला काट दिया था। कमली चीखी थी और बगीचे में भाग गई थी!

“वो, कासिम भाई!” दिल्ली से फोन था। “गजब हो गया यार! आसिफ बताने लगा था। “पार्टी चुनाव हार गई!” वह कह रहा था। “न जाने क्या जादू किया है जनता पर – इन संघियों ने कि ..” वह बताता ही रहा था।

“जर्मस ..!” बड़बड़ाया था कासिम बेग। “दीज .. सनातनी जर्मस ..!” उसकी दांती भिच आई थी।

शहंशाह-ए-आजम – कासिम बेग घाजी पधार रहे हैं .. कासिम बेग अचानक ही आती इन अनजान आवाजों को सुनने लगा था।

हाहाहा – जोरों से हंसने लग रहे थे लोग!

हाहाहा! हंसी का ज्वार रुक न रहा था।

परास्त हुआ कासिम बेग जमीन पर आ गिरा था।

मेजर कृपाल वर्मा

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