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सॉरी बाबू भाग एक सौ अठारह

सॉरी बाबू

लक्ष्मण रेखा पार करते ही नेहा को कासिम बेग ने हर लिया था और अब उसे विराट विमान में बिठा कर अपने स्वप्न लोक में लिए चला जा रहा था।

कासिम का मन बल्लियों कूद रहा था। नेहा बगल वाली सीट पर बैठी थी। कासिम बेग नेहा के बदन से आती गर्मी को महसूस करने में लगा था। वह चाहता था कि नेहा के साथ कोई प्रिय संवाद शुरू करे। लेकिन अचानक उसे पीछे छूट गई बंबई ने बुला लिया था।

“है तो वहां पोंटू!” हंस कर उत्तर दिया था कासिम बेग ने। “अब तो बंबई पोंटू की मुट्ठी में बंद है।” कासिम बेग जैसे बंबई को ही बता रहा था।

वह जानता था कि पोंटू के पास दो कारगर हथियार हैं जिनका वार कभी खाली नहीं जाता। पोंटू की पुड़िया और पोंटू का पैसा कभी ठिकाने चूक नहीं होता था। हर संभ्रांत घराने में और हर उच्चाधिकारी के ऑफिस में पोंटू की इन दोनों धोंसों का दखल था। पोंटू से बाहर बंबई में कुछ भी न था।

सुधीर के बारे सोचते ही कासिम बेग की हंसी छूट गई थी।

पोपट लाल को पुलिस की सुरक्षा मिल गई थी। सुधीर अब वहां झांक भी नहीं सकता था। काल खंड बैन थी, बैन ही रहेगी – वह जानता था। विक्रांत का केस चाहे कितनी बार क्यों न खुल जाए नतीजा वही रहेगा – ये भी तय था। थोड़े दिन की बात थी कि यू पी के भइये और बिहार के बबुआ बाएबेला मचा कर बैठ रहने थे। कांटा तो निकल गया था।

ललचाई दृष्टि से कासिम बेग ने नेहा को देखा था।

“गजवा-ए-हिन्द का अर्थ होगा – शहंशाह-ए-हिंद!” कासिम बेग ने एक मंत्र की तरह हाथ में आ गए अवसर को सराहा था। “शहंशाह-ए-हिंद – जिसकी भुजाओं में अकूत शक्तियों का संचार होगा।” प्रफुल्लित मन से कासिम बेग ने हाथ आ गए इस अवसर की प्रशंसा की थी। “आजमगढ़ के बाद लखनऊ और उसके बाद दिल्ली!” वह खुलकर हंसना चाहता था।

अचानक कासिम बेग का मन नेहा से बातें करने का हो आया था।

“नेहा!” कासिम बेग ने तनिक कोहनी से धकेल कर नेहा को सचेत किया था। “मेरा मन ..” उसने मुड़ कर देखा था तो नेहा की आंखें खुली थीं। “मेरा मन कह रहा है नेहा कि अब हम दोनों कहीं दूर, बहुत दूर किसी अनूठे एकांत में जाकर एक अद्भुत सा नीड़ बनाएंगे। हम दोनों मिल कर संरचना करेंगे – इस घोंसले की! जैसे कि .. जैसे कि कभी ताज महल बना होगा .. और ..”

नेहा चुप थी। नेहा शांत थी। उसके उद्गार जागे ही नहीं थे।

“देखो नेहा!” कासिम बेग ने फिर से नेहा को मनाने के प्रयत्न किए थे। “हमारा प्रेम मिलन भी वैसा ही है .. जैसा कि ..” रुक गया था कासिम बेग। सहसा उसे बताने के लिए कोई उदाहरण न जंचा था। “जैसा कि – विक्रम जीत और अंजुमन बानो का था।” कासिम बेग ने कुछ सोच कर उदाहरण दिया था।

नेहा तनिक सी चौंकी थी। विक्रम जीत और अंजुमन बानो का नाम तो उसने कभी सुना ही न था। उसे लगा था कि कासिम बेग उसे उल्लू बना रहा था। वह तनिक मुसकुराई थी।

“ये झूठी बात नहीं है, नेहा!” कासिम बेग तनिक संभल कर सीट पर बैठा था। “इंटरैस्टिंग प्रेम कहानी है डार्लिंग!” कासिम बेग ने नेहा के साथ आंखें चार करनी चाही थी। “विक्रम जीत गौतम राजपूत राजवंश का राजकुमार था। उसका प्रेम अंजुमन बानो से हो गया था जो कि मुसलमान थी!” कासिम बेग ने रुक कर नेहा की आंखों को पढ़ा था। “इन हिन्दुओं को तो तुम जानती ही हो! राजकुमार विक्रम जीत को देश निकाला दे दिया गया।” कासिम बेग तनिक मुसकुराया था। “जैसे कि .. जैसे कि .. विक्रांत ने ..” कासिम बेग ने नेहा की दुखती रग पर उंगली धर दी थी।

असह्य पीढ़ा की टीसों ने अचानक नेहा के दिल दिमाग को लबालब भर दिया था।

“मैं तो तारीफ करूंगा राजकुमार विक्रम जीत की कि उन्होंने बादशाह जहांगीर के यहां जाकर गुहार लगाई। शहंशाह ने उन्हें सुबेदार नियुक्त कर दिया और बदले में राजकुमार विक्रम जीत ने इस्लाम कबूल कर लिया ओर उसके बाद ..” ठहर गया था कासिम बेग।

“उसके बाद?” नेहा ने संयत स्वर में पूछा था।

“दो बेटे हुए अंजुम बानो के – आजम और अजमत!” कासिम बेग बताने लगा था। “ये आजमगढ़ बड़े आजम के नाम पर है और किला अजमत के नाम पर!” कासिम बेग ने सूचना दी थी। “पुरखे तो हमारे भी गौतम राजपूत थे लेकिन ..”

नेहा ने आंखें बंद कर ली थीं। कासिम बेग को लगा था कि नेहा को विक्रम जीत और अंजुमन बानो की कहानी पसंद आई थी। उसे तनिक बल मिला था और वो नेहा को प्रसन्न करने के प्रयत्न में जुट गया था। वो किसी तरह से भी नेहा को मना लेना चाहता था ओर राजी कर लेना चाहता था कि ..

“ये आजमगढ़ पहले दुर्वासा ऋषि का आश्रम और स्थान था!” कासिम बेग फिर से बताने लगा था। “बड़ा ही सुरम्य प्रदेश था। ये तमसा नदी के किनारे बसा है। तमसा घाघरा की सहायक नदी है। और अगर तुम अनुसूइया पुत्र दुर्वासा का काल चक्र देखोगी तो दंग रह जाओगी!”

कासिम बेग बड़े ही मनोयोग से नेहा को आजमगढ़ का इतिहास समझा रहा था। उसे प्रसन्नता थी कि आज एक लंबे अरसे के बाद नेहा उसके पास लौटी थी और ..

लेकिन नेहा गहरी निद्रा में निमग्न समय और कालचक्र का ज्ञान भूल न जाने किस लोक में उड़ान पर निकल गई थी। लेकिन कासिम बेग आज नए उत्साह के साथ नेहा को नवाब आजम शाह की कहानी बताने लगा था।

“बड़ा ही जालिम नवाब था ये आजम शाह!” कासिम बेग के चेहरे पर नूर खेल रहा था। “इसने हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन कराने के लिए मजबूर किया था और जम कर नरसंहार किया था।” कासिम बेग तनिक रुका था। “और नेहा अगर जरूरत पड़ी तो हम भी ..” उसने फिर से नेहा को टटोला था।

नेहा को गहरी निद्रा का आनंद लेते देख कासिम बेग भीतर तक जल भुन गया था। उसपर क्रोध चढ़ा था और वह न जाने कैसे आपा खो बैठा था। उसका हाथ एक बार बहका था और भीतर कपड़ों में छुपी गुप्ती पर जा धरा था। उसे याद हो आया था कि किस तरह उसने गुप्ती का वार किया था और विक्रांत की गर्दन ..

“अगर जोहारी बीच में न आ गया होता तो ..?” अचानक कासिम बेग ने महसूस किया था कि जिस तरह विक्रांत के हाथों जोहारी मारा गया था – उसे भी मर जाना था। “खैर!” तनिक संभला था कासिम बेग। “गुप्ती पर अभी भी काफिर विक्रांत के खून के कतरे जमे थे। काफिर विक्रांत को मार कर वह अब कासिम बेग घाजी बन गया था और अब नवाब कासिम बेग घाजी बनने का अवसर ही ज्यादा दूर नहीं था।

“इसे भी बोटी बोटी करके काटूंगा!” कासिम बेग ने एक शपथ ली थी और गहरी नींद में सोती नेहा को आग्नेय नेत्रों से घूरा था। “इसे .. इसे तो ..” उसके इरादे आज नेक न थे।

“ये कहां आ गए हम ..?” नेहा ने हवाई जहाज से उतरते ही प्रश्न पूछा था। “हम तो .. कोरा मंडी ..?”

कासिम बेग को इस प्रश्न का उत्तर आता था। उसे पता था कि नेहा पहला प्रश्न यही पूछेगी!

“उसे कमीने पठान ने डेट्स बदल दी नेहा!” कासिम बेग ने पठान को कोसा था। “मैंने सोचा कि चलो बीच में आजमगढ़ हो आते हैं।” वह हंसा था। “बंबई में दम घुट रहा था, नेहा!” उसने शिकायत की थी। “मैं चाहता था कि हम उस माहौल से बाहर निकलें!” उसने नेहा को भरपूर निगाहों से देखा था। “यहां कितना सुकून है! कितनी शांति है! देखो न कितनी फ्रैश हवा है ओर वो बंबई में मचा बाएबेला ..?”

नेहा को स्थिति को समझने में देर न लगी थी। वह ताड़ गई थी कि कासिम बेग ने उसे अपने जाल में फंसा लिया था। वह जान गई थी कि अब कोरा मंडी बननी नहीं थी। अब देखना ये था कि कासिम बेग आखिर चाहता क्या था?

“ये किला है जो अजमत के नाम पर बना है!” कासिम बेग नेहा को बताने लग रहा था। “और आगे जो आएगा .. वो ..”

“आगे क्या आएगा?” नेहा भी इसी ऊहापोह में लगी थी। उसे अनुमान था कि जो आगे आने वाला था – वो अशुभ ही था। “ये शहर में बाएबेला क्या मचा है?” नेहा ने अचानक प्रश्न पूछा था।

“पूछिए मत बेगम साहिबा!” टैक्सी ड्राइवर बोल पड़ा था। “खूब उपद्रव मजा है। जोर शोर से बलवा हो रहा है। हिन्दू मुसलमान भिड़े हैं। अल्लाह खैर करे ..”

“लगता नहीं अब अल्लाह खैर करेगा!” सोच कर नेहा ने लंबी उच्छवास छोड़ी थी। खुड़ैल ने संग्राम जीत लिया था नेहा मान बैठी थी।

“अब नवाब साहब आ गए हैं – तो शायद कोई धीर-धोप हो जाए!” टैक्सी ड्राइवर ने मुड़ कर कासिम बेग को देखा था।

कासिम बेग का दिमाग हवा में उड़ रहा था।

“पहुंचे कि नहीं?” फोन पर किसी ने पूछा था।

“हां हां पहुंच रहा हूँ!” कासिम बेग ने उत्तर दिया था।

“लखनऊ से बड़ा प्रेशर आ रहा है।” वह आदमी बता रहा था। “क्या करें?” उसका प्रश्न था। “सी एम का मूड ..”

“फिकर नहीं!” कासिम बेग ने दबी दबी जबान में कहा था। “हमें तो इस बार आर पार करना है।” कासिम बेग ने अपना इरादा व्यक्त किया था। “तैयारी तो पूरी है न?” उसने पूछा था।

“जी हां! उसकी आप फिकर मत करना। आजमगढ़ से लेकर लखनऊ तक .. हम ..”

“गुड!” कहकर कासिम बेग ने फोन काट दिया था।

रावण सीता को हर लाया था – नेहा स्वयं को समझा रही थी। अब वो सीता के सतीत्व को डिगाएगा और उसे यातनाएं देकर ..

“तो क्या कोई हनुमान आएगा और लंका को जलाएगा?” नेहा ने स्वयं से ही प्रश्न पूछा था।

नेहा के दिल दिमाग में सब कुछ धू धू कर जलने लगा था।

मेजर कृपाल वर्मा

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