“अगर ऐसे ही पहेली बुझाता रहा तो मुझसे खूब सुनेगा!” मैंने अपना निर्णय दे दिया है।
“एक बार और हो जाए?” श्याम ने मेरी आंखों में पुन: विश्वास खोजा है।
“हो जाए!” अबकी बार मैंने पूर्ण रूपेण श्याम को अपनी बाँहों में कस लिया है।
मेरा कद समय के साथ छट गया है और श्याम तनिक ठिगना रह गया है। पर श्याम का बदन अब पक गया है जबकि मुझमें अभी भी तनिक सी सुकुमारता बची है।
“यहां तो चपरासी की नौकरी करता होगा?” मैंने पूछा है।
“अबे मान गए बेटा तुझे कैसे पता चला ..?”
“आजकल चपरासी की नौकरी हिन्दुस्तान में सबसे बड़ी गवरमेंट सर्विस है।”
“वाह वाह क्या भाषण दिया है। पुरानी आदत अभी भी नहीं छोड़ी?”
“नहीं।” मैंने गंभीर होकर श्याम के उथले पन में कुछ खोजना चाहा है। शायद वह मुझे कुछ भी साफ साफ बताना नहीं चाहता।
“अरे हां! तू आया है और मैं तेरी खातिर नहीं कर रहा हूँ। बोल बोल क्या ..?”
“चुप बे!” मैंने श्याम को डांटा है।
“लेकिन क्यों?”
“क्यों कि तू पलट गया है!” मैंने नाराज होकर कहा है।
“ये मेरा नहीं जमाने का कसूर है!” श्याम ने गिड़गिड़ाती आवाज में कहा है।
“गलत! सरासर झूठ! अपनी कमजोरी छुपा रहे हो!” मैं और भी कड़क कर बोला हूँ।
श्याम चुप है। श्याम एकदम मेरे सामने नंगा खड़ा हो गया है। शायद उसकी मदद के लिए उसके बहाने या कमजोरियां भी पर्याप्त नहीं जो उसका उघड़ा बदन ढांप दें। मैं उसे ज्यादा जलील नहीं करना चाहता। मैं उसे वापस उस खाई में कैसे धकेल दूं जिसके किनारे पर आकर अनायास उचक कर उसने मेरी उंगली पकड़ ली है। शायद इस सहारे की कलपना वो तभी से करता रहा होगा जब से अचानक हम बिछड़ गए थे।
“अच्छा चल! अपना धंधा बखान कर। बाय गॉड श्याम तूने मामला जमा दिया है।”
मैंने उसकी प्रशंसा की है ताकि वो मेरे और अपने बीच एक पर्दा न डाल दे। मैं स्वाभाविक तौर पर हंस रहा हूँ। श्याम ने भी एक नया विश्वास मुझमें पा लिया है। सहमी सी भावना उसके चेहरे पर से हट गई लगी है।
“संक्षेप में – अपना धंधा काला धंधा है!” श्याम ने निःसंकोच कह दिया है।
“यानी की नम्बर दो का धंधा है?”
“नहीं! नम्बर पांच का धंधा है। यानी – एक्सटॉरशन!”
“वाह बेटा! तूने तो यहां भी पार कर दिया?”
“बस! आदत जो है!” श्याम खुश है। मैं भी उसकी तारीफ करता चला जा रहा हूँ।
“अच्छा! थोड़ा विस्तार रहित व्याख्या हो जाए?” मैंने अपनी पुरानी बात दोहराई है।
हम दोनों खूब हंसे हैं। कॉलेज में श्याम खाली समय में पूरी क्लास को आने वाले प्राध्यापक की विस्तार सहित व्याख्या सुनाया करता था। उदाहरण के तौर पर – रेल गाड़ी का इंजन जैसा रंजन अभी धड़ाधड़ चला आ रहा है! जिसे चढ़ना हो दौड़ कर सवार हो लेना – वह रुकेगा नहीं। पूरे चालीस मिनट धूंए और कोयले की बजाए थूक और झाग फेंकता रहेगा ..
विशेष गुण – ब्लैक बोर्ड साफ करने के लिए डस्टर का प्रयोग इन्हें नागवार गुजरता है!
हम दोनों काफी देर तक हंसते रहे हैं।
“यार वो ही दिन थे! अच्छा बता अब कहां होगा वो रेल गाड़ी का इंजन?”
“सुनते हैं – बेचारा मर गया!” मैंने एक दुख भरी खबर देकर श्याम को चुप कर दिया है। श्याम का चेहरा एक बेधक वेदना से जूझ कर मलिन भावों को सटक जाना चाहता है।
“आदमी बहुत अच्छा था।” श्याम ने कठिनाई के साथ उगला है।
मैं अपने इस मरहूम प्राध्यापक का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने लगा हूँ। श्याम ने अभी अभी जो उगला है – कितना सच और सार गर्भित है। जब भी ये गुरु हम लोगों से तंग आ जाते तो एक छोटा सा व्याख्यान देते – तुम लोग अपना भविष्य बिगाड़ रहे हो। आगे आने वाला समय इतना सुखद नहीं जितना तुम लोग सोच रहे हो। जब जिंदगी से जूझना पड़ेगा तो पता चलेगा कि गुरु सच कहते थे।
पर इतनी सी उनकी बात भी कभी समझ न लगी थी। समय क्यों बदलेगा तब इसको सिद्ध करने के हेतु तर्क ही न थे। और अब तर्क हैं तो समय बदल गया है। मैं और श्याम दोनों बदले बदले आमने-सामने खड़े हैं। अब श्याम नहीं कहना चाहेगा – गुरु जी आज का विषय समाज सुधार नहीं।
उस समय ये समाज सुधार की समस्या और जीने के अर्थ सभी भ्रामक लगते थे। लेकिन आज जब श्याम को देख रहा हूँ तो एक धुंधलका सा छट गया है। एक सच्चाई आ कर हम दोनों के सामने खड़ी हो गई है।
“छोड़ बे! जो गया सो गया।” श्याम ने दार्शनिक ढंग में बात हलकी कर दी है। मैं भी किसी लंबी दूरी को तय करके लौट आया हूँ। गुरु जी की दिवंगत आत्मा के पीछे कहां तक जाता और क्यों जाता? मैं तो अब भी साफ साफ नहीं बता सकता कि आजकल हर कोई बात के नए आयाम ग्रहण करके मेरे सामने क्यों छाने लगता है? अब तक तो मुझे भ्रम था कि मैं सब कुछ समझता हूँ। लेकिन अब लगता है मैं कुछ नहीं जानता और न जाने क्यों मैं परिवर्तित होता जा रहा हूँ – लगातार!
“चल! आने का मनोरथ तो पूरा कर ले!” श्याम ने हंस कर कहा है।
“अच्छा बोल! क्या खिलाएगा पिलाएगा?” मैंने लखनवी अंदाज में पूछा है। लगा है फिर से हम कॉलेज के बाहर खौमचा लगी धकेलों के गिर्द घूम रहे हैं। जबान मसाले और मिर्ची की मात्र कल्पना से चटकारे लेने को दौड़ पड़ी है।
“पीने के लिए भी है ओर खाने के लिए भी!” श्याम ने मुझे समझाने का प्रयत्न किया है।
“पीऊंगा भी और खाऊंगा भी।” मैंने बेबाक मांग कर दी है।
श्याम हंस पड़ा है। उसकी अट्टहास की हंसी सुनकर मैं सहम गया हूँ। जरूर मैंने कोई बेतुकी बात कह दी है जिस पर श्याम जोरों से हंसा है। तनिक अपने पर खीज कर मैं उठा आक्रोश पी जाता हूँ और लपक कर श्याम के मुंह पर झापड़ लगाने से बच जाता हूँ।
“इसमें हंसने की क्या बात है?” मैंने संयत स्वर में श्याम से सफाई देने की मांग की है।
श्याम फिर से हंसा है। मैं अपने पर पूर्ण संयम रख कर बोला हूँ – अच्छा बता यार ये ट्रिप – वो जो पूछ रही थी क्या है? मैंने इस के साथ ही जूली को निगाहों में भर कर देखा है। जूली ने एक इंटरनेशनल स्माइल मुझे दे दी है। उसकी मद भरी आंखों की चमक मुझे चौंका गई है।
“लगता है बेटा पहली बार पधारे हो?”
“क्यों बे?”
“तभी तो बहकी बहकी बात कर रहे हो। अच्छा चलो कॉफी पीते हैं।” अब श्याम मुझे यहां से कही और घसीट ले जाना चाहता है।
“यहीं मंगा ले न! मन रम गया है उसमें!” मैंने जूली की ओर इशारा किया है।
श्याम खुश नहीं हुआ है। जूली के बारे में भी कुछ नहीं बोला है। गंभीर स्वर में उसने फिर कहा है – चल दलीप! अकेले में बैठ कर बातें करेंगे!
“सबसे पहले वो ट्रिप वाली बात साफ कर!”
“अबे वो सब बकवास है! चल! चल ना?” श्याम न जाने क्यों घबरा रहा है।
“नहीं बताएगा?”
“बाद में! सब साफ कर दूंगा!”
“बिना ट्रिप के बंदा नहीं जा रहा है, बड़े भाई!” मैंने भी अब अपने पैर जमा लिए हैं।
“तू साले पागल है! जितना बुद्धू पहले था, उतना ही अब है। अबे ये – नशा-पत्ता है और नशेड़ियों के लिए है! बस! अब चल अंदर ..”
“नहीं जाता!”
मेजर कृपाल वर्मा