“शराब पी रहे हैं जनाब?” सपना ने शेरनी की तरह गुर्रा कर सौरभ को कान से पकड़ कर अधर-सा उठा लिया था| “तड़ाक-तड़ाक !” उसने सौरभ के गालों पर तमाचे बरसाए थे| “बाप ने पूरी बम्बई में झंडे गाढ़ दिए हैं .. अब बेटा जुलुस लेकर निकलेंगे !” सपना ने तीखी जहर की भुनी जुबान में शब्द उगले थे |
अजीब तूफानी रात थी वह | समीर ने शराब पी-पी कर स्वयं को संज्ञाहीन बनाने का भरसक प्रयास किया | ज्यों-ज्यों वो पिता गया त्यों-त्यों सौरभ के करुण और करहाते शब्द दमदार बनते गए | वह महसूस रहा था की सपना सोई नहीं है | बेडरूम का बंद दरवाजा मात्र उसके लिए खड़ा किया अवरोध है | वह एक छूत का रोग जैसा है जिसकी परछाई अब सपना अपने बच्चों पर नहीं पड़ने देगी ||
लेखक परिचय
आज के प्रगतिवादक लेखक में अलग से उभरे एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर ! मेजर कृपाल वर्मा की हर रचना में समाज के लिए एक सन्देश होता है | मजे हुए चरित्रों को कल्पनात्मक ढंग से प्रस्तुत करना – इन की लेखनी का चमत्कार कहा जा सकता है | रचनाओं की सरस भाषा, कलात्मक शैली और प्रवाहमान कथानक आप को बिना साथ लिए नहीं बहता |
इन की रचनाएँ प्रासंगिक हैं और कुल मिला कर एक श्रेष्ट साहित्य का संगम जैसा सामने आता है जो आप को अपने भीतर समां लेता है .. स्वस्थ बनता है .. प्रेरित करता है और आप के सुने पड़े मन प्राण को .. आशाओं से आलोकित कर देता है |
मेजर कृपाल वर्मा धर्मयुग .. कादम्बिनी .. साप्ताहिक हिन्दुस्तान .. तथा देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे हैं | अब तक इन की अठाराह रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं |