यह कहानी है दंगा पीड़ित यतीम फरजाना की और उसके पालक पिता करतार सिंह की.
एक मुस्लिम और दूसरा हिन्दू के बीच पनपते बाप और बेटी के रिश्ते की. समाज के कुछ लोग इसे सराहते और कुछ लोग इन्हें दुत्कारते पर इनका आपस का रिश्ता दिन-ब-दिन निखरता चला गया.
तभी तो मासूम फरजाना को दुआ करते देख करतार ये कहते –
माहे रमजान में जब तेरे हाथ दुआओं के लिए ऊपर उठता होगा खुद को तेरे करीब लाने यह आसमान कुछ ना कुछ तो झुकता होगा.