Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

सहायक कानू

kaanu ka shringar

बचपन एक ऐसी चीज़ होता है.. जो इंसान कभी नहीं भुला पाता। बचपन की वो खट्टी-मीठी यादें.. यादों में हमेशा के लिये अमर होकर रह जातीं हैं। हमें भी हमारा अनमोल बचपन अक्सर याद आता है.. और फ़िर बहुत देर के लिये हम अपनी मीठी यादों में खो-कर रह जातें हैं।

बचपन भी कभी-कभी ही हमसे टकराता है.. वरना हमें अपने घर के कामों से फुरसत ही कहाँ है। और अब तो हमारी प्यारी कानू हमारे साथ है.. तो अब तो ख़ाली बैठने का सवाल ही कहाँ है। पूरा एक साल हो आया था.. हम प्यारी कानू में इतना खो गए थे.. कि हमनें अपने घर को हाथ ही नहीं लगाया था..  पर आज हमनें अपने घर की सफ़ाई करने के बारे में सोचा.. तो हमें हमारा बचपन हमारी आँखों के आगे फ़िर से घूम गया.. जब हम माँ-पिताजी और अपने भाइयों के संग घर की सफ़ाई करवाया करते थे।

खैर! हमारा बचपन तो एक तरफ़ रहा.. पर आज हम किसी और के बचपन को संग लेकर अपना काम कर रहे थे। वो थी.. हमारी गुड़िया.. कानू। बच्चे तो स्कूल चले गये थे.. और उनके आने से पहले ही हमें काम ख़त्म करना था।

बच्चों के स्कूल जाते ही और पतिदेव के घर से निकलते ही हमनें अपना काम जल्दी-जल्दी शुरू कर दिया था.. कानू हमें सुबह से ही देख रही थी.. कि माँ आज किस काम की जल्दी में हैं।

हमारी कानू अपनी फ्लॉवर जैसी पूँछ हिलाते हुए.. हमारे ही पीछे घूमती रही थी… हमनें लाख बार कानू को प्यार से समझाया भी था,” देखो काना, आप कितनी तुन्दर हो और प्यारी सी बन्दर भी हो। दूर रहो नहीं तो धूल-मिट्टी में गन्दी हो जाओगी!”

लेकिन हमारी गोरी सी प्यारी कानू ने हमारी एक भी न सुनी थी। हम सफ़ाई करते चल रहे थे.. और क़ानू के ऊपर धूल और थोड़े बहुत जाले गिर रहे थे.. कानू को देखकर ऐसा लग रहा था.. मानो किसी का नया सा स्टफ टॉय गन्दा हो रहा हो। पर क़ानू भी तो कम न है.. हमारी मदद करने की जिद्द जो पकड़े बैठी थी। क़ानू हमारी बहुत ही हेल्पिंग नेचर की है..  माँ को अकेला काम करता देखकर कानू से रहा न गया.. और हमारी गुड़िया हमारे संग ही धूल-मिट्टी में हो चली थी।

सफ़ाई के काम के दौरान पूरे वक्त हमारी कानू ने हमारे साथ कोआपरेट किया था। कानू ने हमसे एकबार भी ये न कहा था,” माँ! हमें भूख लग रही है.. बिना कुछ खाये-पिये ही हमारा काना हमारी मदद करता रहा था। काम ख़त्म होते ही हमनें कानू को जल्दी-जल्दी नहलाया था.. दीदी-भइया जो आने वाले थे.. कानू के.. और हमें खाना भी पकाना था।

कानू भी घर की सफ़ाई के बाद नहा-धोकर वापिस वैसी ही डॉल बन गई थी.. और हमारा घर भी चमक उठा था।

यूँहीं कानू की मदद और कानू की प्यार भरी अदाओं से घर चमकाते एक बार फ़िर हम सब चल पड़े थे.. नन्ही और प्यारी कानू के साथ।

Exit mobile version