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रोशनी – कहानी

Roshni kahani

रोशनी का कत्ल हो गया है। लगा है मेरे दिमाग की जैसे बत्ती गुल हो गई हो।

अंधकार है। काली अंधेरी रात है। अब सूरज कभी न निकलेगा शायद। अब ये अंधकार हमेशा हमेशा मेरे जीवन में छाया रहेगा। कारण – मैं तो सब कुछ रोशनी के क्रिया-कलाप देख देख कर जीती रही हूँ, मरती रही हूँ, खुश होती रही हूँ और अपने गमों को पोसती रही हूँ।

“यू आर ए डम डॉल मानुषी!” मैं रोशनी का ये संवाद आज तक नहीं भूली हूँ। “तू सब कुछ चुपचाप सह लेती है। बोलती ही नहीं। अरे बाबा यू आर ऑलसो ए लिविंग बीईंग! बोलो। खुल कर बोलो! मत सहो अत्याचार। मत ..” कहती ही चली जाती थी रोशनी।

रोशनी धूप थी। रोशनी एक राह थी। रोशनी एक उदाहरण थी। रोशनी नए युग की नई देन थी। एक कोमल, कठोर और कमनीय कोपल सी रोशनी मेरा तो मन प्राण ही थी।

अखबारों में रोशनी की चर्चा है। न्यूज चैनल्स भी न जाने क्या क्या बता रहे हैं – रोशनी के बारे। न जाने कितने ओपीनियन बन चुके हैं रोशनी की नई पुरानी जिंदगी के बारे। कितने लोग हैं जो रोशनी को एक रिवॉल्यूशन का नाम दे रहे हैं और कितने ही दार्शनिक हैं जो रोशनी को एक अनबूझ पहेली बता रहे हैं।

“मेरा लव हो गया है – मानुषी!” रोशनी ने मुझे बताया था। “सच रे! कैसा बांका वीर है .. मैं बयान नहीं कर सकती!”

“क्या तू मिली है उससे?” मैंने सकपकाते हुए पूछा था।

“हां हां! यार! आमने सामने थे हम दोनों!”

“फिर ..?” मैं न जाने कैसी अजीब उमंगों से भर आई थी।

“फिर ..?” रोशनी ने आंखें नचाई थीं। प्रसन्न थी वो। दाईं टांग को बाईं टांग पर चढ़ा कर वो मेरी ओर झुक आई थी। आवाज धीमी थी – बिलकुल धीमी। “फिर .. फिर .. वह बोला था – यू आर लुकिंग गॉरजियस – रोशनी!”

ओह गॉड मैं भी न जाने क्यों तरंगायित हो आई थी। मेरे भीतर भी प्रेम प्रीत का सागर हिलोरें लेने लगा था। मैं भी रोशनी के प्रेमी के आकार प्रकार जानने को उत्सुक हो आई थी।

“क्या नाम है – उसका ..?”

“मुकुंद!” रोशनी ने मुकुंद नाम का कुछ इस तरह उच्चारण किया था मानो वही एक नाम था सारे संसार में जो सर्व श्रेष्ठ था।

“तू क्या बोली?” मेरा अगला प्रश्न था।

“बोली कहां थी मैं – पागल!” रोशनी ने संभलते हुए कहा था। “बड़े ही पेचीदा मामले होते हैं – लव अफेयर के!” रोशनी ने मुझे समझाया था। “मैं तो शर्मा गई थी। मेरा चेहरा आरक्त हो आया था और उस लज्जा के परिधान में मैंने अपने आकुल व्याकुल मन के उद्गार मुकुंद तक पहुंचाए थे – चतुराई से – सावधानी से और ..”

मैं तो हैरान थी। रोशनी कितनी चतुर थी। रोशनी लव अफेयर को एक शास्त्र मान कर उसका अध्ययन कर बैठी थी। गजब की अभिनेत्री थी रोशनी। कब हंसना था, कब मंद मंद मुसकुराना था और कब चुप रहना था – उसे तो सब आता था।

अब अपने एकांत में मैंने अपने आप को खूब लताड़ा था। मैंने माना था कि मैं एक डम डॉल ही थी। मैं रोशनी की तरह किसी मुकुंद को नहीं खोज सकती थी। और न ही मैं कोई अभिनय करने में प्रवीण थी। लेकिन क्यों ..?

मैंने इस सब का दोष अपने परिवेश के सर पर मढ़ दिया था।

कहां थी मुझे आजादी जो मैं किसी मुकुंद से मिल आती? मेरे ऊपर तो जैसे तीन आंखों के जोड़े हर पल पहरा देते रहते थे। बाबा थे – जिन की हर सांस में मैं – मानसी किसी सुगंध की तरह बसी थी। मां को तो मेरे हर पल का हिसाब रखना जैसे अनिवार्य था। और एक था मेरा दुर्दांत भाई समीर! निरा हिटलर था। मजाल है कि मैं किसी गलत राह पर मुड़ जाऊं! उसकी निगाहें बहुत लंबा देख लेती थीं और फिर वह मुझसे सीधा प्रश्न पूछ लेता था।

“कहां गई थी?”

“क्यों! मैं कहीं जा नहीं सकती?”

“नहीं! बिना बताए नहीं! मुझे पता होना चाहिए मनु कि तुम ..”

क्या करती इस समीर का! मान न मान मैं तेरा मेहमान! जिंदगी मेरी थी और पहरा वो देता था।

“मैं अपनी जिंदगी को अपने हाथ में लेकर चलती हूँ मानसी!” रोशनी की आवाजें आतीं तो मैं अपनी दीनता पर फूट फूट कर रो देना चाहती थी। “मेरी जिंदगी मेरी है। मैं इसे बनाऊंगी, मैं इसे बिगाड़ुंगी – किसी को क्या?” रोशनी की आवाज में एक दहाड़ होती थी – एक स्वतंत्र जीवन जीने वाली नारी की दहाड़!

और मैं ..? समीर – अपने भाई के सामने तक न बोल पाती थी।

“मुकुंद मेरा है मानसी! मैंने मान लिया है कि मैं मुकुंद के साथ ही जीऊंगी और उसी के साथ मरूंगी भी!” रह रह कर मुझे रोशनी का कहा संवाद याद आ रहा है। रोशनी मर गई – नहीं नहीं उसे तो कत्ल कर दिया गया! मुकुंद ने कहते हैं कि रोशनी को ..

अब राम जाने क्या हुआ!

“समीर का बार बार फोन आ रहा है मनु!” मां बता रही हैं। “कह रहा है – इसे भेजो अपने घर! ये यहां क्यों पड़ी है?”

“क्या ये मेरा घर नहीं है?” मैंने मां से प्रश्न पूछा है।

“नहीं बेटा!” बड़े धीरज के साथ मां बोली हैं। “तुम्हारा घर बार तो अनिरुद्ध का घर बार है। तुम्हारे दो बच्चे – अनु और मनु ही तुम्हारा सर्वस्व हैं! औरत की गति बिना पति पुरुष के होती कहां हैं?” मां के उपदेश आते गए हैं।

न जाने क्यों और कैसे आज रोशनी नहीं मेरे दिमाग में एक नया प्रकाश पैदा हुआ है!

मेरी शादी हो रही थी। लेकिन मैंने अपने होने वाले पति पुरुष के दर्शन भी न किए थे। मेरा मुकुंद कैसा था – मैं तो जानती ही नहीं थी।

“अनिरुद्ध बड़ा ही चूजी है!” मां ही बताने लगी थीं। “कहते हैं – पचपन लड़कियों के फोटो देखे थे और उनमें से तुझे चुना है!” मां का चेहरा उद्दीप्त था। एक गर्व था – अपनी बेटी के चुने जाने का गर्व जो उन पर सवार था। “भाई! बड़े लोग हैं। बड़े ही उनके काम हैं और बड़ा ही संस्कारी परिवार है, मनु!” मां सब कुछ बताती रही थीं।

पूरे सनातनी संस्कारों के साथ हमारी शादी हुई थी। और जब पंडित जी के कहने पर अनिरुद्ध ने मेरा अंगूठा छू दिया था तो मुझपर ऐसी ऐसी लाज शरम चढ़ी थी कि ..

“कन्या को वामांग लाइये!” पंडित जी के स्वर और कन्या का संबोधन मुझे अद्वितीय लगा था।

और हमारा मिलन भी एक सात्विक संबंध जैसा ही कुछ पवित्र और श्रेष्ठ था जिसे हम दोनों ने स्वीकार किया था! पहली करवा चौथ आई थी तो सासू मां ने मेरा श्रंगार किया था। अनिरुद्ध कई चक्कर लगा गए थे और जब हमारी निगाहें मिली थीं तो उन्होंने मूक व्यंजना में ही संवाद संप्रेशित किए थे! अनिरुद्ध बहुत कम बोलते थे।

और तब .. हां हां तब मुझे रोशनी का मुकुंद याद हो आया था – अचानक!

रोशनी मुझसे मिलने आई थी। अनिरुद्ध और उनके घर बार के बारे जानकारी लेती रही थी। उसे रह रह कर मेरी जिंदगी और मुझ पर तरस आता रहा था।

“तू मानेगी नहीं मानसी कि इस साल का हमारा टर्नओवर करोड़ों में होगा!” रोशनी ने मुझे बताया था। “तू तो जानती है कि हमने कैसे गराज में ही कंपनी खोली थी और मुकुंद ने मेरी मदद की थी। और आज – वी आर ए नेम, ए ब्रांड एंड ए फ्यूचर!” रोशनी का चेहरा मिली सफलता के प्रकाश में गर्क था।

“शादी वादी ..?” मैंने धीमे से पूछा था।

“नहीं यार!” सर हिलाया था रोशनी ने। “प्रेगनेंसी थी – सो हमने टरमिनेट करा दी।” रोशनी ने बड़े ही निर्लज्ज भाव से बयान किया था।

“लेकिन क्यों?” मैं तो उछल पड़ी थी।

“झंझट हैं यार – बच्चे! अभी से लफड़ा नहीं पालेंगे हम!”

“और शादी ..?”

“किसी भी दिन – कोर्ट में जाएंगे और शादी कर लेंगे!” वह फिर हंसी थी। “तुम्हारी तरह थोड़े हैं हम!” उसने मुझे उलाहना दिया था। “वी आर फ्री बर्ड्स! वी लिव, वी फाइट, वी फ्रेट एंड वी यूनाइट एवरी नाइट!” जोरों से हंसी थी रोशनी। “वी आर ईक्वल्स! अगर मुकुंद मारता है तो मैं भी उसे पीट देती हूँ!”

“क्या ..?” मैं हैरान थी।

“मानसी! तुम मानोगी तो नहीं पर इस तरह जीने का मजा ही और है! तुम्हारी जिंदगी तो सास बहू की वही गई बीती कहानी है। और मैं आज रोशनी इंटरप्राइज की अकेली मालकिन हूँ! मैं चाहूँ तो ..” रोशनी ने कई पलों तक मुझे घूरा था।

“प्रेगनेंसी थी सो टरमिनेट करा दी!” रोशनी के जाने के बाद उसका कहा ये संवाद मुझे बार बार सताने लगा था। मैं भी तो गर्भवती थी। और अनिरुद्ध, सासू मां और सारे परिवार ने इसे एक पर्व की तरह मनाया था। किसी को भी बच्चे आने की आहट झंझट न लगी थी। इसे सभी ने एक शुभ संदेश माना था लेकिन ..

रोशनी आज मुझे लहूलुहान करके ही लौटी थी।

रोशनी मेरे लिए एक राह जैसी थी और मैं थी कोई भटक गई आत्मा जिसे अपना तो कोई ज्ञान ही न था – कोई मान ही न था! मैं – मैं न थी। मैं थी – मेरी मां, बाबू जी, सासू मां, अनिरुद्ध और अब आने वाला एक नया आगंतुक! मैं इन सब का अकेला एक केंद्र बिंदू थी – और कुछ नहीं! जबकि रोशनी एक रिवॉल्यूशन का ही नाम था!

रोशनी फैलती ही चली गई थी और मैं सिमट कर अपने घर आंगन में ही बैठी रही थी!

दोनों बच्चे बड़े हो रहे थे। अनिरुद्ध अपने काम में नाक तक डूबे थे। बाबू जी बूढ़े हो गए थे। मां भी कहां ठीक रहती थीं! और मैं? अब मुझे बार बार एक धुन सताने लगी थी। मैं क्या बनूंगी – मैं बार बार स्वयं से पूछने लगी थी। क्यों न मैं भी रोशनी की तरह किसी गराज से कोई इंटरप्राइज आरंभ करूं और बढ़ निकलूं प्रगति के पथ पर? रोशनी तो कभी मेरे पैरों का धोबन तक न थी! मैं – इतनी इंटैलीजेंट, स्मार्ट, सुंदर और होनहार थी कि ..

“बाबू जी की तबियत ठीक नहीं है!” मैंने अनिरुद्ध से झूठ बोला था। “कहते हो तो ..?”

“हां हां! चली जाओ!” अनिरुद्ध ने सहर्ष हामी भर ली थी। “चाहो तो अनु मनु को भी लेती जाओ। मिल आएंगे नाना नानी से!”

लेकिन गजब ये देखो कि अनु मनु मेरे साथ ननिहाल जाने से साफ नाट गए थे।

अचानक ही एक मनोहारी दृश्य मेरी आंखों के सामने घूम गया था! अनु मनु जैसे ही अनिरुद्ध घर लौटते उनपर सवार हो जाते और फिर जो हुड़दंग घर में मचता तो पूछो मत! दोनों की रैटपैट सासू मां के साथ भी थी और दोनों ही दादू की आंखों के तारे थे। दोनों की खूब डिमांड थी और उन दोनों के बचपन के ग्राहकों की कमी न थी। फिर वो मेरे साथ आते क्यों?

पहली बार मैं मायके अकेली लौटी थी।

“अकेली चली आई?” मां ने आते ही पूछा था। “अरे उन दोनों को क्यों नहीं लाई?” बाबू जी भी मुझे उलाहना दे रहे थे।

लेकिन मैं कैसे बताती कि मैं किसके साथ आज मायके आई थी।

मेरा मन तो था कि आते ही किसी गराज की खोज में जुट जाऊं! किसी इंटरप्राइज का नाम खोज लूं। एक अभियान को तुरंत आरंभ कर दूं। अपनी अस्मिता को झंडों पर टांग कर एक ऐलान कर दूं कि मैं .. कि मैं – आई एम नॉट ए फेलियोर! मैं अपने आप को तुरंत साबित कर देना चाहती थी ..

और तभी रोशनी की हुई निर्मम हत्या का समाचार आसमान पर चढ़ कर बोला था। पूरा देश, समाज और कायनात हिल डुल गए थे! मुकुंद अब कोई महा मानव न था – एक दानव था जिसने रोशनी को ..

बेहद अनैतिक सा, घिनौना सा और बेस्वाद सीरा सड़कोंं पर बहता चला जा रहा था! लव .. लव लाइफ .. साहचर्य प्रेम .. कोर्ट मैरिज, बच्चे – एक झंझट और बिना शादी किए रिलेशनशिप? रोशनी का अंत अब अनंत था।

“यू आर ए डोप मनु!” रोशनी आदतन कह रही थी। “लैट देयर बी ए फाइट! सो वॉट इफ यू फाइट! हमें तो लड़ना ही होगा मनु। इस पुरुष प्रधान समाज में स्थान बनाने के लिए नारी लड़ेगी नहीं तो क्या करेगी?”

“क्या बात है! आना नहीं है?” अनिरुद्ध का फोन है।

“हां हां आना है!”

“टिकिट बुक करा देता हूँ – मंडे की! यार तुम्हारे बिना सब चौपट हो गया है!” अनिरुद्ध ने शिकायत की है।

न न! मैं अब एक पल भी न रुकूंगी। अब मुझे किसी गराज की गरज नहीं है। अब मुझे लौटना है। अपने स्वर्ग में पहुंचना है – जहां मेरा इंतजार है! मेरा मान सम्मान तो मेरे आस पास ही है। मैं – मेरे अपनों के बीच कितनी सुरक्षित हूँ! मुझे कोई मुकुंद ..

“मैं छोड़ता हूँ फ्लाइट पर!” समीर मेरे साथ है। “आप रहने दो बाबू जी। आप थक जाते हैं। मां आप भी आराम करो!” उसने आदेश दिए हैं।

अपने इस समर्थ भाई पर मैं आज न जाने कितनी बार बलिहारी गई हूँ।

“वैलकम होम!” मेरा आगत स्वागत अनिरुद्ध और अनु मनु ने किया है।

दोनों बच्चे लिपट गए हैं मुझसे। अनिरुद्ध ने मुझे उन्हीं निगाहों से सींचा है – सराहा है जो मुझपर हमेशा निसार रहती हैं। और घर आते ही मेरी सासू मां में मुझे एक नई उमंग के दर्शन हुए हैं!

और रोशनी की दिखाई राह अचानक ही अंधकार में गरूब हो जाती है!

मेजर कृपाल वर्मा

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