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रजिया भाग 39

रज़िया, Razia

“तुम दोनों को समर कोट वापस जाना होगा!” सोफी ने बतासो और कालिया को सूचना दी थी। “तुम वहां का सब कुछ जानते हो। जालिम और तरन्नुम बेगम भी तुम्हें जानते हैं। इस लिए तुम दोनों को चुना है।” सोफी का स्वर सहज था।

लगा था तड़तड़ा कर बिजली उन दोनों के सरों पर गिरी थी। उन दोनों के चेहरे पीले पड़ गए थे। दोनों की सांसें बंद हो गई थीं। दोनों के शरीर निष्प्राण थे। जुबानों पर ताला पड़ गया था। और उनके गात कांपने लगे थे। मात्र समर कोट जाने की सूचना ने उन्हें बेदम बना दिया था।

सोफी ने बड़े गौर से उन दोनों की प्रतिक्रिया को पढ़ा था। वह जानती थी कि बतासो और कालिया समर कोट का नाम सुनते ही बेहोश हो जाएंगे। लेकिन यह पहली सूचना उन तक पहुंचना भी जरूरी था। उनकी ट्रेनिंग का यह पहला कदम था।

“उस नरक में हमें वापस क्यों भेजते हो सोफिया सा?” बतासो बोली थी। उसकी आंखें नम थीं। होंठ कांप रहे थे। आवाज लरज-लरज आई थी। “वो .. वो हमें बोटी-बोटी में काट कर कुत्तों को खिला देंगे।” बतासो रोने लगी थी।

कालिया को भी होश लौटा था। उसकी आंखों के सामने होते अपराधों का मंजर उठ बैठा था। वह स्वयं भी कभी उन करुण कांडों का कारण रहा था। अब वही सब घटेगा उनके साथ भी – कालिया यह जानता था।

“जीते जी क्यों मारते हो हमें सा?” कालिया ने मुंह खोला था। “जल्लाद है जालिम।” उसने लंबी आह छोड़ कर कहा था। “पता नहीं क्या करेगा ..?”

“तुम्हें सीने से लगा लेगा कालिया।” सोफी ने संयत आवाज में कहा था। “और तुम वहां अकेले नहीं होगे। हम सब कहीं न कहीं समर कोट में मौजूद होंगे।” सोफी बताती रही थी। “और फिर ..”

“मरने के बाद तो प्रलय है सा!” कालिया ने अपना अंत कह सुनाया था।

“हमें जिंदा क्यों मारते हो सा?” बतासो गिड़गिड़ा रही थी।

सोफी को बतासो और कालिया का डर समझ आ रहा था। वह पूरी तैयारी के साथ आई थी। उसने अब दूसरे पत्ते फेंके थे।

“जालिम को जीतने के बाद तुम दोनों शादी कर लेना और अपना घर द्वार अमेरिका में ही बसा लेना।” सोफी तनिक मुसकुराई थी। “सर रॉजर्स तुम दोनों को मुंह मांगा इनाम देंगे – उन्होंने कहा है।”

बतासो और कालिया ने एक साथ सोफी को नई निगाहों से देखा था।

“तुम तो बला के बहादुर हो कालिया।” सोफी ने विहंस कर कहा था। “तुम तो राठौर हो!” उसने याद दिलाया था। “और तुम बतासो ..?”

बतासो चुप थी। उसकी आंखों के आंसू सूख गए थे। उसे अचानक राजपुतानियों के जौहर और जोर जुलम से लड़ने के हौसले याद हो आए थे।

“कल से तुम दोनों की बरनी सर के नीचे ट्रेनिंग आरंभ होगी।” सोफी ने अगली सूचना दी थी। “पूरी सूझ बूझ के साथ वो तुम्हें समर कोट भेजेंगे।” सोफी तनिक हंसी थी। “जालिम से डर कर दुबक जाना और भाग जाना सही बात नहीं है ना।” सोफी कहने लगी थी। “बुराई को मिटा देना ही सबके हित में होता है। जालिम को खत्म करना पुण्य कमाने समान है कालिया।”

“लेकिन .. लेकिन .. सा .. हम ..?” बतासो कुछ पूछना चाहती थी।

“तुम अकेली नहीं हो इस जंग में। हम सब शामिल हैं। सर रॉजर्स भी तो लड़ रहे हैं।”

“पन हमें करना क्या होगा सा।” कालिया का प्रश्न आया था।

“ये सब बरनी सर समझाएंगे और तुम्हें ट्रेनिंग भी देंगे।” सोफी ने मुसकुराते हुए उन्हें समझाया था।

मैना की तरह चहकती बतासो और शेर की तरह गुर्राता कालिया फिर एक बार जालिम के पंजे से बाहर आ नई जंग के लिए तैयार थे। सोफी को प्रसन्नता हुई थी। उसने बड़ी ही सावधानी के साथ इन दोनों को आज अंततः अपनी टीम में शामिल कर लिया था।

सोफी के जाने के बाद बतासो और कालिया ने एक दूसरे को निरखा परखा था। बतासो खुश थी कि इस जंग के बाद कालिया उसे ब्याहेगा और वो अमेरिका में घर बना कर बसेंगे। लेकिन कालिया सोच रहा था कि वह भारत को कैसे भूल पाएगा?

“अमेरिका में नहीं हम दोनों नीमो की ढाणी में ही चल कर बसेंगे, बतासो।” कालिया ने धीमे से बतासो के कान में कहा था।

दिल्ली की गलियाें में घूमता लैरी पागल हाेने काे था।

दिल्ली आने से पहले लैरी प्रसन्न था कि वाे एक हिन्दू साम्राज्य काे दिल्ली जा कर देखेगा और देखेगा हिन्दुऒं के वेद पुराणाें काे, उनकी संस्कृति सभ्यता काे और उनकी वेश भाषा काे जिनके बारे वाे सुनता आया था और साेचता रहा था। राहुल के संपर्क में आने के बाद उसने एक देश भक्त भारत की परिकल्पना की थी। लेकिन यहां आकर ताे उसकी एक गुलाम भारत से ही भेंट हुई थी। वही गुलामी के खण्डहर थे, वही नाम निशान थे, वही भाषा थी और वही माहाैल था जिसके बरखिलाफ गांधी जी ने आंदाेलन चलाए थे।

“अमेरिका की आवश्यकता है भारत काे।” लैरी ने निष्कर्ष निकाला था। “लिबर्टी और फ्रीडम का अर्थ यहां किसी काे नहीं आता। पब्लिक काे अनपढ़ रक्खा हुआ है। गहरी साजिश देश के आर पार पहरा दे रही है। भ्रमित है जन मानस।” लैरी ने अफसाेस जाहिर किया था।

और दूसरा अफसाेस ये था उसे कि अमेरिकन ऐम्बेसी में जालिम के बारे किसी काे कुछ पता नहीं था। उनके पास न काेई क्लू था और न काेई दलाल था जाे जालिम के बारे कुछ जानता था। हां! एक हैदराबाद का आदमी था – गुलाम अली जाे अरब से आने वाले उन व्यापारियाें काे जानता था जाे औरताें की खारीद फराेख्त के सिलसिले में भारत आते थे।

“अब क्या उत्तर दूंगा सर राॅजर्स काे?” लैरी सदमे में था। “बड़ी उम्मीद के साथ उन्हाेंने मुझे भेजा है।” लैरी अपने आप काे समझा रहा था।

लैरी काे आज एहसास हुआ था कि वाे बड़े दिनाें से जासूसी के फील्ड में काम न कर रहा था और उसकी काबिलियत काे जंग लग चुकी थी।

“तुम लाेग यहां आ कर ऐश करते हाे।” लैरी ऐम्बेसी के अधिकारियाें से लड़ बैठा था। “तुम्हें पता तक नहीं कि अमेरिका इज इन ट्रबल। जालिम देश काे सटक जाना चाहता है और तुम लाेग यहां आ कर माैज मना रहे हाे?” लैरी गरज-गरज कर कहता रहा था।

ऐम्बेसी की हवा तनिक हिली थी। हलचल भी बढ़ी थी। जालिम के नाम और काम से तनिक गर्मी महसूस हुई थी। बंद फाइलें खुली थीं और ऐम्बेसी में तलाशी ली जा रही थी कि क्या वहां जालिम का काेई क्लू था? लेकिन सब कुछ गाेल माल मिला था।

“लाइब्रेरी में कुछ फाेटाेग्राफ्स हैं। आप पहचान लीजिए कि क्या उनमें काेई जालिम है?” लैरी के सामने प्रस्ताव आया था।

लेकिन लैरी ने जालिम काे देखा कहां था? उसका ताे अभी तक वाे लाेग स्कैच तक न बना पाए थे।

“कालिया।” अचानक लैरी काे याद आया था। वह प्रसन्नता से भर आया था। “लैट मी गैट कालिया सून।” उसने स्वयं से कहा था।

सर राॅजर्स से सीधी फाेन पर बात की थी लैरी ने। कालिया काे तुरंत भारत भेजने की मांग की थी। सर राॅजर्स ने भी कालिया काे एक पार्सल की तरह डिलिवर किया था। एक कालिया ही था जाे कुछ भी समझ न पाया था। जहाज से उड़ कर जाना उसके लिए ताे एक अचंभा ही था।

“पहचानाे कालिया इन में से जालिम का फाेटाे।” लैरी कालिया काे समझा रहा था। “तुम ने ताे उसे साक्षात देखा है।”

“देखा ही नहीं भुगता भी है साहब।” कालिया ने उत्तर दिया था।

लाइब्रेरी में बेशुमार फाेटाेग्राफ भरे थे। ये उन लाेगाें के फाेटाे थे जाे कहीं से या ताे संदिग्ध थे या फिर बड़े मशहूर लाेग थे। लेकिन कालिया ताे एक मात्र जालिम के फाेटाे की तलाश में ही था। उसे दूसरे दिन जा कर अचानक जालिम का फाेटाे हाथ लग गया था।

“ये .. ये .. ये रहा जालिम साहब।” कालिया उस फाेटाे काे ताने खड़ा रहा था।

और लैरी भी जालिम के फाेटाे काे देख दंग रह गया था।

“कितनी हिंसक आंखें हैं इस आदमी की।” लैरी बाेल बैठा था। “वाॅट ए मैन यार।” उसने आश्चर्य जाहिर किया था। “मिलियन डाॅलर का आदमी है।” उसने गर्दन झटकी थी।

“बहुत बेरहम है, सा।” कालिया ने भी कह दिया था। “मेरी ताे रूह कांप जाती है – इसे देखते ही।”

“लेकिन अब ये कांपेगा तुम्हें देखते ही कालिया।” लैरी मुसकुराया था। “अब नहीं बच पाएगा ये तुम्हारा जालिम।” लैरी ने घाेषणा की थी।

लैरी ने बड़े दिनाें के बाद एक माेर्चा फतह किया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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