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रजिया भाग 31

रज़िया, Razia

“मैं बादशाह बनना चाहता था!” फरजंद बता रहा था।

सोफी और राहुल फाइल पढ़ने के बाद अपने पहले मार्ग दर्शक से मुलाकात कर रहे थे। फरजंद ने स्वयं आत्मसमर्पण किया था। वह भाग कर आया था। उसने विद्रोह किया था। और अब उसे विध्वंस करना था।

“मेरा जन्म रेगिस्तान के पेट से हुआ।” फरजंद बताने लगा था।

सोफी और राहुल ने एक साथ फरजंद को देखा था।

वह एक बेहद बलिष्ठ व्यक्ति था। उसका बदन जैसे फौलाद का बना था – ऐसा लगता था। उसके नाक नक्श भगवान ने शायद फुरसत में बैठ कर बनाए थे। वह बहुत ही आकर्षक पुरुष था। उसकी मोटी-मोटी आंखों में जैसे सारा संसार ही समाया हुआ था, उसकी बोल चाल, चाल ढाल और हाव भाव से वह कोई होनहार व्यक्ति ही लगता था।

“मां के पेट से पैदा क्यों नहीं हुए?” सोफी ने प्रश्न दागा था।

“इसलिए कि मैंने अपनी मां को देखा ही नहीं।” फरजंद हंसा था। “सिर्फ अब्बा को ही देखा था।” उसने अपनी दृष्टि को उन दोनों पर केंद्रित किया था। “अब्बा ने ही बताया था कि मां मेरे जन्म के बाद ही अल्लाह को प्यारी हो गई थी।” वह रुका था। उसके बाद तो मैं अकेला ही रहा – बिलकुल अकेला!”

“समर कोट कैसे पहुंचे?” राहुल प्रश्न पूछता है।

“बताया न कि मैं बादशाह बनना चाहता था।” फरजंद तनिक हंसा था। “न जाने ये चाह कब और कैसे मेरी खोपड़ी में प्रवेश कर गई। पैदा तो मैं नंगा धड़ंगा ही हुआ था। अब्बा के पास भी ऊंटों और रेवड़ के अलावा कुछ नहीं था। दुनाला में हम एक कबीले जैसे छोटे से समूह में ही रहते थे। वह हमारा एक अलग-थलग बसा एक स्वर्ग था और रेगिस्तान के पेट में पलता एक स्वर्ग।” उसने उन दोनों को गौर से देखा था। “तुम्हारे जैसा संसार वह नहीं था। सिर्फ हथेली भर की जगह थी। उस रेत के विशाल विस्तार के बीच जहां पेड़ थे, छाया थी, पानी था और थे पंछी। दुनाला का अर्थ था – दो नाले वहां आ कर मिलते थे। कहीं से रेत के पेट के भीतर-भीतर बहते आते थे ये नाले और जोहड़ में आ कर समाप्त हो जाते थे। जोहड़ ही हमारी जान था। स्वच्छ जल से हमेशा ही लबालब भरा रहता और हम सब मनुष्य, जानवर और पंछी उसी के दम पर पलते थे।”

“समर कोट कैसे पहुंचे?” सोफी उसी प्रश्न को दोहराती है। “दुनाला नहीं हमें समर कोट के बारे में बताओ।” सोफी तनिक नाराज थी। “समर कोट तक का सफर .. दुनाला से?” सोफी ने शक जाहिर किया था।

“हां! असंभव ही लगता है।” फरजंद ने हामी भरी थी। “लेकिन मुझे दुनाला से उड़ा कर समर कोट तक ले जाने में मेरी बादशाह बनने की चाह ही जिम्मेदार है।” उसने दो टूक कहा था। “मैं हर कीमत पर बादशाह ही बनना चाहता था।”

“क्यों?” राहुल ने उसे बीच में फिर टोका था।

“न जाने क्यों मुझे सपने आते थे कि मैं बादशाह हूँ। मेरा एक साम्राज्य है। मैं उसका मालिक हूँ। मेरे सर पर मुकुट है ..”

“कहानी नहीं सच्चाई बयां करो फरजंद!” सोफी ने उसे घुडका था। “तुम्हारी कोई शिक्षा दीक्षा नहीं थी और कोई ठौर ठिकाना नहीं! फिर भी तुम?”

“मैं दुनाला के पेड़ों की छांव में पंछियों के साथ, ऊंटों और बकरियों के रेवड़ में रहा। आदमी तो वहां गिनती विनती के थे। लेकिन मेरा शरीर उस आबोहवा में स्वत: ही फौलादी होता चला गया था। मैं ऊंट पर चढता और रेगिस्तान के खुले में भागता, फिर भागता और भागता ही चला जाता! न जाने क्यों मुझे लौटने की सुध ही न रहती। मैं चाहता कि अपने साम्राज्य में पहुंचूं। वहां मेरे आने का इंतजार जरूर होगा!”

“फिर ..?” राहुल ने उसे टोका था। “पहुंचे अपने साम्राज्य में?”

“हां! एक बार यही तो हुआ कि मैं लौटा ही नहीं। दुनाला को भूल मैं दौड़ता रहा और चलता ही रहा। मैं और मेरा ऊंट – हम दो ही तो थे। भटक गए थे हम – मुझे लगा था। लेकिन मेरा ऊंट ..”

“ऊंट ..?”

“हां-हां! मेरा ऊंट एक निश्चित दिशा में चलता ही जा रहा था। मैंने भी उसे न रोका न टोका। और फिर एक आश्चर्य की तरह रेगिस्तान गायब होने लगा। नई जमीन, नई हवा, नए-नए पेड़ पौधे और नए-नए लोग दिखने लगे। मैं समझ गया कि ..”

“माने समर कोट पहुंच गए?” राहुल ने बात काटी थी।

“अभी तक सरहद पर थे हम। लेकिन दंग थे, भ्रमित थे, प्रसन्न थे और ..” हंसा था फरजंद। “सच मानिए जनाब मैं गदगद था। इस नए संसार में आ कर मैं एक नया जीवन पा गया था। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था जब मैंने हरा भरा ये संसार देखा, पहाड़ देखे, नदी देखी, तालाब और झरने देखे। पशु-पक्षी देखे, नई-नई आवाजें सुनीं, हवा को चखा और सूरज और चांद से बातें की।”

“और फिर ..?” सोफी ने उसे टोका था।

“फिर मैं और मेरा ऊंट छुपते छुपाते, जीते जागते उस संसार के भीतर और भीतर चलते ही गए और समर कोट पहुंच गए।”

“और फिर?” इस बार राहुल बोला था।

“फिर ..?” फरजंद फिर से मुसकुराया था। “फिर एक सुंदर तालाब में – उसके पारदर्शी पानी में मैंने एक परछाईं को पकड़ा। निर्वसन एक युवती नहा रही थी। मैं सांस साधे उसे देखता ही रहा।”

“ये तुम्हारी है फरजंद!” किसी ने मेरे कान में कहा था।

“कोई काम की बात करो फरजंद!” सोफी नाराज थी। “नो फिक्शन प्लीज!” उसने चेतावनी दी थी। “असलियत बयान करो।”

“वही तो कह रहा हूँ जनाबे आली!” फरजंद अपनी बात पर जमा था। “तालाब के पीछे ही तो महल था – समर कोट की राजकुमारी का महल!”

“फिर ..?” इस बार राहुल भी नाराज दिखा था।

“पकड़ा गया था मैं और मेरा ऊंट ..” हंसा था फरजंद। “पहली पेशी राजकुमारी के सामने हुई और बस ..!”

“आंख लड़ गई!” सोफी ने नाराजगी से पूछा था।

“हां सच में ही आंख लड़ गई! उसने मुझे पहली नजर में पसंद कर लिया और ब्याह भी कर लिया मुझसे! मैं अब शहंशाह था, बादशाह था, लेकिन था फिर भी गुलाम। जोरू का गुलाम कहो और ये मुझे कतई गवारा नहीं था।”

“झूठ बोल रहे हो फरजंद!” राहुल ने इस बार उसे झिड़का था।

“जनाब समर कोट चलिए तो क्या करूंगा कि ..”

“क्यों चलें हम समर कोट?” सोफी पूछती है।

“इसलिए कि समर कोट को खत्म न किया तो संसार – माने कि आपका ये संसार बचेगा नहीं। मलिका की मां ने समूची दुनिया को मिटा कर अपनी नई दुनिया बसानी है लेकिन मलिका मुझे चाहिए। हर कीमत पर मुझे मेरी मलिका चाहिए।”

“मिलेगी!” राहुल उसे आश्वासन देता है। “लेकिन फरजंद समर कोट में ऐसा क्या है जो संसार को तबाह कर डालेगा?”

“है क्या नहीं उनके पास?” फरजंद प्रतिप्रश्न करता है। “आप अपने ही संसार में तो मस्त हैं। मलिका की मां की औकात ही अलग है, जनाब। उसके पास सब है। बेहद ही जहीन लोग हैं जिन्होंने जमाने का नया नक्शा तैयार कर लिया है और अब ..”

“अपनी मलिका को साथ क्यों नहीं लाए?” सोफी पूछती है।

“उसके वायदे को साथ लाया हूँ जनाब!” फरजंद प्रसन्न हो कर बताता है। “मैं उससे कौल करार करके आया हूँ जनाब।”

“कौन से कौल करार?” राहुल हंस पड़ता है।

“यही कि मैं अब लौटा। रानी इस बार मैं किसी के हाथ न आऊंगा! तुम्हें लेने आऊंगा और तुम्हारी मां को मिटा कर तुम्हें ले जाऊंगा, मेरी मलिका!”

“अब बादशाह बनना नहीं चाहते हो?” सोफी ने मुड़ कर पूछा था।

“नहीं! अब मैं इंसान बनना चाहता हूँ आप लोगों की तरह।”

“फिर तो चलना पड़ेगा तुम्हारे साथ फरजंद!” सोफी हंस कर एक वायदा करती है।

“जल्द से जल्द चल पड़ते हैं फरजंद भाई” राहुल भी उससे हाथ मिलाता है।

फरजंद के जाते ही फरमान को बुलाने की आवाज पड़ जाती है।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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