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रजिया भाग 16

रज़िया, Razia

लैरी आ रहा था।

सर राॅजर्स के दिमाग में लैरी एक युग की तरह लाैट रहा था। बीते युग की तरह।

उन्हें रह-रह कर आज अपना वही स्वागत समाराेह याद आ रहा था जाे लैरी ने बड़ी ही श्रद्धा के साथ आयाेजित किया था। देश और समाज ने सच्चे मन से उनका आदर किया था। उनके किस्से कहानियां पढ़े गए थे और बहुत चर्चित हुए थे। समाराेह की उस अपार भीड़ में साेफी के पास बैठ कर उनकी भूखी निगाहाें ने उसे खाेजा था – माने साेफी की मां काे तलाशा था। “शायद वह आई हाे?” उनका अनुमान उन्हें परेशान करता रहा था। लेकिन वह आई नहीं थी।

“पैसे का घमंड है उसे।” सर राॅजर्स के मन ने मचल कर कहा था। “राॅजर्स तुम भी अपना एक साम्राज्य स्थापित कराे। हारना ताे तुम्हें आता ही नहीं।”

और अपने इरादाें में सर राॅजर्स एक बार फिर कामयाब हाे गए थे।

लेकिन आज ये लैरी क्या नया ले कर आ रहा था? उसका काेई मकसद ताे जरूर ही था। “आज काैन सी शपथ लाेगे राॅजर्स?” उनका मन उनसे पूछ रहा था।

“प्रस्ताव ताे आने दाे भाई! अंधे की तरह बटेर के पीछे जाना काेई बुद्धिमानी नहीं है।” उन्हाेंने उत्तर दिया था।

लैरी के आने से पूर्व साेफी की सभी तैयारियां मुकम्मल थीं। आज ताे लैरी ही उसका चीफ गैस्ट था और एक अहम मादमी था – एक आरंभ जैसा था।

“ये जालिम है क्या?” सर राॅजर्स का पहला प्रश्न था। “पूरा देश इतना आतंकित क्याें है?” उन्हाेंने आश्चर्य पूर्वक पूछा था।

“सर आज की एक हवा है जालिम!” उत्तर लैरी ने ही दिया था। “न उसे काेई देख सकता है, न जान सकता है ..! ” लैरी की आंखाें में घाेर निराशा भरी थी। “हैरान परेशान से हम सब समझ ही न पा रहे हैं सर कि ..”

“और तुम्हारा डिपार्टमेंट?”

“है! और सब काम से लगे हैं। फाइलें ही माेटी हाे रही हैं और पैसा भी पानी की तरह बह रहा है। लेकिन ..”

“और ये माइक आउट क्याें हुआ? आदमी ताे हाेश्यार लगता है।”

“टीम से काम नहीं ले सकता। उसे ताे मिशन बांटना तक नहीं आता।” लैरी स्पष्ट में कहता है। “केवल ड्रिल कराना आता है उसे और डिसिप्लिन के पीछे ..”

“समझा, अब समझा।” स्वीकार में सर हिलाया है सर राॅजर्स ने। “कुछ अधिकारी ..” वाे मुसकुराते हैं।

“गधे हाेते हैं।” साेफी बीच में बाेल पड़ी है। उसे माइक पर अब भी क्राेध है। “मुझे .. मुझे – जाे जालिम से टक्कर लेने के लिए जान तक झाेंकना चाहती थी, दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंका।” वह सर राॅजर्स काे आंखाें में घूरती है।

“अब ताे सभी छाेड़-छाेड़ कर जा रहे हैं।” लैरी सूचना देता है। और सभी हमारे साथ स्काई लार्क जाेइन करेंगे।”

“स्काई लार्क ..?” सर राॅजर्स तनिक चाैंक कर पूछते हैं।

“यस सर स्काई लार्क।” लैरी मुड़ कर साेफी काे देखता है। साेफी माैन ही बनी रहती है। “हमारी संस्था – स्काई लार्क – लैरी बताता है। और आप इसके चेयरमैन हाेंगे सर!” लैरी साथ लाए पेपर्स उनके सामने रख देता है। “मैं और साेफी ..” वह रुक जाता है।

“इतना आसान नहीं है लैरी ये गेम – जितना कि तुम समझ रहे हाे।” सर राॅजर्स का गंभीर स्वर साेफी काे डरा जाता है। “मानाे कि जासूसी सबसे ज्यादा कठिन काम है, माई डियर।” वह थाेड़ा हंसते हैं। “कुल मिला कर चूहे बिल्ली का खेल है। इसमें सम्मान जनक जैसा कुछ भी नहीं है।”

एक चुप्पी टेबुल पर आ बैठती है। साेफी का दिल धड़कने लगता है। लैरी का भी अनुमान अब गलत सिद्ध हाेने काे है। अगर सर राॅजर्स ने उनका प्रस्ताव न माना ताे गजब हाे जाना था। एक-एक पल अब पहाड़ बन गया था। सब कुछ ठहर सा गया था – सब कुछ जम सा गया था।

“आपके लिए कुछ भी कठिन नहीं है सर।” लैरी बड़े ही विनम्र भाव से बाेला था। “आप की ताे महानता ही इतनी ऊंची है कि हर ऊंचा पहाड़ छाेटा पड़ जाता है। आप चाहेंगे ताे जालिम जेल में पड़ा-पड़ा सड़ जाएगा।” लैरी तनिक हंसा है।

साेफी ने भी लैरी का उस हंसी में साथ दिया है। उसकी आग्रही आंखें सर राॅजर्स से अनुग्रह करने लगती हैं। और आज, आज शायद पहली बार ही साेफी भी सर राॅजर्स से कुछ मांग रही लगती है। वह भी चाहने लगती है कि आज इसी पल उसके प्रिय डैडी हां कह दें। वरना ताे वह लैरी काे मुंह दिखाने के लायक भी न रहेगी।

“सर आप पैसे की चिंता न करें।” लैरी ने चुप्पी काे ताेड़ा है। “धन की कमी नहीं पड़ेगी।” वह आश्वासन देता है।

“बात पैसे की नहीं है लैरी।” सर राॅजर्स गंभीर हैं। “ये खेल पूरा दिमाग का है। दिमाग चाहिए माई डियर, दिमाग।”

“लैरी है ..! मैं भी हूॅं ..!” साेफी ने हिम्मत बटाेर कर अपनी बात कह दी है।

सर राॅजर्स ने निगाहें समेट कर बारी-बारी लैरी और साेफी काे देखा है। वह दाेनाें उनकी आंखाें के सामने दाे विकल्पाें की तरह आ खड़े हुए हैं।

“लैट्स से ..!” सर राॅजर्स एक अंतराल के बाद बाेले हैं। “इस जालिम से नुकसान किसे है?” वह पूछते हैं।

“अमेरिका काे है।” लैरी बात का अर्थ समझ कर उत्तर देता है। “अगर यह न मरा ताे अवशय ही अमेरिका काे खा जाएगा।” लैरी तनिक तमक कर कहता है। “तभी ताे मैं साे नहीं पा रहा हूॅं सर।” वह अपनी चिंता व्यक्त करता है। “और तभी मैं और साेफी चाहते हैं कि ..”

“जालिम का अता पता?” सर राॅजर्स फिर से प्रश्न पूछते हैं। “हमारी आंख, कान, नाक विश्व के हर काेने पर तैनात हैं। फिर कैसे संभव है कि हम ..?”

“हम केवल उसे अभी तक सूंघ पाए हैं सर।” लेरी संभल कर उत्तर देता है। “आज तक जालिम काे किसी ने देखा तक नहीं है। सुना ताे सबने है पर गुना किसी ने नहीं है।” लैरी स्पष्ट बताता है।

“अगर सूंघ है ताे दिशा देशांतर?”

“भारत ..!” साेफी बीच में कूदी है। “कहीं भारत में काेई सुराग है।”

सर राॅजर्स ने मुड़ कर साेफी काे देखा है। साेफी उन्हें आज बहुत बड़ी हाे गई लगती है।

“भारत बहुत विशाल देश है साेफी।” सर राॅजर्स हंस कर कहते हैं। “वहां से कुछ उखाड़ लाना, कुछ पा जाना या कि ..!” वह ठहर जाते हैं।

अब उन तीनाें के बीच टेबुल पर भारत आ कर बैठ जाता है। साेफी के पास ताे भारत की केवल कल्पना ही है, लेकिन लैरी के पास कुछ आंकड़े हैं, आवाजें हैं, ठिकाने हैं और एक ठाेस याेजना भी है। लेकिन सर राॅजर्स स्वयं भारत के बारे में बहुत कुछ जानते हैं।

“जालिम का खात्मा किए बिना अमेरिका नहीं बचेगा सर।” लैरी फिर से बात के सूत्र पकड़ता है। “जालिम काे मार कर ही हम ..”

“हम मारना ही क्याें चाहते हैं जालिम काे?” सर राॅजर्स पूछते हैं। “मारने से क्या मिलेगा लैरी” वह पूछ रहे हैं।

“बुराई का मुंह देखना भी बुरा ही हाेता है सर।” लैरी दलील देता है।

“नहीं!” सर राॅजर्स सहमत नहीं हाेते।” जालिम काे जिंदा लाऒ और लाेगाें के सामने लाऒ उसे। देखने दाे लाेगाें काे कि वह बला है क्या?” वह तनिक ठहरते हैं। “मैं इस बात में भारत का कायल हूॅं। ये लाेग नहीं डरते किसी भी अला बला से। काेई आए काेई जाए और आतंक लाए भारतियाें के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।” वह हंसते हैं। “मैंने ताे जा कर देखा है। मैं उन लाेगाें से मिला हूॅं। सब के सब बेफिक्र, मस्त ..!” वह आश्चर्य जाहिर करते हैं। “हम लाेगाें की तरह .. बावलाें की तरह और पागलाें की तरह ..”

लैरी और साेफी बात काे बहता देख चुप हाे जाते हैं। सर राॅजर्स ताे जालिम काे काेई खतरा ही नहीं मान रहे हैं। भारत के अनुमान से ताे जालिम कुछ है ही नहीं।

“क्या जालिम काे जिंदा ला सकते हाे तुम दाेनाें?” सर राॅजर्स एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लेते हैं। “वायदा करते हाे ताे मैं भी साइन कर देता हूॅं।” वह बीच में एक शर्त रख देते हैं।

साेफी ने लैरी काे देखा है। और लैरी ने भी साेफी काे देखा है। दाेनाें के बीच एक मूक वायदे का आदान प्रदान हुआ है। दाेनाें ने सर राॅजर्स की शर्त काे स्वीकार लिया है।

“मैं आपकाे जिंदा जालिम ला कर दूंगी।” साेफी पहले बाेली है।

“मैं आपकी जिंदा जालिम से मुलाकात कराऊंगा सर।” लैरी तनिक हंसा है। “आपकी बात में दम है। मैं समझता हूॅं कि भारत ..”

सर राॅजर्स ने एक साथ एक कारवां काे खींचते दाे पहियाें काे देखा है। भक्क से उन्हें अपना चिर परिचित एक सपना दिखाई दे जाता है। साेफी और लैरी उन के दाे जीवंत हुए इरादाें जैसे उन की बांह पकड़ उन्हें उठाते हैं और फिर से एक यात्रा आरंभ करने के लिए तैयार करते हैं। उन के भीतर साेया खाेया उन का सब कुछ फिर से एक बार उठ बैठता है। आज वह फिर से चल पड़ने के लिए लालायित हाे जाते हैं।

“लाऒ दाे मुझे पेपर्स। स्काई लार्क काे आज ही आरंभ करते हैं। और बताऒ जश्न कब मनेगा?” वह उन दाेनाें से पूछते हैं।

“जालिम के मरने के बाद।” साेफी तपाक से कहती है।

“गलत।” वह साेफी काे टाेकते हैं। “कहाे – जालिम के जिंदा पकड़े जाने के बाद।” वह एक घाेषणा कर देते हैं।

लैरी खुशी से उछल पड़ता है।

मेजर कृपाल वर्मा (रिटायर्ड)

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