रंगे सियार हैं ये
कभी तिलक तो कभी
टोपी लगाते हैं ये
कभी क्रॉस भी लटका लेते हैं
कभी दलित तो कभी ब्राह्मण
बन जाते हैं
भ्रमित न हो जाना दोस्तों
इनका इष्ट तो बस कुर्सी है
इन्हें मोक्ष नहीं सत्ता चाहिये
बस।
सड़क पर बैठे भिखारी को देखा,
परेशान हैरान आम आदमी को देखा,
व्यापारी को देखा,
किसके लिए काम करते हैं ये?
लगता ही नहीं कि
इनमें से किसी को भी
फिक्र है, इस देश की,
चुनाव आते ही
मंदिरों की ओर लगाते हैं दौड़
चुनावों के बाद मंदिरों का ही विरोध?
एक होने ही नहीं देते,
जाति पंथ को खत्म होने ही नहीं देते
बहुत चालाक हैं ये,
रंगे सियार है ये!
- आशीष वर्मा