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राम चरन भाग उनहत्तर

Ram Charan

“इन्हीं की कृपा से हम सी एम की कुर्सी पर बैठे हैं राजा साहब!” यू पी के चीफ मिनिस्टर प्रभाकर पारस विहंस कर बता रहे थे। “लियाकत मियां बड़े ही मिलनसार मनुष्य हैं!” उन्होंने लियाकत मियां को स्नेह सिक्त निगाहों से देखा था। “ये हमारी समता पार्टी चलाते हैं।” उनका कहना था।

“आप का नमक खाते हैं हुजूर!” लियाकत मियां ने भी सी एम साहब का आभार व्यक्त किया था। “आप की नजर न हो तो हम हैं क्या चीज?” जोरों से हंसे थे लियाकत मियां।

चीफ मिनिस्टर के ऑफिस में होती ये मुलाकात हिन्दू मुस्लिम एकता और आत्मीयता का अमूल्य दस्तावेज जैसी थी। राम चरन बड़ी ही बारीकी से दोनों पक्षों के किए दावों को निरख परख रहा था। झूठ और सच दो सहोदरों की तरह गले मिल रहे थे और इतिहास को गुमराह कर रहे थे। राम चरन ने बड़े ही जतन से इस का संज्ञान लिया था।

“ये ब्रोशर है सुनहरी लेक कॉम्पलैक्स का जनाब!” राम चरन ने एक बेहद खूबसूरत ब्रोशर लिफाफे से निकाल सी एम साहब के सामने रख दिया था। “कुंवर साहब की ओर से नौ नम्बर बंगला आप का है।” राम चरन मंद-मंद मुसकुराया था।

“कॉस्टली बहुत है राजा साहब!” सी एम साहब ब्रोशर देखते हुए बोले थे।

“आप ने तो बस हां कहनी है। बाकी सब तो ..” राम चरन ने इशारों-इशारों में समझा दिया था। “स्विस डिजाइन है बंगले का।” राम चरन ने नौ नम्बर बंगले का फोटो उनके सामने रख दिया था। “आकर देखेंगे तो तबीयत हरी हो जाएगी।”

“जरूर देखेंगे!” सी एम साहब ने सहमति दे दी थी।

लियाकत मियां बड़े गौर से राम चरन को नाप तौल रहे थे।

खुली आंखों लियाकत मियां आज एक अजूबे को घटते देख रहे थे। राम चरन बना मुनीर खान जलाल किस चतुराई से सियासत की गोटें खेल रहा था – यह एक युद्ध नहीं तो और क्या था? देश के हुए बंटवारे पर जो खून खराबा हुआ था और जो सड़कों पर बाए बेला मचा था – वो था कितना दूर? तब लियाकत मियां बहुत छोटे थे। लेकिन आज भी उस घटना की याद आते ही उनकी रूह कांप उठती थी।

“लियाकत मियां अपना बड़ा इमाम बाड़ा हमें सोंप रहे हैं।” राम चरन बताने लगा था। “और कुंवर साहब चाहते हैं कि एक पांच सितारा होटल लखनऊ में बनाएं! ए चेन ऑफ हॉसपिटेलिटी होटल्स – ऑल ओवर द वर्लड – मिशन है हमारा।”

“बहुत खूब! भारत का भविष्य भी अब लोकल न रह ग्लोबल है!” प्रसन्न थे सी एम साहब। “सनातन संस्कृति की तो बात ही कुछ और है। वी हैव स्पेस इन अवर माइंड्स फार द होल ह्यूमैनिटी।” पारस ने राम चरन की चंचल दृष्टि को दौड़ते भागते देख लिया था।

“कैसे .. कैसे हो सकता है कि हिन्दू इतने हुए जुल्म, लूट-पाट, नर संहार और बेइज्जती को भूले बैठे हैं?” राम चरन सोच में डूबा था। “इतनी लंबी गुलामी का कोई रेखा परेखा तक न था इन्हें?” वह समझ लेना चाहता था। “अभी जो इस बार मुसलमान साइलेंटली उनका सब कुछ लूट लेना चाहते थे – क्या इन्हें इसका कोई शक भी न था।

तभी कहीं दूर – बहुत दूर राम चरन ने एक छोटे से शोले को सुलगते देख लिया था। पंडित कमल किशोर का बेटा सुमेद हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की रट लगा रहा था जबकि पंडित जी उसे धर्म निरपेक्ष समाज का पाठ पढ़ाना चाहते थे।

और – और हां तभी राम चरन ने कालू के दोनों बेटों – अरुण और वरुण को आर एस एस के लिबास में सजा वजा देख लिया था। वह सुनने लगा था – नमस्ते मातृ भूमे सदा वत्सले .. का वो प्रलाप जो पूरे देश में फैलता ही चला जा रहा था।

और तभी एक नन्हा सा शिशु रूप भारत अचानक ही राम चरन की निगाहों के उस पार खेलने कूदने लगा था।

डर गया था राम चरन और उसने लियाकत मियां का हाथ कस कर पकड़ लिया था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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