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राम चरन भाग तिरासी

Ram charan

राम चरन डरा हुआ था। रंजीत गौढ से मुलाकात का मतलब था – हिन्दुस्तान के पूरे के पूरे खुफिया तंत्र की नब्ज पर उंगली। रंजीत गौढ ने हाल ही में एक जासूसी गिरोह को पकड़ा था और खुलासा किया था ..

“एवरी थिंग इज फेयर इन लव एंड वॉर!” राम चरन ने अपने गुरु मंत्र का जाप जैसा किया था। “चोट पर चोट!” वह तनिक हंसा था। “चल कर देखते हैं इस हस्ती को भी!” उसने अपना इरादा दोहराया था।

राम चरन खाली हाथ न जा रहा था। कठिनाई से उसने एक रास्ता ढूंढ निकाला था। रंजीत गौढ को कोई किसी तरह का भी शौक न था। कोई कमजोरी न थी उसकी जिसे वो पकड़ता। राजौरी गार्डन में एक एम आई जी फ्लैट में रहता था। रंजीत गौढ के पिताजी ने इसे किश्तों पर खरीदा था। बस – रंजीत गौढ और उसकी टीचर पत्नी के लिए यही जन्नत थी। अकेला बेटा सुमंत गौढ यू एस में होटल मैनेजमेंट की डिग्री ले चुका था। यही एक सुराग मिला था राम चरन को रंजीत गौढ के जीवन में प्रवेश करने का। उसने सुमंत गौढ को नई प्रोजैक्ट ड्रीम लैंड ढोलू के सी ई ओ बनने का ऑफर यू एस में जाकर दिया था।

“पे एंड पर्क्स क्या होंगे सर?” सुमंत ने आखिरी प्रश्न पूछा था।

“जो तुम चाहो वो!” हंस कर कहा था राम चरन ने। “और काम – जो मैं चाहूं वो!”

“इट्स ए डील सर!” सुमंत मान गया था। “लेकिन पापा से पूछ कर बताऊंगा!” उसने बात में घुंडी डाल दी थी।

“इस रास्ते पर भी पहरा बिठा रक्खा है बुढ़ऊ ने!” मन ही मन राम चरन ने स्वयं से कहा था। “लेकिन कब तक?” राम चरन ने सुमंत से पूछा था। “आई एम हार्ड प्रेस्ड फॉर द टाइम सुमंत!”

“इट मे टेक टाइम!” सुमंत का उत्तर था।

और राम चरन जान गया था कि अब रंजीत गौढ उसकी कुंडली खंगाल लेगा और अगर ..

“गौढ साहब से अपोइंटमेंट चाहिए, राजा साहब!” राम चरन ने तुरुप लगा दी थी। “वो क्या है कि उन का बेटा यू एस से होटल मैनेजमेंट की डिग्री ले चुका है। मैं चाहता हूँ ड्रीम लैंड ढोलू के लिए उसे सी ई ओ अपोइंट करना।”

“मैं बता दूंगा!” कुंवर साहब ने सीधे स्वभाव में कह दिया था।

और आज राम चरन रंजीत गौढ – एक बेहद सुलझे हुए जासूसी खेल के माहिर रंजीत गौढ से मिलने जा रहा था।

बिहार में किसी छोटे मोटे गांव का रहने वाला था – रंजीत गौढ! वहां उसे कोई नहीं जानता था। लेकिन दिल्ली में तो उसका लोहा पी एम भी मानते थे। नौकरी छोड़ कर ये आदमी वी आर एस ले कर किसी नारायण आश्रम में जाने को था। लेकिन पी एम ने इसे रोक लिया था। कहा जाता है कि रंजीत गौढ उड़ती चिड़िया के पर गिनने में माहिर है। उसकी निगाह से बच निकलना आसान काम नहीं होता।

“इत्ते सजधज कर कहां जा रहे हो?” सुंदरी ने यूं ही पूछ लिया था।

“है एक दुश्मनों का दुश्मन!” राम चरन ने पहेली बुझाई थी। “ड्रीम लैंड ढोलू के लिए एक सी ई ओ चुना है – सुमंत गौढ!” राम चरन बताने लगा था। “लेकिन बेटा कहता है कि बिना बाप से पूछे वह हां नहीं करेगा।” हंसा था राम चरन।

“आज भी ऐसे बेटे हैं क्या?” सुंदरी ने आश्चर्य जाहिर किया था।

“हैं! तभी तो मैं उसके बाप से मिलने जा रहा हूँ।”

“कौन है?”

“है एक सर फिरा बिहारी!” राम चरन मुसकुराया था।

अचानक उसे रूमी याद हो आया था।

“इसे अपनी आखिरी जंग मान कर चलना मुनीर!” उसने हिदायत दी थी। “विलक्षण बुद्धि वाला आदमी है – रंजीत गौढ!” उसने भी चेताया था राम चरन को।

पहली बार राम चरन नर्वस था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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