Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

राम चरन भाग तीस

Ram Charan

तीन बसें बदली थीं। एक घंटा मंगी के घर पहुंचने के लिए पैदल चली थी। दिल्ली के गरम माहौल ने उसे खा-खा लिया था। कई बार पसीना आ कर सूख गया था। लेकिन काम ही ऐसा था कि श्यामल के पैर थमे न थे। अंग्रेजी पढ़ लिख कर दोनों बेटे अरुण वरुण अगर कलक्टर बन जाने थे तो घाटा क्या था? यही एक विचार था जो श्यामल को चिलचिली धूप में भी तरो ताजा करता रहा था।

“अरे, तुम!” श्यामल को आया देख मंगी उछल पड़ी थी। “कैसे ..?” उसने सीधे प्रश्न किया था। “इस गर्मी में यों हलकान हुई यहां कैसे?” मंगी आश्चर्य चकित थी।

“काम ही ऐसा है मंगी दीदी!” श्यामल का स्वर संयत था।

“किस से काम है?”

“तुम से!” श्यामल ने मंगी को आंखों में सीधा देखा था। “नौकरी करती हो ना मेरी एंड जॉन्स में?”

“हां-हां! करती तो हूँ! पन ..” मंगी कुछ समझ न पा रही थी। “आओ, बैठो! पानी लाती हूँ।” मंगी ने श्यामल को आदर से बिठाया था और पानी लेने चली गई थी।

मदनपुर खादर का खाखा देख श्यामल तरस गई थी। ढोलू सराय उसे कहीं ठीक ठिकाना लगा था। यहां तो कुल मिला कर सब गड्ड मड्ड ही था। कोई भगोड़ाओं की बस्ति जैसा ही कुछ था।

“कहो, क्या काम है मुझसे?” श्यामल को होश आया था तो मंगी ने पूछा था।

“एडमीशन!” श्यामल सीधा मुद्दे पर आई थी। “मेरे बेटों का एडमीशन – मेरी एंड जॉन्स में!” श्यामल ने बम विस्फोट जैसा किया था।

“क्या ..?” चौंक पड़ी थी मंगी। “क्या कह रही हो श्यामल?” उसने प्रति प्रश्न किया था। “जानती हो – फीस और कुल खर्चा ..”

“जानती हूँ!” श्यामल तनिक हंस गई थी। “पैसे की परवाह नहीं है!” उसने इस तरह कहा था जैसे कालू कोई करोड़ पति था। “सिफारिश चाहिए!” श्यामल बोली थी। “हम दोनों तो अनपढ़ हैं। लेकिन अरुण वरुण अगर ..”

“लेकिन मैं .. मेरी सिफारिश ..?”

“पैसा हम भर देंगे!” श्यामल ने मारक तीर छोड़ा था। “तनिक सा सहारा लगा दो दीदी!” श्यामल ने बड़े ही विनम्र भाव से आग्रह किया था।

मंगी लंबे पलों तक सोचती ही रही थी!

“तुम दोनों अनपढ़ हो और ..?” मंगी बोली थी। “हैडले हठीला है। वह सिफारिश केवल मंत्रियों की या फिर बड़े अफसरों की ही मानता है। मुझे खूब मानता है लेकिन ..” चुप हो गई थी मंगी।

“तुम्हारे ही बेटे हैं – अरुण वरुण दीदी! कल कुछ बनेंगे तो तुम्हारा भी सर ऊंचा होगा! और तो कहीं कुछ है नहीं! बिहार जा कर तो तुमने भी देख लिया है!” श्यामल ने काट करने वाला कार्ड खेला था।

“चलो, देखते हैं!” मंगी तनिक उत्साहित हुई थी। “आ जाना कल स्कूल। फार्म भर देते हैं! मैं कोशिश करूंगी श्यामल कि ..” मंगी ने फिर से श्यामल को आंखों में घूरा था। “सच तो यही है श्यामल कि ये अंग्रेज अभी भी हमें अपना गुलाम मानते हैं!” टीस आई थी मंगी।

लग रहा था – श्यामल ने आज कोई अजेय किला फतह कर लिया हो।

घर लौटते-लौटते अंधेरा हो गया था। श्यामल के आगमन पर कालू की काया खिल उठी थी। उसने सीधा श्यामल की आंखों में झांका था।

“कल बुलाया है मंगी ने स्कूल में!” श्यामल ने कालू को धीमे स्वर में सूचना दी थी। “शायद ..” वह तनिक सी मुसकुराई थी।

कालू आज श्यामल की कामयाबी पर कृतार्थ हो गया था।

अनोखी रात थी वह! जहां अरुण और वरुण बेखबर सोए पड़े थे वहीं कालू और श्यामल की आंखों में नींद का नाम न था। दोनों बेटे अंग्रेजी पढ़ लिख कर कलक्टर बनेंगे – मात्र यही एक विचार आज उन्हें सोने न दे रहा था!

तरह-तरह की संभावनाएं वो दोनों मिल कर तलाशते रहे थे – रात भर!

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

Exit mobile version