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राम चरन भाग तेईस

Ram Charan

“क्या बात है?” श्यामल ने परेशान हो कर पूछा था। आज कालू लौटने के बाद चुप था। वह किसी गहरी सोच में डूबा था। श्यामल का धीरज जवाब दे गया था। “भाग गया राम चरन?” उसने अंत में हिम्मत बटोर कर पूछ ही लिया था।

कालू ने आंखें उठा कर श्यामल को देखा भर था। उसकी समझ में न आ रहा था कि श्यामल को कैसे बताए कि राम चरन क्या था! कैसे बताए कि राम चरन झूठे बरतन साफ करता, उसके कुर्ते पाजामे पहने – वो राम चरन राम चरन नहीं कोई और ही था। पर था कौन? श्यामल अभी भी कालू के उत्तर के इंतजार में रुकी खड़ी थी।

“नहीं! भागा तो नहीं है। पर ..” कालू फिर से चुप हो गया था।

अरुण और वरुण स्थिति की गंभीरता को महसूस उन दोनों के साथ आ कर खड़े हो गए थे।

“पर – क्या ..?” डरते-डरते श्यामल ने मन को कड़ा कर पूछा था।

“मैंने राम चरन का आज दूसरा रूप देखा!” कालू ने अटकते हुए कहा था। “मैं जब मंदिर से गुजर रहा था तो देखा कोई दरवेश सीढ़ियों पर बैठा है। मैंने पाए लागूं कह कर जब उसके चरण गहे तो देखा – वो तो राम चरन था।”

“फिर ..?” श्यामल को अजीब सा रोमांच होने लगा था।

“फिर क्या! बोला – कपड़े बदलने से आदमी नहीं बदल जाता भाई, तुम चलो मैं आता हूँ।”

“आया ..?” श्यामल ने सांस साध कर पूछा था।

“हां! आया! मेरे उन्हीं कुर्ते पाजामे को पहन कर वो लौटा और जी तोड़ कर काम किया!”

कालू चुप हो गया था। श्यामल भी चुप हो गई थी। वह दोनों अब एक दूसरे को न देख कहीं दूर देख रहे थे।

“ये कोई ठग है पापा!” वरुण बोला था।

“आप को ठगने आया है!” अरुण ने भी सहमति जताई थी। “आप तो सीधे सादे हैं! आज कल तो .. कोई भी हो सकता है ..”

“चुप करो तुम दोनों!” श्यामल उन पर टूट कर पड़ी थी। “दरवेश भी तो हो सकता है?” उसने प्रत्यक्ष में कहा था। “जब से आया है – पौ बारह हो रहे हैं। हर रोज धंधा बढ़ रहा है। और क्या चाहिए!” उसने अपने दोनों हाथों को एक साथ देखा था। “चलो भागो! अपना-अपना काम देखो!”

वह दोनों फिर से अकेले रह गए थे।

“बर्तन धोने के लिए एक सस्ता सा छोकरा पकड़ लेता हूँ!” कालू कुछ सोच कर बोला था। “राम चरन को अब थाली परोसने का काम दे देता हूँ। मैं पैसे धेले संभालूंगा और ..” कालू कहता ही रहा था। “काम और बढ़ेगा तो ..”

“राम चरन को तो साथ ही रक्खेंगे!” श्यामल ने सहमति जताई थी। “कोई मजबूर आत्मा है। हमें दुआएं लगेंगी – राम चरन की!” श्यामल ने अंतिम फैसला कर दिया था।

कालू प्रसन्न था। उसने अपने फैलते साम्राज्य को आज नंगी आंखों से देख लिया था।

अरुण और वरुण अभी भी राम चरन के बारे में सोचते रहे थे।

दरवेश की कहानी उनके गले न उतरी थी।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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