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राम चरन भाग तीन

Ram Charan

“चाबी कहां है?” राजेश्वरी ने पंडित कमल किशोर से मंदिर की चाबी न मिलने पर पूछा है।

पंडित कमल किशोर अभी भी राम चरन के खयालों में ही खोए हुए थे। कैसे बताते राजेश्वरी को कि उन्होंने आज आदमी को नहीं – एक अजूबे को देखा था। कैसे बयान करते वो कि राम चरन उन टूटे फटे लत्तों में भी उन्हें एक शहंशाह लगा था। किसी की तलाश में भटकता कोई घाव खाया शेर था – राम चरन।

“राम चरन के पास ..” पंडित जी संभल कर बोले थे।

“राम चरन – कौन?” राजेश्वरी का स्वर तल्ख था।

“आ गया था – एक विपदाओं का मारा!” पंडित जी ने कहानी सुनाई थी। “कालू के साथ आया था। रैन बसेरा चाहिए था उसे ..”

“और तुम ने उसे मंदिर की चाबी पकड़ा दी?”

“हां!” कह कर पंडित कमल किशोर फिर सोच में पड़ गए थे। “तुम भी होतीं राजे तो ना न करतीं – उसे।” पंडित जी अपने बचाव में बोले थे। “उसकी आंखें – जो बयान कर रही थीं – मैं उसे सुन कर पिघल गया था। और ..” चुप थे पंडित जी।

“और ..?”

“और ये देखो!” पंडित जी ने झोले से नोटों की गड्डी निकाली थी। “आज का चढ़ावा!” आश्चर्य चकित आवाज में बोले थे वो। “न जाने कहां से भक्त गण मंदिर पहुंचे! भीड़ भर गई। पहली बार ढोलू शिव मंदिर में इतने लोग दर्शन करने आए थे।”

राजेश्वरी और पंडित कमल किशोर अब एक दूसरे को घूर रहे थे।

“रात में सब कुछ उठा ले जाएगा, पापा!” सुमेद उनका बेटा बीच में बोल पड़ा था। “आप जानते नहीं – ढोलू शिव अगर बाजार में बिके तो ..”

“सुमेद!” राजेश्वरी चिल्ला पड़ी थी। “यही तमीज सीखते हो स्कूल में?” उसने उलाहना दिया था। “चलो जाओ! अपना काम देखो!”

सुमेद के जाने के बाद वो दोनों तनिक होश में आए थे। अचानक पंडित कमल किशोर को अपनी गलती का एहसास हुआ था।

“बुरे लोग तो नहीं हो सकते!” नोटों की गड्डी हाथों में थामे राजेश्वरी ने लड़खड़ाती आवाज में पूछा था।

“नहीं! सब भले थे। श्रद्धा पूर्वक दान दे रहे थे। ढोलू शिव को बार-बार प्रणाम कर रहे थे। मंदिर का प्राचीन इतिहास कुछ लोगों ने मुझ से पूछा था। और कुछ लोग तो .. बढ़ चढ़ कर फोटो खींच रहे थे .. और ..”

“और राम चरन ..?” राजेश्वरी ने बीच में पूछ लिया था।

“पूरे मनोयोग से, सेवा भाव के साथ मेरी मदद कर रहा था। उसी ने तो ये सब दान प्राप्त किया और मानो राज कि .. जो आया सब मेरे साथ बांध दिया! ये देखो ..!”

“ईमानदार है!” राजेश्वरी भी मान गई थी।

और राजेश्वरी जान गई थी कि अब ढोलू शिव उनपर प्रसन्न थे। अब उनके दिन फिरेंगे। उसे अचानक अपनी सहेली राधा का खयाल आया था। कोर्ट का चपरासी था – उसका पति। लेकिन ठाठ-बाट तो देखो! और ये पंडित कमल किशोर – विद्वान, वेद पाठी और ज्ञानी यों ही मंदिर में झक मार रहे थे। एक पिटे-पिटे एहसास को जीती राजेश्वरी कभी राधा से मिलने तक न गई थी।

लेकिन .. लेकिन – राम चरन, जो भी कोई है वो शायद, उनके लिए ढोलू शिव का वरदान ही हो! अगर मंदिर चल पड़ा, अगर भीड़ बढ़ने लगी तब तो वारे के न्यारे होने में देर न लगेगी!

“रहेगा मंदिर मे?” राजेश्वरी ने पूछ था।

“क्या पता!” पंडित कमल किशोर चुप थे।

एक भूचाल था – धनी मानी हो जाने का भूचाल जो पंडित कमल किशोर को आज उठाए-उठाए डोल रहा था।

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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