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राम चरन भाग सोलह

Ram Charan

“क्या बात हुई?” राजेश्वरी ने प्रश्न पूछा था। “भाग गया राम चरन?” उसके कंठ स्वर कांप उठे थे। पंडित कमल किशोर की दी हल्की नोटों की गड्डी राजेश्वरी को डरा गई थी।

राजेश्वरी राम चरन को लेकर न जाने क्या-क्या सपने देख चुकी थी। अगर मंदिर चल पड़ता है तो उसे उम्मीद थी कि धन माल बेशुमार आएगा। राम चरन के आने के बाद आज पहला मौका था जब पुजापा न के बराबर था। उसे अब पंडित जी के मंदिर से लौटने का बेसब्री से इंतजार रहता था। लेकिन .. आज ..

“नहीं!” पंडित कमल किशोर बड़ी देर के बाद बोले थे। “भागा ताे नहीं है। लेकिन ..” उन्होंने मुड़ कर राजेश्वरी के बेदम हो गए चेहरे को पढ़ा था।

“लेकिन ..?” राजेश्वरी ने डरते-डरते फिर पूछा था।

“आज भीड़ तो खूब थी।” पंडित जी तनिक संभल कर बोले थे। “लेकिन थे सारे स्वयं सेवक। इन लोगों को पैसे से लगाव नहीं होता।”

“फिर किस से लगाव होता है?” राजेश्वरी ने तनिक नाराज होते हुए पूछा था।

“मात्र भूमि से। ये देश भक्त होते हैं। समाज सेवा के लिए समर्पित रहते हैं।” पंडित जी ने संक्षेप में बताया था।

“पहली बार सुन रही हूँ कि किसी को पैसा नहीं चाहिए!” राजेश्वरी का जायका बिगड़ गया था। “आज कल बिन पैसे के पूछता कौन है?” एक आश्चर्य था राजेश्वरी की आंखों में।

“राम चरन भी तो डर गया था – इन्हें देख कर!” पंडित जी तनिक मुसकुराए थे।

“क्यों? राम चरन ..” सुमेद बीच में बोल पड़ा था।

राजेश्वरी को अचानक क्रोध चढ़ आया था। मन प्राण में भरी निराशा ने बाहर आने का दूसरा रास्ता गहा था। उसने चटाक से सुमेद के गाल पर थप्पड़ जड़ दिया था। पंडित जी राजेश्वरी को विस्मय भरी निगाहों से देखते रहे थे।

“चल जा – अपना काम कर!” राजेश्वरी ने सुमेद को आदेश दिया था। “दोनों बाप बेटे ही निकम्मे हैं!” राजेश्वरी ने अपने भाग्य को कोसा था। “चार पैसे नहीं होंगे तो कल को कहां जाएंगे?” उसका उलाहना था।

दोनों बाप बेटों को पैसे की हैसियत का एक साथ पता चल गया था।

“आज नहीं तो कल चला तो जाएगा राम चरन!” पंडित जी ने प्रतिकार चुकाने के लिए इस बार राम चरन पर तीखा प्रहार किया था। “कालू उसे दो वक्त का खाना खिलाता है और उसने अपने पुराने कुर्ते पाजामे राम चरन को पहनने के लिए दे दिए हैं।” पंडित जी ने अब राजेश्वरी के चेहरे को पढ़ा था। वह देखना चाहते थे कि राजेश्वरी पर उनके किए वार का कितना असर हुआ था।

“तो ..?” राजेश्वरी अकड़ कर खड़ी हो गई थी।

“मंदिर में कालू के कुर्ते पाजामे पहने डोलता राम चरन ..?” पंडित जी का गला भर आया था। “लेकिन ..” वो आगे कुछ बोल नहीं पाए थे।

राजेश्वरी को अब होश लौटा था। राम चरन के चले जाने की संभावना ने उसे दहला दिया था। राम चरन कालू के कुर्ते पाजामे पहन कर कैसा लगता होगा – वह अनुमान लगाने लगी थी। मंदिर में आने वाले भद्र लोग क्या सोचते होंगे – राम चरन के बारे? अगर राम चरन ..

“अपने एक जोड़ा कपड़े ..!” राजेश्वरी कहने को थी।

“दूसरा पंडित लगेगा! कुंवर साहब को भनक भी लगी तो ..?”

राजेश्वरी गहरे सोच में डूब गई थी।

“रमा!” अचानक रमा का नाम याद आते ही राजेश्वरी उछल पड़ी थी। “फैशन डिजाइनर है रमा!” उसने पंडित जी को सूचना दी थी। “मैं बनवाती हूँ राम चरन के कपड़े! देखना – पहन कर मंदिर में डोलेगा तो उजाला भर जाएगा!” उसने अब पंडित जी की आंखों में घूरा था। “कल साथ लेते आना उसे! रमा नाप ले लेगी तो काम हो जाएगा!” प्रसन्न थी राजेश्वरी।

लेकिन पंडित कमल किशोर का चेहरा दप से बुझ गया था!

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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